आयुर्वेद और कोरोना -1
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
भारत में आयुर्वेद से पूर्व और बाद में भी औषधि का विकेन्द्रीत प्रबंधन था। जहाँ भी भारतीय रहता था, वहाँ वायरस व्याधि मुक्ति हेतु वनौषधियाँ उगाता और उनका संरक्षण करके ही उसी से चिकित्सा करके सनातन बना रहा। स्वास्थ्य पद्धति भी उसने सम्पूर्ण , कभी नष्ट नहीं होने वाली आदि-अंत काल तक उपयोग करने वाली बनाई। वनौषधियों से व्याधि मुक्ति तथा शाकाहार से पोषण में भी सम्पूर्ण अंगों के उपयोग की ही परम्परा थी। उसी से ओम् पूर्ण इद्म सिद्धांत बना। सभी जगह पर जहाँ भारतीय रहता है, वहीं औषधि उद्यान बनाता था या ढूँढ़ता था। इसीलिए हम कभी अमेरिका भूमि की तरह मानव विहीन नहीं बने। हमारी सभ्यता संस्कृति सनातन बन गई। धीरे-धीरे इससे आयुर्वेद का सर्जन हुआ। यह हमारी सभी व्याधियों का निदान और उपचार करने वाली पद्धति का नाम है। यह आरोग्य और चिकित्सा की दुनियाँ की सबसे पुरानी पद्धति है।
आरोग्य रक्षित व्यक्तियों का कोरोना वायरस कुछ बिगाड़ नहीं पाता है। आयुर्वेद ‘ओम पूर्ण इदम्’ सिद्धांत से काम करता है। इसलिए आयुर्वेद औषधि इस पर प्रभावी है। लेकिन आयुर्वेद कम्पनियाँ, ऐलोपैथी की तरह गणनाओं पर काम नहीं करती है। वे केवल शास्त्रों संहिताओं के अनुसार ही काम करती है। आधुनिक चिकित्साशास्र बहुत कुछ गणनाओं की तकनीक से ही ‘चिकित्सा’ करता है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे ही मान्यता दी थी। अब तो आयुर्वेद का भी एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान भारत में निर्मित होगा, ऐसा सुन रहे है। शायद कोविड-19 की आरोग्य रक्षण से 2020 में भारत को मिली सफलता ही इसका एक आधार बन सकती है। सुश्रृत संहिता में इस बीमारी को छूत की बीमारी मानकर बहुत सुन्दर-निदान और उपचार है।
भारत सरकार को आरोग्य रक्षण की आयुर्वेद पद्धति को खुली छूट देनी चाहिए। कोविड़ से बचने के लिए लिए आरोग्य प्रतिरक्षण करना सबसे सुरक्षित है। वह ही आयुर्वेद है। जो वैक्सीन लेना चाहते है, वे लें। सभी को अन्य वैक्सीन की तरह जबरदस्ती देनी नहीं चाहिए पर मास्क, कोरनटाईन लॉकडाउन आदि को शक्ति से लागू करायें। मरते को वैन्टीलेटर आदि से बचायें, इसकी व्यवस्था सरकार जरूर करें।
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कोविड-19 बहुत जटिल नहीं है। शरीर में प्रवेश के बाद ही यह जटिल बनता है। यह यदि हमारे शरीर पर है तो फेंफडों में प्रवेश करने से इसे रोकने के लिए हमारे हल्दी काढ़ा, क्वाथ आदि औषधियों के प्रभाव से इसका फेंफडों की झिल्ली तक जाना रूक सकता है। उसी को राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान बढ़ावा देने की दिशा में जुटते तो इस सरकार में आयुष, आयुर्वेद विश्वविद्यालय, संस्थान और वैद्य निश्चित ही सफलता पा जाते है। कुछ सफलता मिली भी है।
