– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
सी.एफ.सी. के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है
व्यवस्था में छेद होने से पहले हमारे विचारों में क्षुद्रता आती है और यह क्षुद्रता यदि वैचारिक हो तो इसका अर्थ यह है कि हमारे पतन की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। यह सुलगती सच्चाई है औैर इस सच्चाई का सबब यह है कि आज राजनीति से लेकर समाज, अर्थव्यवस्था और हमारा पर्यावरण, सब कुछ छलनी हो चला है। हमने ओजोन की छतरी में भी छेद कर डाला है, जो सूरज की खतरनाक किरणों से हमें अब तक+-6
0932. बचाती रही है। वह अब लाल गर्मी बनकर धरती से बादलों को रूठाने लगी है। परिणामस्वरूप बेमौसम वर्षा, बादल का फटना, बाढ़-सुखाड़ की मार किसानी-जवानी-पानी पर पड़ने लगी है।
चिन्ता की बात यह है कि अब यह बेसमझी, हमारी जीवन पद्धति में छेद सिर्फ छेद नहीं, मानव अस्तित्व के लिए अंतहीन सुरंग बनने की ओर बढ़ चला हैे। हर वर्ष 16 सितम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय ओजोन दिवस व 22 मार्च को जल दिवस मनाया जाता है, लेकिन यह समस्या सिर्फ एक दिन का समारोह मनाने से नहीं सुलझने वाली है। समाधान के लिए साल के 365 दिन हमें जल और ओजोन दिवस मनाने होंगे।
नासा के उपग्रह द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार ओजोन छिद्र का आकार 13 सितम्बर 2007 को अपने चरम पर पहुँच गया था, कोई 97 लाख वर्ग मील क्षेत्र के बराबर। यह क्षेत्रफल उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रफल से भी बड़ा ठहरता है। 12 सितम्बर ,2008 को छेद का आकार और बढ़ गया था। वायुमण्डल में मौजूद ओजोन की चादर लगातार झीनी हो रही है। सूरज से निकलने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणें हमारे अस्तित्व को छेद रही हैं। इस छतरी को छलनी बनाने के लिए कोई और नहीं, खुद हम, हमारी सोच और हमारी जीवन शैली जिम्मेदार है।
धरती में नमी से हरियाली बढ़ाना ही इसका समाधान है। राष्ट्रीय सरकारें, संयुक्त राष्ट्र संघ केवल गैसों को कारण बता रहा था। तरुण भारत संघ ने कहा ‘”जल ही जलवायु है-जलवायु में जीवन जल है -क्लाइमेट इज़ वाटर, वाटर इज़ क्लाइमेट”। इसके बाद वर्ष 2015 से हमारी किसानी और पानी को जलवायु परिवर्तन में शामिल किया है। अब हरियाली का घटना जलवायु परिवर्तन का कारण माना जाने लगा है। ओजोन का छेद भी हरियाली-खेती से संबंध रखता है। खेती संस्कृति रहेगी तो छेद बढ़ना रूकेगा। उद्योगपतियों की बपौती कम्पनी राज से बनेगी तो जलवायु परिवर्तन संकट बढ़ेगा।
इस कारण आज हमें त्वचा कैंसर, त्वचा के बूढ़ा होने और आँखों की खतरनाक बीमारियों के खतरों से दो – चार होना पड़ रहा है। यदि समय रहते इस छेद को भरने की कारगर कोशिशें नहीं की, तो ओजोन की छतरी का यह छेद हमारे जीवन में इतने छेद कर डालेगा कि उसे भर पाना कठिन हो जाएगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि ओजोन में छेद के लिए जिम्मेदार क्लोरो – फ्लोरोकार्बन (सी.एफ.सी.) के उत्पादन और इस्तेमाल पर आज से पूर्ण प्रतिबंध भी लगा दिया जाए, तो भी समस्या बनी रहेगी। क्योंकि वातावरण में मौजूद सी.एफ.सी. को समाप्त करने का कोई तरीका अभी तक नहीं ढूँढा जा सका है।
