-ज्ञानेन्द्र रावत*
वर्षा जल संरक्षण ही संकट का समाधान
वर्तमान संसद के सत्र में कल यानि 5 अगस्त को सरकार ने यह खुलासा किया है कि तमाम कोशिशों के बावजूद देश में भूजल का स्तर गिरता ही जा रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) निगरानी कुओं के नेटवर्क के माध्यम से क्षेत्रीय स्तर पर पूरे देश में समय-समय पर भूजल स्तर की निगरानी कर रहा है। जल स्तर के आंकड़ों के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि निगरानी किए गए लगभग 68% कुओं में जल स्तर की गहराई जमीनी स्तर से ५.० मीटर नीचे है। कुछ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के अलग-अलग इलाकों में गहरा भूजल स्तर (जमीन के स्तर से 40 मीटर से अधिक नीचे) भी देखा गया है।
कह सकते हैं कि हम भूजल के 80 फीसद हिस्से का तो दोहन कर ही चुके हैं। इसके बावजूद हम यह नहीं सोचते कि जब यह नहीं मिलेगा, तब क्या होगा? इसका एकमात्र हँ है कि वर्षा जल का संरक्षण – संचय कर भूजल रिचार्ज प्रणाली को बढा़वा देकर गिरते भूजल स्तर को रोका जाये और उचित जल प्रबंधन से सबको शुद्ध पेयजल मुहैय्या कराया जा सकता है। इसके बिना इस समस्या के समाधान की उम्मीद बेमानी है।
दुख इस बात का है कि इसके बावजूद देश में ऐसा कुछ खास होता दिखाई नहीं देता जिससे आशा की कुछ किरणें दिखाई दें।
इसका सबसे बडा़ कारण कारगर नीति के अभाव में जल संचय, संरक्षण और प्रबंधन में नाकामी है जिसका खामियाजा समूचा देश कहीं बाढ़, कहीं भीषण सूखा और कहीं जल संकट के भयावह रूप में भुगत रहा है।
जल राज्य का विषय होने के कारण, देश में संरक्षण और जल संचयन सहित जल प्रबंधन पर पहल मुख्य रूप से राज्यों की जिम्मेदारी है। हालांकि, केंद्र सरकार मानती है कि देश में भूजल के संरक्षण, प्रबंधन और वर्षा जल संचयन के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उसे ही पहल करनी पड़ती है।
परन्तु यह भी दीगर है कि केंद्र की पहल भी नाकाफी है। भारत सरकार ने 2019 में जल शक्ति अभियान (JSA) शुरू किया, जो भारत में 256 जिलों के पानी की कमी वाले ब्लॉकों में भूजल की स्थिति सहित पानी की उपलब्धता में सुधार करने के उद्देश्य से एक मिशन मोड दृष्टिकोण के साथ एक समयबद्ध अभियान है। इस संबंध में, जल शक्ति मंत्रालय के तकनीकी अधिकारियों के साथ केंद्र सरकार के अधिकारियों की टीमों को पानी की कमी वाले जिलों का दौरा करने और उपयुक्त हस्तक्षेप करने के लिए जिला स्तर के अधिकारियों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिनियुक्त किया गया था।
यह भी बता दें कि भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए मास्टर प्लान- 2020 सीजीडब्ल्यूबी द्वारा राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के परामर्श से तैयार किया गया है जो अनुमानित लागत सहित देश की विभिन्न भू-भाग स्थितियों के लिए विभिन्न संरचनाओं को दर्शाने वाली एक वृहद स्तरीय योजना है। मास्टर प्लान में लगभग 36794.00 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ संबंधित क्षेत्रों में छत क्षेत्र और वर्षा के आधार पर देश के शहरी क्षेत्रों में लगभग 1.06 करोड़ छत के वर्षा जल संचयन संरचनाओं के निर्माण की परिकल्पना की गई है।
परन्तु ताजे आंकड़े यही बताते हैं कि भूजल के स्तर में गिरावट बरकरार है। आज यदि जलापूर्ति को लें, यह अधिकांशतः भूजल पर ही निर्भर है। लेकिन असलियत में वह चाहे सरकारी मशीनरी हो, आमजन हो, उद्योग हो या कृषि क्षेत्र, सभी ने इसका इतना दोहन किया है जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। हालत इतनी बदतर है कि हम अमरीका से 124 गुणे से भी ज्यादा पानी का दोहन करते हैं। इसकी वजह से पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन की स्थिति पैदा हो गयी है। यह भयावह खतरे का संकेत है कि भविष्य में कितनी भीषण स्थिति आ सकती है। यह सब पानी के अत्याधिक दोहन, उसके रिचार्ज न होने के कारण जमीन की नमी खत्म होने, ज्यादा सूखापन आने, भूगर्भीय हलचलों से जमीन की सतह की लहरों व पानी में जैविक कूडे़ से निकली मीथेन जैसी खतरनाक गैसों व अन्य गैसों के इकट्ठा होने से सतह पर गर्मी बढ़ने का नतीजा है।
यदि देखा जाए तो आज पानी की स्थिति बेहद गंभीर है और जल संकट को समूची दुनिया झेल रही है। असलियत यह है कि आज दुनिया के 37 देश पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं। सिंगापुर, जमैका बहरीन, कतर, पश्चिमी सहारा, सऊदी अरब, कुबैत समेत 19 देश ऐसे हैं जहां पानी की आपूर्ति मांग से बेहद कम है। हमारा देश इन देशों से मात्र एक पायदान पीछे है।
पृथ्वी की सतह पर मौजूद 71 फीसदी पानी में से कुल 2.5 फीसदी लवणयुक्त पानी है जबकि उपलब्ध जल का 0.08 फीसदी पानी ही मानव के इस्तेमाल लायक है। हालात इतने खराब हैं कि दुनिया में पांच में से एक आदमी की साफ पानी तक पहुंच नहीं है। यही वह अहम वजह है जिसके चलते विकासशील देशों में हर साल 22 लाख लोगों की मौत साफ पानी न मिलने के कारण इससे पैदा बीमारियों के चलते होती है।
जहां तक जल गुणवत्ता का सवाल है हमारा देश दुनिया के 122 देशों में 120 वें पायदान पर है। यह हमारे लिए गर्व की बात तो नहीं है बल्कि बेहद दुख की बात है।
*लेखक चर्चित पर्यावरणविद और वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।