रविवार विशेष
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
हबसवें (केन्या): हबसवें केन्या और सोमालिया का बॉर्डर है। यहाँ पर 20 हजार के लगभग लोग रहते है। सोमालिया का बड़ा समुदाय रहता है। यह बहुत ही संकटग्रस्त क्षेत्र है। यहां के लोग बेपानी होकर उजड़ रहे है। इनके पशु भूखे प्यासे मर रहे हैं। यहां के मरे हुए पशुओं को देख कर आत्मा में बहुत दुख हुआ। यहां बहुत ही गंभीर हालत है।इस इलाके में गाँव के गाँव पूरे खाली हो रहे हैं ।
यहाँ अकाल के कारण दूर-दूर तक कुछ दिखाई नहीं देता, पूरा इलाका वीरान है।यहाँ चारों ओर मरे हुए जानवर डले हुए है, जिसके कारण यहाँ बहुत बदबू है। यहाँ रूकना भी बहुत कठिन है। यहाँ सिर्फ एक बोरवेल है, जो सौर ऊर्जा से चलता है। वहाँ आस-पास पहले पानी होता होगा, इसलिए हजारों गाय इसके आस-पास मरी हुई डली थीं और पानी बिल्कुल भी नहीं था।
यह देश बेपानी होकर उजड़ रहा है, बहुत लोग इस देश छोड़कर, दूसरे देशों में जा रहे हैं। जीवन, जीविका का संकट है और जमीर की तो कोई बात ही नहीं थी। अंग्रेजों ने जो भी बंटवारा किया है, वहां विवाद होते ही हैं । यहां तो बहुत ही ज्यादा भयानक हालत है, जबकि सभी इस्लामिक लोग हैं। फिर भी बहुत गम्भीर हालात है। यहाँ मारकाट, लड़ाई-झगड़े, भ्रष्ट्राचार का तो कोई अंत ही नहीं है। ऐसी दुर्दशा देखकर मन को बहुत दुख होता है, लेकिन कुछ अच्छे लोग है, जो इनकी सेवा में लगे हुए है जैसे- मुख्तार ऐंगले, हसन।
यहां सोमालियन और केन्याई समुदाय को उनके अधिकार व न्याय के अनुरूप पानी मिल सके , इस हेतु मेरे नेतृत्व में एक बैठक आयोजित हुई। यहां मैं दोनों देशों के समुदायों के साथ बैठकर, जिससे दोनों को पानी मिल सके, इस हेतु सहमति बनाने का प्रयास कर रहा हूँ। हम तो केन्या के अतिथि हैं, इसके बावजूद भी यहां सोमालियन समुदाय के चीफ , डिस्ट्रिक्ट चीफ भी हमें स्वीकारते हैं।
यहां 3 दिसंबर, 2021 को देर रात तक दोनों समुदाय के बीच अच्छी वार्ता हुई। इस बैठक में दोनों समुदाय के लोग शामिल रहे। इस दौरान हाबिस नदी की वाटर बजटिंग की गई और जल संरचना निर्माण हेतु जगह का चिन्हीकरण करने की प्रक्रिया जारी है। पानी के कामों से ही यहां के लोगों की हालत में सुधार होगा। लोगों की सकारात्मक प्रक्रिया मिलना, सुखद है ।
सभी ने हमारी बातों को बहुत गंभीरता से लिया। इसीलिए हमें लगता है कि यदि इस विवाद का छोटा हिस्सा भी हम ठीक कर सकें, तो आगे के विवाद भी ठीक होंगे। क्योंकि यह विवाद ही संसाधनों की कमी के कारण है और इसका एक मात्र उपाय जल की उपलब्धता कराना है।
हमने वहां इसके बाद हर्षाबेन नदी पर जल संरचना की जगह का चिन्हींकरण किया।
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इसके उपरांत हम हबसवें से 250 किलोमीटर दूर गरिसा विश्वविद्यालय के लिए रवाना हुए। रास्ते में पूरा र्निजन जंगल देखने को मिला, मीलों दूर तक पूरे गाँव के गाँव उजड़े हुए थे, एक भी व्यक्ति नजर नहीं आया। यहाँ के सारे लोग अलग-अलग जगहों पर चले गए हैं, कुछ लोग यहाँ से 20 किलोमीटर दूर स्थित रिफ्जू कैंप में रहने लगे हैं।इन उजड़े हुए घरों को देखकर बहुत दुख हुआ। यहाँ भी गायें मरी हुई डली थीं।
गरिसा विश्वविद्यालय तक आने में दो कस्बा मिले-मग्गामदादित और लोकोबोला। यह दोनों भी उजड़ गए हैं। यहाँ के जानवरों की भी बहुत बुरी हालत है। यहाँ चारों तरफ उजाड़, वीरान दिखता है। इस विश्वविद्यालय में हमने यहाँ के वाइस चांसलर, प्रोफेसर, यहाँ के डीन, रजिस्ट्रार, सभी के साथ बैठक की। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने मुझसे पूछा कि हम कैसे लोगों को इस आपदा से बचा सकते हैं ? इस गंभीर संकट से कैसे निपटा जा सकता है। तब मैंने अपने राजस्थान के अनुभवों को प्रस्तुती के माध्यम से बताया। सभी ने इसे व्यवहारिक काम माना।
विश्वविद्यालय के सभी लोग बहुत चिंतित दिख रहे थे। इन लोगों ने बताया कि इस उजाड़ को देखने के लिए सरकार या अंतरराष्ट्रीय संगठन आगे नहीं आ रहे हैं क्योंकि इस विद्यालय में 2015 में 147 विद्यार्थियों व शिक्षकों पर हमला करके, जान से मार दिया गया था। इसलिए विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों व शिक्षकों की संख्या नाम मात्र के लिए रह गई है।
इथोपिया, सोमालिया, केन्या के देशों के लोग इस इलाके में रहते, वह सभी पशुपालक हैं। ये इलाका हमारे भारत में जो पुराना रेगिस्तानी मरुस्थल था, उससे भी ज्यादा भयानक हालत में है। अपने यहाँ तो खाने के लिए काफी कुछ था, लेकिन यहाँ के सभी जानवरों की हालत बहुत गम्भीर है। यदि यहाँ अगले 10 से 15 दिन में बरसात नहीं होती है तो यहाँ के सारे जानवर मर जायेंगे। इतनी बुरे हालात पर बहुत गम्भीर चर्चा हुई।
यहाँ नदी के पानी का जो विवाद था, उसको यहाँ के मुखिया, चीफ, सरकारी अधिकारी, सामुदाय के कुछ मुख्य लोगों के साथ बैठकर साईट को तय किया गया। आशा है कि, जल्दी इस पर काम शुरू होगा। इससे काफी पानी मिल जायेगा। एक आशा की किरण दिखती है।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं।