गाँधी जयंती पर विशेष
– प्रशांत सिन्हा
लॉक डाउन के दौरान घर में रहने के कारण गांधी जी पर कुछ पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला। तभी मै गांधी जी को समझ पाया। अब मेरा मानना है जिसने गांधी को नहीं पढ़ा वह गांधी को नहीं समझा। एक गाल पर चांटा पड़ने पर दूसरे गाल को आगे बढ़ाने का फिलॉस्फी समझना आसान नहीं है। ज़रूरत है कि आने वाली पीढ़ी को गांधी के विचारों से अवगत कराएं।
2 अक्टूबर को भारत में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी का जन्म दिवस ” गांधी जयंती ” के रूप में मनाया जाता है। महात्मा गांधी द्वारा अहिंसा आंदोलन चलाए जाने के कारण विश्व स्तर पर उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए इस दिन को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
इतिहास में साधारण से असाधारण हो जाने वाले व्यक्तित्वों की सूची बड़ी है, लेकिन साधारण से सर्वोत्तम साधारण होने का उदाहरण केवल गांधी जी है। वे राजनीति कार्यकर्ता थे। वे आंदोलनकारी थे।
गांधी एक बड़े मनोवैज्ञानिक भी थे। दूसरे इंसान को समझने की शक्ति असाधारण थी। उन्होंने अपने प्रेम से भारत के हृदय पर अधिकार कर लिया। गृहस्थ जीवन बिताते हुए उन्होंने न सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया, बल्कि पत्नी , बच्चों के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए उन्होंने असंख्य लोगों को स्वयं से जोड़कर परिवार को बड़ा किया। गांधी का मौन व्रत तथा आधार साधु संतों के समान था। उनके वस्त्र श्रमिकों की तरह थे। गांधी की हिन्दू धर्म में गहरी आस्था थी लेकिन हर धर्म के मर्म को समझा था। गांधी जी सेवा को ही सच्ची पूजा मानते थे। उन्होंने कभी भी कोई तप- यज्ञ या अनुष्ठान नहीं किया। सभी धर्मों के ज्ञान का निचोड़ उन्होंने यह निकाला कि धर्म में परिभाषाएं अलग अलग होती है लेकिन उनका मर्म मानव की क्षमता के अनुसार निस्वार्थ सेवा पर ही केन्द्रित होता है। वे स्त्री को शक्ति स्वरूपा मानते थे, इसलिए स्वतंत्रता संघर्ष से उन्होंने स्त्रियों को जोड़ा। उनका उपवास शारीरिक बलिदान भी उनकी आत्मा की आहुति था। अणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली था उनका उपवास।
गांधी विश्व इतिहास का आश्चर्य है। लगभग एक सदी पहले से ही सारा विश्व सत्य और सत्याग्रह पर आधारित गांधी की अवधारणा को ध्यान पूर्वक देखता रहा। मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे शख्सियत ने अन्याय और शोषण तथा अपमानजनक स्थितियों से छुटकारा पाने गांधी जी के विचारों और उनकी सार्थकता को न केवल समझा बल्कि उनसे प्रेरणा लेकर अनुसरण किया और उसमे सफलता पाई। गांधी को पूरे विश्व ने सराहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी गांधी के प्रशंसक हैं। गांधी सबकी समृद्धि चाहते थे। उन्होंने भौतिक साधन को स्टेटस सिंबल न बना कर आत्म संयम को स्टेटस सिंबल बनाया। खादी, चरखा, और त्याग गांधी समर्थक की पहचान बनी।
उनकी कुछ बातें मेरे जहन में बैठ गई हैं। उनका कहना था कि मनुष्य की कमजोरी का अनुकरण नहीं बल्कि उसके गुणों का अनुकरण करना चाहिए। वे कहा करते थे कि मै अपने को तब अधिक बलवान महसूस करता हूं जब अपनी गलती स्वीकार कर लेता हूं जिस प्रकार झाड़ू गंदगी को हटाकर जमीन को पहले से भी अधिक साफ कर देती है उसी प्रकार गलती को स्वीकार करने से हृदय हल्का और साफ हो जाता है।
उन्होंने आत्मा से लेकर शौचालय तक साफ रखने का संदेश दिया। वे कहता थे ईश्वर भी सफाई पसंद हैं।इसलिए न सिर्फ मन के विकार बल्कि आस पास की गंदगी को भी दूर करें।इसी से प्रेरणा लेकर प्रधान मंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2014 में लाल किले से गांधी जी के जन्म के 150 वर्ष पूरे होने पर देश की ओर से उन्हें स्वच्छ भारत की सौगात देने का संकल्प लिया था। आज इतने वर्षों बाद लोगों ने स्वच्छता के महत्व को समझा। बड़े उत्साह से शौचालयों के निर्माण का कार्य सारे देश में हुआ। आशा है बहुत जल्द देश खुले शौच से मुक्त हो जाएगा।
आज भी देश में बहुत से लोग राष्ट्र के कार्य में इस आशा के साथ जुड़े हैं कि यह देश गांधी के मूल्यों से स्वयं को कभी अलग नहीं कर पाएगा। प्रधान मंत्री मोदी की स्वच्छता की सोच उसी का उदाहरण है।
भारत में गांधी जी के द्वारा अपनाए गए शाश्वत मूल्यों की पुनर्स्थापना ही विकल्प है।