विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
मेवात क्षेत्र में उत्तरप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान का अलवर, भरतपुर और कुछ गांव हिंडौन नदी के आते हैं। यह भारत की राजधानी और केंद्र सत्ता के चारों तरफ के क्षेत्र है। यहाँ एक काल में लोभ, लालच, दबाब अन्य कारणों से धर्म परिवर्तन हुए थे। यहां के लोग इस धर्म परिवर्तन के बाद भी अपने जीवन को वैसे ही बनाए रखे हुए हैं।अपनी धरती से गहरा जुड़ाव और प्रकृति के साथ प्यार से अपनी खेती में लगे रहना, इनका काम था। बाद के दिनों में सत्ता में रहने के बाद धहाडें मारने की पद्धति भी बनाई। इससे लूट, झगड़े, लड़ाई यह सब धीरे-धीरे व्यवहार में आने लगे। यहां एक बहुत अच्छी बात थी कि यह समाज में अपने व्यवहार में जैसे थे, वैसे के वैसे बने रहे।
इस इलाके में जल का सबसे बड़ा स्रोत अरावली पर्वत है। अरावली में जब खूब जंगल था, तब अरावली के नीचे का पानी बहुत ही मीठा और सेहत के लिए बहुत अच्छा था। इसलिए अरावली में रहने वाले लोग लंबे-तगड़े, मजबूत और बहुत मेहनती होते थे। बाद के दिनों में मेहनत करने का व्यवहार बदला और प्रकृति के साथ जो गहरे रिश्ते थे, उनमें भी काफी बदलाव और गिरावट आयी। सत्ता ने जैसा यह चाहते थे, वैसा नहीं किया, तो मारपीट लड़ाई – झगड़े की नौबत हमेशा बनी रही। लेकिन इनको देखने पर ऐसा लगता है कि, यह बहुत सरल, सादगी और सहज स्वभाव वाले हैं। सहज स्वभाव के कारण जब इच्छा पूर्ण नहीं होती है, तो फिर उतने ही असहज होकर हमलावर बन जाते है।
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यह इलाका पानी की कमी के कारण उजड़ा हुआ है, क्योंकि जब आपके पास पानी को ठीक से प्रबंधन करने की कोशिश नहीं होती तो बेपानी हो जाते हैं। मेवात अरावली के पानी का ठीक से प्रबंधन नहीं कर पाया और धरती से पानी बहुत तेजी से निकालता गया। जिसके कारण यहाँ का भूजल स्तर बहुत नीचे चला गया है। जबकि यह पूरा इलाका सघन जल क्षेत्र था। यहाँ अरावली की पहाड़ियों से पानी आता था, इलाके के बीचों-बीच यमुना का प्रवाह था और थोड़ा ब्रज क्षेत्र था अर्थात इस क्षेत्र ने अपने आप को पानीदार बनाने की कोशिश नहीं की। हरियाणा ने जरूर एक मेवात डेवलपमेंट अथॉरिटी बनायी थी। इस हेतु बड़ा बजट प्रस्तावित भी हुआ था। लेकिन जल का संरक्षण करने के नाम पर जो यहां जल संरचनाओं का निर्माण हुआ था, वह सभी थोड़े दिनों में ही टूट गए।
मैं पिछले 3 दिनों से इस इलाके में यात्रा कर रहा हूँ। इस दौरान देखा कि सिर्फ एकाध बांध ही होगा जो बचा है, नहीं तो सब बांध टूटे हुए दिखाई दिए है। मैं, पाटखोरी गया था। यहाँ एक बड़ा बांध था, जो बारिश के पानी के साथ ही बह गया। इसके बाद मेवली भी गया था, जहाँ तीन बाँध हैं। यह तीनों के तीनो बांध टूटे पड़े हैं। यह बाँध जिस साल बने थे, उसी साल पानी में बह गए थे। यही हाल पूरे क्षेत्र में देखने को मिला।
मेवात की अपनी 3 दिन की यात्रा में कई गांवों में गया था। सभी जगह की जल संरचना टूटी हुई है। यहाँ की सत्ता को लगता है कि जल संरक्षण का काम केवल नापतौल का काम है और जबकि जल संरक्षण का काम नापतौल का काम नहीं होता। जल संरक्षण का काम में तो पहले समाज का जल नापा जाता है कि, उसके अंदर कितना पानी है? उसके बाद जगह का चिन्हींकरण किया जाता है। उसके उपरांत उस जगह में संरचना बनाने में कैसे कितना कम खर्च करके, ज्यादा पानी रोक सकते हैं, धरती के पेट में डाल सकते हैं। यह सब देखा जाता है।
मैंने जब पाठखोरी का बांध देखा तो बहुत दुखी था, क्योंकि बाँध, इतना नीचे है कि उसमें जहां पानी रुकने की जगह है, वह बांध से भी ऊँची है। जब पानी रूकने की जगह बांध से ऊंची है तो वह पानी कहां रुकेगा? इसलिए बाँध टूट गया है। इसी तरह से मेवली के सारे बांधों में जगह का चिन्हींकरण ठीक ढंग से नहीं हुआ है। मेवात डेवलपमेंट अथॉरिटी ने जगह का चिन्हीकरण ठीक से नहीं किया। इसलिए आंखो का पानी और धरती का पानी दोनों को मिलाना पड़ेगा, तब पानी रुकेगा ।
मेवात को पानीदार बनाया जा सकता है। लेकिन मेवात को पानीदार बनाने से पहले, लोगों को पानीदार बनना होगा। जब तक लोग पानी को प्यार नहीं करेंगे, पानी के काम को खुद सहेजने की कोशिश नहीं करेंगे, तब तक मेवात पानीदार नहीं बन सकता। मेवात को पानीदार बनाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि मेवात के अपने पानी को सहेजने के काम में जुटें। मैं, 3 दिन में कई गांवों में गया लेकिन कहीं भी ऐसे लोग नहीं मिले, जो अपने पानी को खुद अपनी मेहनत से पानी संरक्षण का काम करना चाहते हों ! तो जब तक लोगों में समझ नहीं जगेगी, तो फिर यह पानीदार कैसे बनेगा? फिर यह खारे पानी का क्षेत्र बन जायेगा। इसलिए यदि इस इलाके को खारे पानी से मीठे पानी वाला बनाना है, तो पानी में बदला जा सकता है। क्योंकि इनके पास अरावली का बहुत बड़ा हिस्सा है जिसका वर्षा जल इनकी जरूरत भी पूरी कर सकता है और धरती के पेट को भी भर सकता है। अभी यहाँ का पानी मिट्टी को काटता हुआ आगे बढ़ता है। तो इस इलाके में जब ज्यादा तेज बारिश होती है, तो बाढ़ आ जाती है और जब बारिश नहीं होती तो बहुत सुखाड़ आ जाती है। यदि इस इलाके को पानीदार बनना है तो अपने वर्षा के जल को सहेजना पड़ेगा।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।