संस्मरण
– प्रशांत सिन्हा
लोक नायक जय प्रकाश नारायण ने 5 जून 1975 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जनसमूह को संबोधित करते हुए संपूर्ण क्रांति का आह्वाहन कर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक अहिंसक आंदोलन की शुरुआत की थी। इस ऐतिहासिक दिन की ४५वीं वर्षगाँठ अभी दो पहले ही थी पर दुःख की बात यह की आज की पीढ़ी को इसकी ज्यादा जानकारी नहीं है और ना ही अधिकतर नौजवान इन ऐतिहासिक घटनाओं के महत्व हो ही समझना चाहते है।
जय प्रकाश बाबु का निवास स्थान और मेरा विद्यालय पटना के क़दम कुआँ में आमने सामने है। मैं अपने कक्षा से उन्हें दोपहर के वक़्त छतरी के नीचे पढ़ते हुए देखता था। उनके घर में देश विदेश से गणमान्य लोगों का आना जाना लगा रहता था जिसकी चर्चाएँ शिक्षकों के बीच होती रहती थी। मेरे घर में भी पिता जी अपने मित्रों से जयप्रकाश बाबु और सम्पूर्ण क्रांति की चर्चा किया करते थे। मैं पास बैठ कर उनकी बातों को सुनता था। चूंकि पटना और बिहार की राजनीति का तापमान हमेशा उँचा रहता है इसलिए हर नुक्कड़ पर राजनीतिक चर्चा होती रहती है। ये चर्चाएँ सुनते हुए और जयप्रकाश बाबु के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अनजाने में ही मुझे जयप्रकाश बाबु से लगाव हो गया।
ये सभी को मालूम है कि जयप्रकाश बाबु राजनीतिज्ञ के साथ साथ चिंतक भी थे। वे सामाजिक आंदोलन के ऐसे पुरोधा भी थे कि इंदिरा गांधी की सत्ता हिली ही नहीं ख़ुद भी वे चुनाव हार गयीं।
जेपी के नाम से लोकप्रिय जय प्रकाश बाबू का स्वतंत्रता आंदोलन से ले कर सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन तक का योगदान जगज़ाहिर है। राजनीति एवं सत्ता दोनों अलग है यह मैंने जयप्रकाश बाबु को थोड़ा जानने के बाद जाना। अधिकांश लोग राजनीति और सत्ता को एक मानते हैं। लोग राजनीति में आते हैं और सत्ता की दौड़ में शामिल हो जाते हैं। जयप्रकाश बाबु ने इस नियम को तोड़ा। अपनी ज़िंदगी के आख़िरी क्षण तक राजनीति में रहे लेकिन सत्ता को ठुकराया। वे चाहते तो सत्ता के शिखर तक आसानी से पहुँच जाते। भारत के राजनीतिक आकाश पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ध्रुव तारे की तरह बने रहेंगे।
लोगों ने पूरे मन से उन्हें “लोकनायक” की उपाधि दी। वह ऐतिहासिक क्षण था – 5 जून 1975 । जगह – पटना का गांधी मैदान । यह मैदान अनेक घटनाओं का जीता जागता गवाह है। पूरे बिहार से लोग विधान सभा भंग करने की माँग को लेकर पटना में जुटे थे। जेपी उस जुलूस की अगुवाई कर रहे थे। दस लाख से भी ज़्यादा लोगों की जुलूस थी। उस भीड़ से गांधी मैदान छोटा पड़ गया था। एक अनूठा माहौल था। गांधी मैदान की सभा में उनके सिर पर लोगों ने “लोक नायक “ का ताज रख दिया जो हमेशा लगा रहा। यहाँ पर जयप्रकाश नारायण ने भी लोगों से अपील की। उन्होंने कहा था “ दोस्तों, ये संघर्ष सीमित उद्देश्यों के लिए नहीं हो रहा है। इसके उद्देश्य दूरगामी है। भारतीय लोकतंत्र को वास्तविक और सुदृढ़ बनाना और जनता का सच्चा राज क़ायम करना है। एक नैतिक, सांस्कृतिक, तथा शैक्षणिक क्रांति करना, नया बिहार बनाना और नया भारत बनाना है। यह सम्पूर्ण क्रांति है – टोटल रेवलूशन ( Total Revolution ) उसके बाद यह नारा निकला “सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है ।
सम्पूर्ण क्रांति का अर्थ प्रत्येक दिशा में सतत विकास ही समग्र क्रांति है। आचार परिवर्तन, विचार परिवर्तन, व्यवस्था परिवर्तन, एवं शिक्षा में परिवर्तन कर के उन्हें जीवनपयोगि बनाने की आवश्यकता है। ग्राम स्तर से राष्ट्र स्तर तक जनसमिति एवं छात्र समिति बना कर छात्र जन-समस्याओं का निराकरण करें तथा स्वच्छ छवि वाले जनप्रतिनिधियों को संसद या विधान सभा भेजना सुनिश्चित हो। जन विरुद्ध कार्य करने पर प्रतिनिधि वापसी का अधिकार का उपयोग करते हुए उन्हें पदच्युत करना ताकि जनजीवन उन्नत एवं सरस बनाया जा सके।
जयप्रकाश जी ने सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन में अंतर्जातिय विवाह और जनेउ तोड़ने का कार्यक्रम अपनाया था। इसके साथ ही उन्होंने जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में काम करने के लिए लोगों को युवकों एवं युवतियों को संगठित करना शुरू कर दिया था। साथ ही बिना दहेज के सादगी के साथ शादी विवाह का कार्यक्रम भी शुरू कर दिया था। वे चाहते थे हर हाथ को काम मिले।
जयप्रकाश नारायण की दृष्टि में सम्पूर्ण क्रांति का अर्थ : सम्पूर्ण क्रांति का मतलब समाज में परिवर्तन हो – सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक,और नैतिक परिवर्तन। सामाजिक परिवर्तन ऐसा हो कि सामाजिक कुरीतियाँ दूर हो। इसमें से नया समाज निकले जिसमें सभी सुखी हों। अमीर ग़रीब का जो आकाश पाताल का भेद है वह नहीं रहे। शोषण न हो इंसाफ़ हो। आर्थिक परिवर्तन ऐसा हो कि जो सबसे नीचे के लोग हैं जो सबसे ग़रीब हैं – चाहे वे किसी जाति या धर्म के हों ऊपर उठे। सांस्कृतिक परिवर्तन है – समाज में त्याग, बलिदान,प्रेम, अहिंसा, भाई चारा आदि सदगुणों का विकास करना।
जिन्होंने उनके सम्पूर्ण क्रांति के सपने को अव्यवहारिक कहा था उनके लिए जयप्रकाश बाबु का कहना था “ जिसने सपना देखना छोड़ दिया वह कभी क्रांति नहीं कर सकता। अगर क्रांतिकारी स्वप्नदर्शी नहीं रहा तो हमारे नए समाज की तस्वीर या नए समाज का चित्र कहाँ मिलेगा। सपनों में रम जाना और उन्हीं सपनों को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत करना मुझे अधिक पसंद है। ये नौजवानों के लिए भी संदेश था।
जयप्रकाश शुरू से ही युवा हृदय सम्राट के रूप में विख्यात थे। नौजवानों की उनके ऊपर अटूट आस्था थी। इसी आस्था और प्यार के चलते अपने जीवन के चौथेपन में भी करोड़ों युवक, किशोरों का नेतृतव कर सके। आज के युवकों को लोक नायक जयप्रकाश की सम्पूर्ण क्रांति “ को समझने की आवश्यकता है ।