– रमेश चंद शर्मा*
ऐसे थे हमारे दादा गणेशीलाल
हरियाणा में हिसार के सर्वोदय भवन में अखिल भारत सर्व सेवा संघ की सभा के लिए दिल्ली से हम कुछ साथी चले। रास्ते में बातचीत में बात निकली कि हरियाणा में कार्यक्रम है जिसके बारे में कहा जाता है – “देशों में देश हरियाणा जहाँ दूध, दही का खाना, जहाँ दूध की नदियाँ बहती, जहाँ लोग घी खाते ही नहीं, पीते भी है, गंगा सागर से घी परोसा जाता है”- आदि। यह सुनकर एक वरिष्ठ साथी ने ताना मारने की आवाज में कहा कि वहां चल रहे ही है, अपनी आँखों से देख लेंगे। इस पर कुछ साथी मजाक भी उड़ाने लगे।
अपन को बात चुभ गई। ज्यों ही सर्वोदय भवन पहुंचे, अपन ने दादा गणेशी लाल जी को यह किस्सा सुनाया और साथ यह भी कहा कि दादा हरियाणा की शान की बात है। उस समय हरियाणा के अनेक वरिष्ठ साथी वहां मौजूद थे। दादा ने सुनते ही कहां क्यों चिंता करता है, खुला घी परोसेंगे।
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युवा साथी सवाई सिंह से बातचीत में यह भी अपन ने कहा था कि हमारे यहाँ चावल जितना, उससे ज्यादा खांड, मीठा और उसमें कुंड बनाकर घी भर कर खाते है। अगले दिन दोपहर में चावल, खांड और छिक्मा, खुला घी परोसा गया जो जितना खा सके। अपन श्री अमरनाथ भाई, साथी सवाई सिंह के साथ सोच समझकर बैठे थे।
भोजन के बाद हिसार से दिल्ली की यात्रा भी साथ साथ एक ही वाहन में करनी थी। अपन ने एक हिस्सा चावल, दो हिस्सा खांड और उसमें कुंड बनाकर घी लेने की तैयारी की। घी परोसते समय सवाई सिंह भाई ने टोका भी, अरे घी वाले को रोक, इतना घी खाकर कैसे हजम करेगा, रास्ते में तंग करता जायेगा। अपन ने तो रजकर भर पेट खाया और वापसी यात्रा में अपन ने एक बार भी वाहन रोकने की बात नहीं की। अपन दिल्ली तक वाहन से उतरे ही नहीं, सीधे दिल्ली आकर ही उतरा।
पिछले वर्ष बा बापू एक सौ पचास वर्ष के उपलक्ष्य में राजस्थान सरकार द्वारा जयपुर में आयोजित बैठक में भाग लेने गया। सरकार ने जयपुर से बाहर से आने वालों के लिए होटल में ठहरने की व्यवस्था की थी। अपन ने होटल के स्थान पर भाई सवाई सिंह के साथ उनके निवास पर, परिवार के साथ ठहरना पसंद किया। बैठक के बाद, उनके साथ ही घर पहुंचे, परिवार से मिलने का शानदार सुख मिला। खूब बातचीत हुई, रात का खाना खाते समय यह घटना सवाई सिंह भाई ने सुनाई। पुरानी, नई बातों के सिलसिले चले। लम्बे समय बाद परिवार से मिलना हुआ।
ऐसे थे हमारे दादा गणेशीलाल, कार्यकर्ता की बात का मान रखने वाले। कितने ही लोगों को दादा ने प्रेरित कर कार्यकर्ता बनाया। उनको सिखाया , आगे बढ़ाया, समझाया। अब ऐसे लोगों का अभाव बहुत खलता है। कहां गए वे लोग। उनको शत-शत नमन।
लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं