पर्यावरणीय मुद्दा
– प्रशांत सिन्हा
यमुना नदी की हालत बहुत दयनीय होती जा रही है। इस धारणा से शायद ही कोई असहमत हो कि यमुना सिर्फ आस्था नहीं अर्थव्यवस्था भी है। विडंबना है कि प्रकृति द्वारा नदियों की शक्ल में प्रदत्त इन जीवन धाराओं का महत्व हम याद नहीं रख पाए और इन्हें स्वार्थ, बेपरवाही और अदूरदर्शिता का शिकार बनाया।
यमुना नदी गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो यमुनोत्री (उत्तराखंड) से निकलकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा के सहारे 95 मील का सफर उत्तरी सहारनपुर ( मैदानी इलाका ) पहुंचती है। फिर यह यमुना नगर ( हरियाणा), दिल्ली, मथुरा, आगरा से होती हुई प्रयागराज मे गंगा नदी में मिल जाती है।
यमुना का जल हजारों किलोमीटर भूमि सिंचित करता है। यमुनोत्री से हथिनीकुंड बैराज तक तो जल स्वच्छ रहता है परन्तु मथुरा तक पहुंचते ही इस जीवनदायिनी नदी को मृत नदी घोषित कर दिया जाता है। दिल्ली में प्रवेश करते ही यह नदी मैला पानी के अतिरिक्त कुछ नही रह जाती है जबकि यमुनानगर में यह स्वच्छ है।ऐसा नहीं है कि हरियाणा से दूषित पानी नहीं आता। हरियाणा के सोनीपत जिले का दूषित एवं गंदे पानी यमुना में ही आता है। पर हरियाणा सरकार के अनुसार दिल्ली के पल्ला क्षेत्र में बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड ) की मात्रा 2.56 Mg/L है तथा डी ओ (डिसॉल्वड ऑक्सीजन) की मात्रा 2.60 पर पहुंच जाती है। हरियाणा का दावा इस बात की पुष्टि करता है कि दिल्ली के अपने 19 नाले हैं जहां से पानी सीधा यमुना में आता है। यहां लगे एस टी पी (ट्रीटमेंट प्लांट) रख रखाव के अभाव में म्यूजियम में रखने लायक हैं।
पिछ्ले हफ्ते दिल्ली के सोनिया विहार, वजीराबाद के पास गंदे एवं दूषित पानी बिना ट्रीटमेंट का यमुना में सीधा गिरते हुए स्थानीय निवासियों ने जो मंजर देखा वह काफी विचलित करता है। वीडियो, चित्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी नदियों के जल की गुणवत्ता खराब होने का कारण बिना ट्रीट किए हुए सीवेज का पानी छोड़ने, ऊपरी धारा से ताज़ा पानी नहीं छोड़े जाने और प्रदूषक तत्वों की अधिकता को बताया है।
सरकारों द्वारा यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर अरबों रुपए पानी में बह गए। संसद में इस बाबत कई बार चर्चा हुई। लेकिन कोई कदम नहीं उठाये गए। महज राज्यों की नाकामी और पानी के उपयोग को संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। राज्यों और स्थानीय निकायों को दोषी ठहरा दिए जाते हैं। दिल्ली के वर्तमान मुख्य मंत्री 2015 से यमुना की सफाई का भरोसा दिला रहे हैं लेकिन वह भी एक कदम इस ओर नही बढ़ा सके हैं । मोदी सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय बनाया लेकिन अभी तक तो कोई नतीजा निकलता हुआ नजर नहीं आ रहा है। आश्चर्य है कि हाल में दिल्ली के सोनिया विहार, वजीराबाद क्षेत्र से जिस प्रकार दूषित पानी यमुना में छोड़ा जा रहा था उससे केजरीवाल सरकार और मोदी सरकार यमुना की स्वच्छता के लिए कितनी संवेदनशील है वह तो दिल्लीवासियों को मालूम हो गया होगा।
