डेथ वैली
संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
जब हमारी बात पेरिस में स्वीकार कर ली गई
अमेरिका ने तो अपनी ओंस नदी को पाइप में बंद करके लोस एन्जलिस को ही पानी पिला दिया है। नदी और इसके किनारे रहने वाले समाज को सम्पूर्ण रूप से नष्ट ही कर दिया है। पहली बार मैं 11 सितम्बर 2015 से 29 सितंबर 2015 तक अमेरिका में रहा। सबसे पहले लॉस-एन्जिल्स पहुँचे। यहाँ विश्व शांति यात्रा के दल ने देखा की एन्डिलिपकिस नाम का एक व्यक्ति बहुत प्रभावी है। वह वहांँ पर “ट्रीमेन” (वृक्ष पुरुष) के नाम से जाना जाता है। यहाँ की सरकार भी इस व्यक्ति से राय लेती है। बींग पाइन में हमारे यात्रा दल में तीन महिलाएँ मोडरेटर, 5 लोग रसोई टीम में तथा 30 लोग वाटर वॉकर है; जिनमें 9 पुरुष और 21 महिलायें थी। यात्रा के बाद शाम को निजी परिचय व यात्रा के संकल्प गीत के बाद भोजन हुआ। अगले दिन ओलफाइन फार्म पर जैक एण्ड रेजियना के फार्म पर बहुत अच्छी बैठक आयोजित हुई । फिर यात्रा चलती रही । 20 किलोमीटर चलने पर भी थकान नहीं हुई।
यात्रा में देखा कि अमेरिका में भी जल के मामले में अन्याय हो रहा है । यहाँ नदियों व झीलों को जलाधिकार नहीं है। यहाँ ओन्स झील में बड़ी-बड़ी सड़कें बनाई गई हैं, जिनमें धूल को जमाने के लिए बडे़-बडे़ टैंकर चलते हैं। इनको चलाने हेतु ऊँची रोड बनाई जा रही थी। यहाँ मैंने एक गिलास पानी में स्नान किया। यहाँ की सरकार कम्पनियों व ठेकेदारों के बलबूते पर ही चल रही है। यहाँ के लोग नियम मानकर काम करने की तैयारी में तो हैं, पर उनमें लोक सम्मान का भाव नहीं है। यहाँ के ट्राईबल पर बहुत अत्याचार हुआ है। लोग कानून से डरते हैं। यहाँ के कानून प्रकृति और मानवता के विरोधी है।
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यहाँ की ओन्स लेक देखकर मेरी आँखें नम हो गयीं। ऐसा बुरा हाल भारत में भी मैंने कभी नहीं देखा। यहाँ खरबों रूपयें खर्च करके ‘‘लेक‘‘ में बनायी गई है। यह सब काम सरकार द्वारा 120 करोड़ डॉलर खर्च करके, यहाँ की सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार झील की धूल पर नियंत्रण के नाम पर किया जा रहा है। विकास के नाम पर विनाश हो रहा है। ऐसी बर्बादी देखकर दुःख हुआ है।
पीपल ट्री के संचालक एन. डी. ने लॉस एन्जिल्स के लोगों को बुलाया था। कोई 60 लोग होंगे। सात समूहों में बँटे थे। मैंने अपना अनुभव सार रूप में बताया कि जैसे काम भारत में राजस्थान के अलवर में हुए हैं, वैसे काम कैलिफ़ोर्निया में भी किये जाएँ। जिस तरह से यहाँ की सरकार धूल रोकने का कार्य कर रही है, उससे धूल नहीं रुकेगी। धूल तो पानी के काम से रुकेगी। लॉस एन्जलिस और ओन्स नदी के समुदायों से संबंध स्थापित करके उन्हें भी इस काम के साथ जोड़ा जाये।
स्टीवन स्टार एवं टमेरा सेंटर की सविने, मार्टिन, बैन्जामिन, सिरी आदि के साथ बैठक की। मैंने उन्हें ‘विश्व जल शांति यात्रा’ का सम्पूर्ण सन्दर्भ बताया। इनको समझाने के बाद स्टीवन पूर्णतः इस काम में जुड़ गया। टमेरा पीस सेन्टर ने भी जिम्मेदारी ली। 28 सितम्बर को हैप्पी वैली स्कूल, वेसेन्ट स्कूल, टीचिंग ट्री तथा ओजाई के अध्यक्ष, निदेशक, संचालक मण्डल व कार्यकर्ताओं के साथ विस्तृत बातें हुई। बाद में फाउण्डेशन की जमीन पर बनी पानी के काम की 12 साइटें बताईं। रात्रि सत्र में ‘विश्व जल शांति यात्रा‘ का अपना पूरा प्लान सभी के सामने दोबारा रखा। सभी ने इससे जुड़ने की बात कही और जुड़ने का साझा संकल्प हुआ।
