– प्रशांत सिन्हा
जब कोविड 19 ने दुनिया भर मे तहलका मचाना शुरू किया तो इटली में फ्रांसेस्का डोमिनिकी को संदेह था कि वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या बढ़ी है। प्रदूषित स्थानों मे रहने वाले लोगों को पुरानी बीमारियां होने की संभावना अधिक होती है और ऐसी रोगी कोविड-19 के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील रहे। इसके अलावा वायु प्रदूषण प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करता है और वायु मार्ग को उत्तेजित करता है जिससे शरीर श्वसन वायरस से लड़ने मे कम सक्षम होता है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने भी एक अध्ययन के दौरान पाया कि जिन इलाकों में प्रदूषण ज्यादा था वहां पर कोरोना से मौतें ज्यादा हुई वहीं जहां प्रदूषण कम मात्रा मे था वहां पर संक्रमण भी कम फैला और मौतों का आंकड़ा भी कम रहा। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद (आईसीएमआर) के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंप्लीमेंटेशन रिसर्च ऐंड नॉन कम्युनिकेबल डिजीज के निदेशक डॉ अरुण शर्मा का कहना है कि अगर वायु प्रदूषण को कम करने के लिए समय रहते कदम उठा लिया होता तो कोरोना के भयावह रूप से बचा जा सकता था। वायु प्रदूषण नही होने से बैक्टिरियल, वायरल और फंगल बीमारियों से भी निजात मिल सकती है।
जानकारी के मुताबिक शोधकर्ता ने अध्ययन में बताया है कि पी एम 2.5 कणों मे केवल 1Mg/m3 की बढ़त भी करोना वायरस के मरीजों के साथ जुड़ी हुई है, इसकी वजह से करोना वायरस की मृत्यु दर में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई । कोविड 19 मुख्य रूप से श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है। इस रोग से बचने के लिए किसी के भी पूरी तरह स्वस्थ होने की पहली शर्त है, लेकिन अगर आपका फेफड़ा स्वस्थ नही है तो यह महामारी खतरनाक साबित हो सकती थी, जैसा कि दुसरी लहर में दिखा।
वायु प्रदूषण जहर का काम कर रहा है जो धीरे धीरे मनुष्य के शरीर को क्षति पहुंचाता हुआ उम्र को कम करता जा रहा है। गंदी हवा गैसों और कणों का जटिल मिश्रण है। पी एम 2.5 कण जिनमें से कुछ इतने छोटे होते हैं कि वे रक्त प्रवाह मे चले जाते है जो बहुत घातक होते हैं। 2019 मे वायु प्रदूषण का घर के अंदर और बाहर, दुनिया भर में लगभग सात करोड़ मौतों में योगदान देने अनुमान है, जो वैश्विक मृत्यु दर का लगभग 12 प्रतिशत है। इसका असर शरीर के विभिन्न प्रणालियों को प्रभावित करता है। सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के लंबे समय तक सम्पर्क में रहने से संज्ञात्मक गिरावट हो सकती है। मस्तिष्क की संरचना मे परिवर्तन से अल्जाइमर रोग का खतरा बढ़ जाता है।
तंत्रिका प्रणाली (नर्वस सिस्टम ): प्रदूषण न्यूरो डेवलपमेंटल विकारों और पार्किनसन्स से होने वाली मौतों से जुड़ा हुआ है। कण केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की यात्रा कर सकते हैं और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सक्रिय कर सकते हैं।
हृदय प्रणाली (कार्डिओ वैस्कुलर सिस्टम): संसर्ग हृदय रोगों से मृत्यु के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है जिसमें कोरोनरी धमनी रोग, दिल का दौरा, आघात और रक्त के थक्के शामिल हैं।
श्वसन प्रणाली (रेस्पिरेटरी सिस्टम): प्रदूषण वायु मार्गों को परेशान कर सकता है और सांसों की तकलीफ, खांसी, अस्थमा और फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकता है। यह क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी ) में खतरे को बढ़ा सकता है।
अंतः स्त्रावि तंत्र (एंडोक्राइन सिस्टम): कण प्रदूषण एक अंत स्त्रावी अवरोधक है जो मोटापा और मधुमेह जैसे रोग होते हैं। दोनों हृदय रोग के लिए जोखिम हैं। गुर्दे की प्रणाली (रीनल सिस्टम) लम्बे समय तक सूक्ष्म कणों में वायु प्रदूषण के संपर्क मे रहने से क्रॉनिक किडनी रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। शहरी क्षेत्रों में गुर्दे की बीमारी की दर सबसे अधिक है।
प्रजनन प्रणाली (रिप्रोडक्टिव सिस्टम): प्रदूषण कम, प्रजनन क्षमता और असफल गर्भधारण से जुड़ा हुआ है। प्रसव पूर्व संसर्ग से समय से पहले जन्म, जन्म के समय वजन और सांस की बीमारियां हो सकती हैं।
प्रदूषण के कारण सांस की बीमारियां तेजी से बढ़ रही है। 1919 मेडिकल जर्नल लॉसेंट मे प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक़ तीन दशक में सांस की बीमारी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज से पीड़ित मरीजों की संख्या देश में करीब 4.2 % व 2.9% लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। इसका सबसे बड़ा कारण प्रदूषण को माना गया है। प्रदूषण के कारण कम उम्र के लोगों में भी फेफड़े का कैंसर देखा जा रहा है। जो लोग धुम्रपान नही करते वे भी फेफड़े के कैंसर का शिकार हो रहे हैं।
इस प्रदूषण से जान का नुकसान ही नहीं हो रहा है, माल का भी नुकसान हो रहा है। देश भर में वायु प्रदूषण से अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ रहा है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर और ग्रीन पीस द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल भारतीय अर्थव्यवस्था को 15000 करोड़ डॉलर (1.05 लाख करोड़ रुपए ) का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है। यदि सकल घरेलू उत्पाद के रूप मे देखे तो यह नुकसान कुल जीडीपी के 5.4 फ़ीसदी के बराबर है। इसके अलावा इस प्रदूषण से हुई बीमारी के कारण देश में हर साल 49 करोड़ काम के दिनों का नुकसान हो रहा है।
वायु प्रदूषण एवं पर्यावरण सम्बन्धित समस्याओं को समझने , विश्लेषण करने और समाधान के लिए सरकारों और जनता दोनों में जागरूकता की आवश्यकता है अन्यथा भावी पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी।
बेहतरीन लेख के लिए हार्दिक बधाई !!!