यमुना के जल को स्वच्छ बनाए रखना कोई मुश्किल काम नहीं है। जरुरत है इच्छा शक्ति का होना। अगर कुछ उपायों को अमल में लाते हैं संभवतः यमुना स्वच्छ हो सकती है। पहला यह है कि हथिनीकुंड बैराज से यमुना नदी में अधिक जल छोड़ा जाए। दुसरा दिल्ली प्रदेश में यमुना में मैला डालने के कुचक्र को नियंत्रित किया जाए। इसके लिए यमुना के साथ पाइप लगा कर मैले पानी की दिशा को मोड़ा जा सकता है या ड्रेनेज सिस्टम बनाया जा सकता है। प्रति वर्ष मई से लेकर नवंबर माह में यमुना का जल बेरोक टोक बहाना चाहिए। उस समय नदी में पानी कम रहता है। इसके साथ पानी बचाने के लिए पी पी पी मॉडल पर सरकार काम क्यों नहीं करती ? सड़कें, हवाई अड्डे जब इस मॉडल पर बनाए जा सकते हैं तो नदियों को स्वच्छ करने के लिए इस मॉडल पर काम क्यों नहीं हो सकते। सरकार को हर जिले, गांव, नगरों में निगरानी के लिए वालंटियर्स नियुक्त करना चाहिए।
सरकारों को जनता को जवाब देना चाहिए कि अभी तक यमुना की सफाई के लिए क्या क्या कदम उठाए गए ? जो पैसे आवंटित किए गए थे वे कहां चले गए ? दोषियों को सजा क्यों नहीं हुई ? जिस प्रकार सरकार करोना से बचाव के लिए लॉक डाउन जैसा आदेश दे सकती है तो नदियों को बचाने के लिए ऐसा ही कदम सरकार क्यों नहीं उठाती ?
यमुना की हालत इतनी दयनीय हो गई है कि शहरों से निकलने वाला अपशिष्ट और खतरनाक रसायन का क्षेत्र और वातावरण जलीय और प्राणियों के लिए दुष्कर हो गया है। इन सबको देखते हुए यमुना बचाओ आंदोलन को और तेज करने की जरुरत है जिसमें लोगों की भागीदारी से एक चेतना जागेगी ।
सिर्फ सरकार के प्रयास से नदियों को प्रदूषण मुक्त करके अविरल निर्मल बनाना संभव नहीं है। इसके लिए हर आम aur खास व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। नदियों को सर्वाधिक नुकसान औद्योगिक इकाइयों की संकीर्ण सोच और नगर निकायों की गैर जिम्मेदाराना कार्य शैली ने पहुंचाया है। जनता भी नदियों में शव, सीवर, नालों का पानी, प्लास्टिक और पूजन सामाग्री प्रवाहित करने की धृष्टता से बाज नहीं आ रही है ।यमुना का अस्तित्व बचाने के लिए जो भी आवश्यक है उसे किया जाना चाहिए। इसे जल्द ही फिर अमृत न बनाया गया तो यह जहर किसी को नहीं बख्शेगा।
प्रशांत जी,
आपके द्वारा जल पर्यावरण एवं खासकर यमुना नदी के स्थिति को लेकर लेख के द्वारा समाज में चेतना जागृत करने का प्रयास सराहनीय है।
मेरा प्रतिउत्तर विशिष्ट रूप से Global Bihari में दिनांक 6–Apr के आपके द्वारा लेख को लेकर है।
आज अधिकतर Water treatment plants/ STP की निष्क्रिय अवस्था यह पूर्ण रूप से स्पष्ट सूचक है कि STPs का Audit/Inspection नही हो रहा है। यहां audit में होने वाला corruption कितना बड़ा है!
इतना तय दिखता है कि correct audit reporting से भारी पेनल्टी के द्वारा कम से कम इनको चालित अवस्था में ला सकें। इसके बाद नियमित और सख्त (by incorruptible auditors) audit से मामले का सुधारीकरण काफ़ी हद तक शुरू हो सकता है।
Stepwise Key actions –
1). Appointment of incorruptible officers by central body.
2). Start of the strict audit to bring the STPs (Treatment plants) to up and running
3). Regular and strict audits with hefty and grade wise penalty system.