ऋषिकेश: रंभा का इतिहास और वर्तमान उसके स्वरूप की तरह ही काफी उलझा हुआ दिखता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक स्वर्गलोक से धरती पर आईं अप्सरा रंभा के नाम पर नदी का नामकरण हुआ। साथ ही रंभा नदी को प्रेम का प्रतीक माना जाने लगा।
स्थानीय लोगों के मुताबिक अपने शुरुआती काल मे रंभा करीब 60 फिट की चौड़ाई में प्रवाह करती थीं। अब सिकुड़ कर महज 5 फिट चौड़े नाले में तब्दील हो गई हैं।
अपने उद्गम स्थल ऋषिकेश के चंद्रेश्वर महादेव मंदिर से शिवा जी नगर , वीरभद्र महादेव मंदिर होते हुए खदरी तक करीब 3 किमी का सफर तय करते हुए रंभा नदी गंगा में तिरोहित हो जाती हैं।
अपने उद्गम स्थल सहित वीरभद्र मंदिर तक रंभा कभी बेत के वृक्षो से सहारा पाती थी। लोगों की आक्रांता जैसी हरकतों ने सिर्फ नदी की काया को चौपट कर दिया बल्कि अवैध निर्माणों की बाढ़ पैदा कर दी। हाल ही में डीएम देहरादून ने आदेश किया कि रंभा के दोनों ओर 21-21 फिट निर्माणों को खाली कराया जाए। आदेश अमल में आ पाते इससे पहले ही भूमाफियाओं और तथाकथित पर्यावरण हितैषियों की जुगलबंदी ने नई स्थिति पैदा कर दी। नतीजा ये रहा कि स्थानीय सियासत ने डीएम के आदेशों को बौना कर सीवरलाइन बिछाने के लिए सिर्फ डेढ़ फीट नदी के किनारे को खाली करवाने का आदेश पारित करवा लिया।
इसी के साथ रंभा की चिंता तिरोहित हो गई।
शिवाजी नगर क्षेत्र में लगातार सिकुड़ती रंभा नदी। यहां धोबियों ने कपड़े धोने का घाट बना लिया है। समूल गंदगी गंगा में गिर रही।
ये वीरभद्र मंदिर क्षेत्र है। यहां पर रंभा नदी के स्वाभाविक प्रवाह को कंक्रीट के पुश्तों से प्रभावित कर दिया गया है। पर्यावरणविदों की मानें तो नदी के किनारों पर बांस और बेंत रोपे जाने चाहिए।
वीरभद्र मंदिर के समीप वन क्षेत्र। यहां पर नदी क्षेत्र में अवैध रिजॉर्ट खड़े कर दिए गए हैं। यहां की गंदगी रंभा में गिर रही है। आगे चलकर मलबा गंगा में उतरता है।
ये है शिवाजीनगर क्षेत्र। यहां अवैध रिहाइश काबिज हो चुकी है। इसकी वजह से न सिर्फ सीवर बल्कि प्लास्टिक कचरा भी रंभा में डंप किया जा रहा है। नतीजा ये है कि रंभा का दायरा सिकुड़कर नाले में तब्दील हो चुका है।
शिवाजीनगर: यहां के हालात देखकर सहज अंदाजा हो जाता है कि रंभा कितनी तेजी से ट्रांचिंग ग्राउंड में तब्दील हो रही है।
शिवाजीनगर: एक तरफ कूड़ा दूसरी ओर गंदगी के ऊपर उगी घासफूस। इसने रंभा का अस्तित्व ही समाप्त सा कर दिया है। इसके पीछे अवैध कब्जों की साजिश से भी इंकार नहीं किया जा सकता। शासन प्रशासन की लापरवाही का आलम ये है कि रंभा नदी की धकेलकर सैकड़ों अवैध आवास बना दिये गए और अफसर चैन की नींद सोते रहे।