-रमेश चंद शर्मा*
मेरा राम, सबका राम
राम खुले में, बंद में,
शब्द में, छंद में,
तिरपाल में, महल में,
झोपड़ी में, घर में,
प्यार में, निश्छल में,
धरती में, आकाश में,
हवा में, जल में,
आग में, फाग में,
रागिनी में, राग में,
तख्त में, ताज में,
कल में और आज में,
सुख में, दुख में,
प्यास और भूख में,
अपने में, पराए में,
गए और आए में,
धूप और छांव में,
शहर और गांव में,
अमीर में, गरीब में,
दूर और करीब में,
जख्म में, घाव में,
प्यार के हर दाव में,
समता में, ममता में,
विश्वास और नम्रता में,
सफाई में, सच्चाई में,
हर नेक कमाई में,
तप में, त्याग में,
जिन्दगी के राग में,
राम तो सर्व व्यापी है,
सर्वत्र है, सर्वज्ञ है,
कण कण में बसा है,
वह एक स्थल, स्थान पर,
एक के साथ बंध नहीं सकता
और जो बांधा जा सके वह
वो राम हो नहीं सकता।
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