आधुनिक जीवन पद्धति की सी.एफ.सी. यह गैस अगले 100 सालों तक वातावरण में बनी रहेगी। अमेरिका, ओजोन क्षरण से पहले पीड़ित हुआ है, क्योंकि ओजोन की चादर में पहला छेद अंटार्कटिका के ठीक ऊपर बना है। इस छेद से न केवल इस महाद्वीप के लिए खतरा पैदा हुआ है, बल्कि कई अन्य महाद्वीपों के लिए भी, खतरा बढ़ा है, क्योंकि अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने के कारण कई सारे देशों के जलमग्न होने का अंदेशा है। अंटार्कटिका के ऊपर इस ओजोन छिद्र का पता 1985 में ब्रिटिश वैज्ञानिकों जोसेफ, ब्रायन गार्डनर और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के जोनाथन शंकलिन ने लगाया था।
ओजोन की चादर की खोज वर्ष 1913 में फ्रेंच वैज्ञानिकोें, चार्ल्स फैब्री और हेनरी बूइसों ने की थी। पृथ्वी से 30 मील ऊपर तक का क्षेत्र वायुमण्डल कहलाता है और ओजोन वायुमण्डल के सबसे ऊपर हिस्से में स्थित होती है। ओजोन नीले रंग की गैस होती है। ओजोन में ऑक्सीजन के तीन परमाणु मिले हुए होते हैं। सी.एफ.सी से निकलने वाली क्लोरीन गैस ओजोेन के तीन ऑक्सीजन परमाणुओं में से एक परमाणु से अभिक्रिया कर जाती है। यह प्रक्रिया जारी रहती है, और इस तरह क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के 100,000 अणुओं को नष्ट कर डालता है। इस खतरे के बावजूद सी.एफ.सी गैस का आज हमारे जीवन में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है। रेफ्रीजरेटर, एयर कंडीशनर जैसे आधुनिक उपकरण इसी गैस पर आश्रित है।
मोंट्रियल प्रोटोकॉल से जुड़े 30 देशों ने सी.एफ.सी. के इस्तेमाल में कमी लाने पर सहमति जताई है। यही नहीं वर्ष 2000 तक अमेरिका तथा यूरोप के 12 राष्ट्र सी.एफ.सी. के इस्तेमाल और उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर सहमत हो गए थे। इसे एक बड़ी उपलब्धि मानी गई थी, क्योंकि ये देश दुनिया में उत्पादित होने वाले सी.एफ.सी का तीन चौथाई हिस्सा पैदा करते हैं। अमेरिका की एनवायरमैंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ई.पी.ए.) के अनुसार ओजोन क्षरण के कारण, वर्ष 2027 तक पैदा होने वाले छह करोड़ अमेरिकावासी त्वचा कैंसर से पीड़ित होंगे। इनमें से लगभग 10 लाख लोगों की मौत हो जाएगी।
कुछ अनुसंधानों में कहा गया है कि कैंसर के अलावा मलेरिया और अन्य संक्रामक बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाएगा। ई.पी.ए.के अनुसार ओजोन क्षरण के कारण मोतियाबिंद के 1.70 करोड़ नए मामले सामने आ सकते है, वनस्पतियों का जीवन चक्र बदल सकता है, खाद्य श्रृंखला बिगड़ सकती है। इसका असर पशुओं पर भी पडेगा। इसके अलावा और क्या-क्या समस्याएँ पैदा होंगी, कहना कठिन है। समुद्र बुरी तरह प्रभावित होगा। अधिकांश सूक्ष्म जीवधारी समाप्त हो जाएंगे। यदि ऐसा हुआ तो वे सभी जन्तु भी मर जाएंगे जो खाद्य श्रृंखला में समुद्री सूक्ष्म जीवों पर निर्भर होते है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय समिति (आई.पी.सी.सी.) की हाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती का तापमान पिछले 100 सालों में 0.74 प्रतिशत बढ गया है। और इसका प्रभाव घातक है। ओजोन की चादर को तार-तार होने से बचाने के लिए सी.एफ.सी. के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है । इसी बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 16 सितम्बर 1995 को संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहल पर मॉट्रियल प्रोटोकॉल को 191 देशों ने स्वीकृति दी थी।
