[the_ad_placement id=”adsense-in-feed”]
– डॉ. राजेन्द्र सिंह
सत्तर के दशक की शुरुआत तक कोयला खनन निजी खिलाड़ियों के हाथों में था। चूंकि निजी खिलाड़ियों ने अवैज्ञानिक कोयला खनन प्रथाओं को अपनाया था, इसलिए प्रतिगामी श्रम नीतियों का पालन किया और आर्थिक विकास के लिए सरकार के प्रयासों में भागीदार होने के लिए अनिच्छा दिखाई। तत्कालीन सरकार ने 1973 में खनन उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया। कोयला खनन के दौरान अधिकांश निजी खिलाड़ियों के ट्रैक रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए। पिछले कुछ वर्षों में यह संदेह है कि क्या 1973 में उद्योग को राष्ट्रीयकरण करने के लिए प्रेरित करने वाले कारकों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव आया है। कोयला जैसे कई अन्य प्राकृतिक संसाधन जैसे लौह अयस्क, बॉक्साइट इत्यादि, एक दुर्लभ, असाध्य संसाधन है। जिसे हम अच्छी तरह से सोची-समझी रणनीति के बिना दूर नहीं कर सकते।
WP(C) नंबर 435/2012 (गोवा फाउंडेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड ऑर्सेस) में, शीर्ष अदालत ने कहा है, “भारत में उपलब्ध कोयला संसाधन गंभीर रूप से सीमित हैं, जिसे संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट (यूएनएफसीसी) वर्गीकरण के संदर्भ में मापा जाता है, जो कोयला की गहराई, खनन की तकनीकी जटिलता और इसकी लागत जैसे – विभिन्न मापदंडों को ध्यान में रखता है। एक उपभोक्ता क्या सहन कर सकता है। रॉयल्टी और अन्य राजस्व जो निजी कोयला कंपनियों से सरकारी खजाने में जमा होते हैं, आमतौर पर वे जितना मुनाफा कमाते हैं उससे 10 गुना तक रॉयल्टी रूप में कम होता है अर्थात् यह केवल राष्ट्रीय हित को भूलकर निजी हित को बढ़ाता है।”
[the_ad_placement id=”content-placement-after-3rd-paragraph”]
इस प्रकार कोयला खनन को निजी कंपनियों को सौंपना बहुत ही राष्ट्रहित विरोधी है। यह काम सार्वजनिक हित में अवरोधक करके मुनाफाखोरों को आगे बढ़ने के बड़े अवसर पैदा करेगा। यह संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत (“समुदाय के भौतिक संसाधनों के स्वामित्व और नियंत्रण को आम और अच्छे लोगों के जीवन को संरक्षित करने के लिए, सबसे अच्छा अवसर प्रदान करता है“) ।संविधान के अनुच्छेद 39 बी को भारत की र्शीष अदालत ने बार-बार कोल खनन के निजीकरण के विरुद्ध दोहराया है। “प्राकृतिक संसाधन सरकार और लोगों के लिए होते है।” ऐसे संसाधनों के लिए सरकार एक सार्वजनिक ट्रस्टी होने के नाते निजी एजेंसियों को अलग करने के फैसले ले सकती है। इसलिए भारत सरकार को यह अधिकार है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्राकृतिक संसाधन समान रूप, से सभी के जीवन का आधार बने रहने चाहिए। प्राकृतिक संसाधन सभी के है। सभी के जीवन, जीविका हेतु समानरुप से ही उपलब्ध रहने चाहिए।
यह भी पढ़ें : हमारी कोयला नीति भाग 5 : जीवन, जीविका और जनजातियों को कोयला खनन के निजीकरण से बचाओ
कोई भी निजी कम्पनी प्राकृतिक संसाधन जैसे कोयला का केवल अपने लाभ के लिए शोषण नहीं कर सकती। शोषण को रोकने का अधिकार लोकतंत्र में लोक और तंत्र दोनों को ही बराबर होता है। इसलिए इस बुरे वक्त में भारत के लोक को खड़ा होकर निजी कंपनियों की गुलामी और ईस्टइंडिया कम्पनी की तरह शोषण, अतिक्रमण, प्रदूषण और राज्य करने का अधिकार नही दिया जाना चाहिए।
उम्मीद है कि भारत सरकार कोल खनन उद्योग में नीलामी करने से पहले उक्त लोक चिंताओं पर पुनः विचार करेगी और कोल खनन को नीजि कम्पनियों को देने पर रोक लगायेगी। जिससे भारत के संविधान का सम्मान, बराबर बना रहे। निजी खनन समता के विपरीत रास्ता है। प्राकृतिक संसाधन जीवन का आधार है। उसे जब भी निजी हाथों में सौंपते है। लोकतंत्र के विपरीत चन्द ही लेगो का अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण बढ़ जाता है। भ्रष्ट्राचार आ जाता है, सदाचार मिटता है। भारत के सभी उद्योग क्षेत्र में यह सभी देखनें को मिलता रहा है। अब तो यह बहुत ज्यादा बढ़ गया है। इसे रोकना है तो औद्योगिक वर्चस्व कम ही करना होगा।
भारत सरकार को सामुदायिक विकेन्द्रित कोल खनन की दिशा में आगे बढ़ाना चाहिए। केन्द्रीत कोल खनन संविधान सिद्धांतो, मौलिक अधिकारों का हनन करता है। निजी स्वार्थ प्रतियोगिता शुभ सुरक्षा के विपरीत लाभ प्रतियोगिता पर केन्द्रीत हो जाती है।
एक कंपनी अपने लाभ के लिए हजारों लोगो के स्वास्थ्य जीवन, जीविका और जमीर का संकट खड़ा कर देती है। अतः निजीकरण नही, सामुदायिकरण ही लोकतांत्रिक व संवैधानिक और स्वास्थ्य बनायेगा।
निजीकरण लोकतांत्रिक संविधान विरोधी है। सामुदायिकरण ही आत्मनिर्भरता का रास्ता है। प्रधान मंत्री जी , भारत को आत्मनिर्भर बनाने का रास्ता ढूंढ रहे है। इसका रास्ता केवल विद्युत में कोयला खनन नही है। बल्कि गांवो के गणराज्य भारत के गांवो को स्वाबलंबी बनाना है। कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण प्रबंधन में गाँववासियों, जंगलवासियों को लगायें। निजीकरण रोक कर सामुदायिकरण करें। तभी गांवों की जरुरत गांव ही पूरा कर सकेगें, तभी भारत आत्मनिर्भर बनेगा।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
[the_ad_placement id=”sidebar-feed”]