वायरस से बचाव के आयुर्वेद में बहुत से रोग प्रतिरक्षण क्षमता बढ़ाने के समय सिद्ध अनुभव है। हमनें अपने कार्य क्षेत्र और आश्रम में इसे प्रभावी नहीं होने दिया। जबकि नित्य प्रति हमारा जीवन कोविड प्रभावितों को स्वास्थ्य रक्षण, पोषण, पुनर्वास हेतु पूरे 15 माह से चल रहा है। दस हजार परिवारों को पहले पोषण किया। अब इनके स्वावलम्बन हेतु रोजगार, खेती, पशुपालन आदि करने के बाद 2021 में कोविड़ प्रभावितों-संक्रमितों की चिकित्सा सेवा शुरू की है।
शहर से लौटकर आये लोगों के पास गाँवों में कुछ नहीं था। करौली, धौलपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर जिले में कोविड़ की मार से उजड़कर आये परिवारों के साथ दिन-रात काम किया। बस इनको निर्भय करके, अनुशासित बनाया। इनकी बेकार पड़ी भूमि पर चार दीवारी बनाकर इन्हें बीज दिये। सिंचाई के लिए तालाब बनाकर पाइप दिये। फुव्वारे एवं टपक पद्धति से सिंचन करके रबी की फसल में अच्छा उत्पादन किया। 2021 मई में नये संक्रमितों की चिकित्सा में मददगार बनकर जुटे है।
हम भारत को गाँवों का गणराज्य मानते है। इसी लिए हमारी प्राथमिकता ग्राम स्वावलंम्बन रही है। यही हमारा लक्ष्य है। इसको अपना साध्य मानकर कोविड़ मुक्ति की साधना करके साधन उपलब्ध कराने में जुटे रहे है। विनम्रता से निवेदन करता हूँ कि, कोविड़ मुक्ति हेतु हमें अभी तक सम्पूर्ण सफलता नहीं मिली है। पाँचों जिलों व हमारे कार्य क्षेत्र में 2020 के काल में कोविड़-19 से चन्द ही लोग कोरोना पॉजीटिव थे। इनमें से किसी को भी यह वायरस मार नहीं सका था। 2021 में हमारे क्षेत्र में कोरोना संक्रमितों की संख्या वैक्सीन के बाद बहुत बढ़ी , मैं स्वयं भी वैक्सीन के बाद कोरोना संक्रमित हुआ।
दूसरी बीमारी से खासकर हृदयरोग व श्वास या बहुत पुराने रोगी ही मरे है। उन्हें सरकार ने कोविड़ग्रस्त मृत्यु घोषित किया है। कोविड़ से पहले जितनी मृत्यु होती थी, उतनी ही मृत्युदर 2020 में भी रही थी। यह तथ्य मुझ में हमारे काम पर और अधिक विश्वास पैदा करके उर्जा दे रहा था। इसीलिए हमने अपने अन्य कामों को रोककर केवल कोविड़ से त्रस्त परिवारों को राहत देकर-स्वाबलंबी बनने का सहारा देने में ही लगे रहे हैं।
2021 में कोरोना का प्रभाव पहले साक्ष्य से सैंकडो गुणा अधिक बढ़ गया। हम भी दिल्ली की सभाओं-सम्मेलनों में कोरोनाग्रस्त बनकर 11 अप्रैल 2021 को अपने आश्रम लौटे। आयुर्वेदिक और ऐलोपैथिक चिकित्सा द्वारा स्वयं और दूसरों को बचाने का सफलता पूर्वक किया है। हम सब पॉजिटिव होने के बाद पैनिक नही हुए। अपने आयुर्वेद समय से अनुशासित होकर उपयोग किया। मुझे डायरिया, दस्त और भाई को श्वास कठिनाई सताती रही, अब आयुर्वेद से स्वस्थ हैं।हम सब पॉजिटिव होने के बाद पैनिक नही हुए। अपने आयुर्वेद समय से अनुशासित होकर उपयोग किया। मुझे डायरिया, दस्त और भाई को श्वास कठिनाई सताती रही, अब आयुर्वेद से स्वास्थ्य है। हमें आज भी सेहत में स्वावलंबी बनाने वाली व्याधि निदान और उपचार करने की जरूरत है।
*लेखक पूर्व आयुर्वेदाचार्य हैं तथा जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।