लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर विशेष
– प्रशांत सिन्हा
बीसवीं सदी में भारत में जितने महापुरुष पैदा हुए उसमें जे पी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नाम अग्रणी पंक्ति में आता है। जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सिताबदियारा में हुआ था। जिस दिन उनका जन्म हुआ था वह विजयादशमी का दिन था।
जेपी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के नायक और आज़ादी के बाद भारतीय समाजवादी आंदोलन के महानायक थे। राजनीति से मोहभंग होने के बाद सर्वोदय के हो चुके जेपी ने वक़्त की पुकार सुनकर राजनीति में वापसी करते हुए भ्रष्टाचार और तानाशाही के खिलाफ संघर्ष को नेतृत्व प्रदान कर देश में लोकतंत्र बहाल कराया।
भारत वर्ष गांधी, जयप्रकाश, लोहिया, विनोबा की अहिंसा एवं राजनीति में नैतिक मर्यादाओं की वजह से जाना जाता है। आज जब राजनीति मूल्य हीनता का शिकार बनती जा रही है, आने वाली पीढ़ी को विरासत में स्वच्छ राजनीति देना समाज के लिए बहुत ज़रूरी है। इसके लिए जयप्रकाश जैसे नेता की जीवनी नई पीढ़ी को अवगत कराना जरूरी है। निश्चय ही इससे अच्छी राजनीति की शुरुआत होगी।
बचपन से लेकर अंतिम सांस तक जयप्रकाश क्रियाशील रहे। उनके क्रिया कलाप के क्षेत्र सदैव बदलते रहे। उनकी सोच भी विभिन्न दिशाओं में रही। वे कभी मार्क्सवादी रहे कभी गांधीवादी तो कभी समाजवादी। उन्होंने अपने पुराने विचारों को त्यागने में देर नहीं की।
यद्यपि जयप्रकाश बाबू को जीवन में अनेक असफलताओं से सामना हुआ किन्तु उन्होंने कभी हार नहीं मानी। असफलताओं ने सीख ही दी और जब जब देश ने उन्हें आवाज़ दी वे एक नए विचार को साथ लेकर राष्ट्र के सामने आए। उन्हें सत्ता की सुख सुविधाएं अपनी ओर आकृष्ट नहीं कर सकी। वे सत्ता को सही अर्थ में आम जनता के हांथों में सौंपने के पक्षधर थे।
गांधी की तरह जेपी को भी संसदीय लोकतंत्र में कम आस्था थी। वह इस ढांचे को बदलना चाहते थे। इसलिए सत्ता के विकेंद्रीकरण के पक्षधर थे। जेपी कहते थे कि सत्ता कुछ व्यक्तियों के हांथ में होने के बजाए पूरे समुदाय के हांथ में होनी चाहिए। जेपी समझ चुके थे कि सत्ता मिलने के बाद कोई राष्ट्रहित का नहीं सोचता। इसलिए जेपी ने जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने यानि “राइट टू रिकॉल” का नाम दिया।
वह सच्चे समाजवादी थे। लोग राजनीति में उतरते है और सत्ता दौर में शामिल हो जाते हैं। जेपी ने इस नियम को तोड़ा। वे ज़िन्दगी के आखिरी क्षण तक राजनीति में रहे लेकिन हमेशा सत्ता को ठुकराया। वह चाहते तो सत्ता के शिखर तक आसानी से पहुंच जाते। सत्ता का शिखर उन्हें निमंत्रण दे दे कर थक गया। तभी तो लोगों ने पूरे दिल की गहराई से उन्हें “लोक नायक ” की उपाधि दी। जयप्रकाश जी के भाषण सुनने और उन्हें देखने वालों के लिए पटना का ऐतिहासिक गांधी मैदान और दिल्ली का रामलीला मैदान छोटा पड़ जाता था। जेपी को जो लोकनायक की पदवी जनता द्वारा मिली थी वह उसके पूरी तरह हकदार थे।
” सम्पूर्ण क्रांति ” जयप्रकाश जी का विचार और नारा था जिसका आह्वान उन्होंने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किया था। लोक नायक ने कहा था कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियां शामिल हैं : राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सात क्रांतियां को मिलाकर सम्पूर्ण क्रांति होती है। आज देश को भावी पीढ़ी से इसी सम्पूर्ण क्रांति की मशाल को देश के घर घर में पहुंचाने की अपेक्षा है।
लोकनायक जयप्रकाश जी के बारे में लिखा लेख सटीक और सत्य है ।सराहनीय है ।👌👌👍👍
जयश्री सिन्हा