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इसी स्वीकृति की स्मृति में अब हर वर्ष 16 सितम्बर को अंतर्राष्ट्रीय ओजोन दिवस मनाया जाता है। लेकिन यह समस्या सिर्फ एक दिन का समारोह मनाने से नहीं सुलझने वाली है। समाधान के लिए साल के 365 दिन हमें जल और ओजोन दिवस मनाने होंगे। और इसके लिए सबसे पहले हमेें अपनी सोच और जीवन शैलीं में बदलाव लाना होगा, कई सारे छोटे – बडे़ उपाय अपनाने होगे। अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे, ऊर्जा की खपत घटानी होगी, पर्यावरण अनुकूल उत्पादों और वस्तुओं का इस्तेमाल करना होगा, स्थानीय स्तर पर जागरूकता फैलानी होगी।
जलवायु परिवर्तन जल-वायु से मिलकर बना है। जीवन-जल से ही शुरू होता है। ओजोन गैस वायु प्रदूषण से संकट पैदा हुआ है। हमारे जीवन को वायु चाहिए। जीवन की पद्धति ठीक करनी होगी। जल से जीवन में हरियाली और खुशहाली आती है। जल द्वारा हरियाली बढ़ाकर वायुमंडल में जहरीली गैसों को कम कर सकते है। धरती के चढ़ते बुखार को हरियाली और नमी से ही कम किया जा सकता है। ओजोन का संकट मिटाने हेतु जल संरक्षण से जंगल और हरियाली (खेती) वन आदि बढ़ाने होंगे।
खेती-किसानी से हम जंगल-हरियाली बढ़ाकर जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। ओजोन के खतरे को मिटा सकते हैं। आओ जलवायु परिवर्तन का संकट-ओजोन को ठीक करने का काम करें। जलवायु ही जल, जल ही जलवायु के रूप में साक्षरता बढ़ायें। जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा के लिए खेती-किसानी से हरियाली बढ़ाये-जवानी के लिए खुशहाली लाये। यह सब पानी-खेती अनुकूलन प्रबंधन से ही संभव होगा।
जब जल और खेती को जीवन का आधार मानकर इसका सम्मान करके प्रकृति से श्रमनिष्ठ बनकर सच्चे किसान के रूप में खेती को संस्कृति मानकर जीएं, तभी हम जलवायु अनुकूलन-जलवायु परिवर्तन उन्मूलन करने में सफलता पाकर अपने भविष्य के समृद्ध बना सकेंगे।
भारतीय किसान परेशान है। धरती को बुखार चढ़ गया है, मौसम का मिजाज बिगड़ गया है। बेमौसम वर्षा, सुखाड़-बाढ़ से किसानी-जवानी-पानी का संकट बढ़ जाता है। यह वर्षा जल समुद्र में जाकर नीली गर्मी में बदल कर फिर हरी-गर्मी की तरफ जाकर बरस जाता है। वह मिट्टी को नम करके किसान को उत्पादक बनाता है। वह पीली गर्मी से होता है।
आज धरती को बुखार है, लाल गर्मी से बेमौसम वर्षा होती है। हम किसान अपने बदले वर्षा चक्र को समझकर फसल चक्र वर्षा चक्रानुसार नहीं बना पाते है। इसीलिए हमारी खेती में बीमारी, किसानों की लाचारी युवाओं की बेराजगारी का सबब बन जाती है। इसे हम उलट दें। लाल गर्मी जब समुद्र में जाकर बादल बनकर नीलीगर्मी बनकर हरी गर्मी की तरफ जाकर बरसे तो हम उसे अपने खेतों में सहेज कर नयी फसलों से हरियाली बढ़ाये। फसलों की पत्तियों की ओस सूक्ष्म आद्रता से सूक्ष्म बादल बनकर ठीक समय पर बरसेगी उसी से हमारी हरियाली और खुशहाली बनकर जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन और उन्मूलन होगा।
* लेखक जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।