लॉस एन्जलिस से मैं अन्य सभी साथियों के साथ पदयात्रा करते हुए, ओन्स नदी के उद्गम स्थल मोनो लेक पहुंचा। ओन्स वैली में पहले 25 हजार रेड इंडियन रहते थे। अभी इनकी संख्या घटकर लगभग 5 हजार बची है। अमेरिका ने इन्हें यहाँ से उजाड़कर भगा दिया है। इस यात्रा के दौरान मैं कई ऐसी जगह गया; जहाँ इनकी राजधानी थी, इनके काम्यून के अपने ही राजा होते थे। ये प्रकृति के साथ, प्रकृति का सम्मान करके, आनंद से रहते और जीते थे। यह नदी घाटी बहुत ही सुन्दर है। यहाँ के मूल आदिवासी आज भी बहुत सरल, सहज और स्वतंत्रता से जीने वाले लोग हैं। मुझे इस यात्रा के दौरान रात-दिन साथ रहने, चलने-फिरने का बहुत अच्छा और बड़ा अवसर मिला। उनके साथ रहकर ज्ञानवर्धन हुआ। इनसे मैंने अपने आदिवासियों के साथ तुलनात्मक समझदारी की। इससे उनकी समानता का एहसास कर पाया।
10 सितंबर से 29 सितंबर तक ओन्स वैली की पदयात्रा मैंने बहुत सोच-विचार कर की थी। कोलफोर्निया को विकसित राज्य कहते है। यहाँ की पानीदार नदियों को इन्होंने कैसे मार दिया? यह देखना और समझना मेरे लिए बहुत जरुरी था। पलायन कैसे शुरु होता है? अमेरिका की ओन्स वैली की पद यात्रा से मुझे स्पष्ट दिखाई देने लगा। विकास कैसे विनाश का कारण बन जाता है? मैने पूरी ओन्स नदी की पदयात्रा, तीन वर्षो में 20-20 दिन यहाँ रहकर सम्पन्न करी। इसका अनुभव आखिरी साल की यात्रा में लिखूँगा।
जिस तरह से भारत के आदिवासी प्रकृति और पंचमहाभूतों की पूजा करते है, ठीक वैसे ही ये भी करते है। इस पदयात्रा के दौरान मुझे अमेरिका के आधुनिक विकास की अंधता भी समझ में आ गई। इन्होंने प्रकृति व नदी की हत्या करके उसे ठीक करने के नाम पर पूरी नदी को पाइप लाइन में बंद करके लॉस एन्जलिस को पानी पिलाने का काम किया है। रास्ते की सारी झीलें सूख कर मर गईं। इन्होंने नदी को पाइप में डालने के लिए नए बाँध बनाये और पानी को नियंत्रित करके पाइप लाइन में डालकर शहरों को पानी पिलाना शुरू किया। मैं अमेरिका के स्टेट विश्वविद्यालयों में भी गया। इन्होंने हमारी यात्रा के साथ कई कार्यक्रम आयोजित किये। वहाँ तीन विश्वविद्यालयों में मेरे भाषण भी हुए। यहाँ व्यावहारिक जल साक्षरता द्वारा विश्वशांति की बात समझायी।
दूसरी बार 15 अक्टूबर 2015 से 19 अक्टूबर 2015 तक रहा। 15 अक्टूबर को अमेरिका के बोस्टन विश्वविद्यालय में इंटरनेशनल क्लाइमेट चेंज कन्वेंशन में पहुँचा। यहाँ भारत के बहुत बड़े वैज्ञानिक डॉ. जगन्नाथ जी मुझे एयरपोर्ट पर लेने आये। मैं उनके ही घर पर रुका। वहां प्रातः आस-पास घूमकर सुन्दर तालाब देखा, उसके बाद नाश्ता करके विश्वविद्यालय पहुँच गया।
यह इंटरनेशनल क्लाइमेट चेंज कन्वेंशन -21 पेरिस की तैयारी का सम्मेलन था। मैंने इन 5 दिनों के कन्वेंशन में बहुत जोर देकर पेरिस कन्वेंशन की तैयारी के लिए कहा कि दुनिया की बड़ी कम्पनियाँ और लालची सरकारें साझे भविष्य को लेकर बिल्कुल भी चिंतित नहीं हैं। इसलिए उनका प्रकृति की लूट, अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण करके काम करना ही लक्ष्य बन गया है। हम सबको एक होकर प्रकृति और मानवता दोनों को ही जीवन का एक समान मूल्य मानकर प्रकृति को बचाने में जुटना चाहिए।
5 दिन के इस कन्वेंशन में हमने मिलकर जो चार्टर बनाया, उसमें “वाटर इस क्लाइमेट एंड क्लाइमेट इस वाटर” यह बात सर्वसम्मति से स्वीकार कर ली गई। हमारे चार्टर को लागू कराने हेतु हमें दुनिया भर के 60 हजार लोगों को पेरिस की सड़कों पर उतारकर, चिल्ला-चिल्लाकर बोला कि ‘‘जलवायु जल से है, जल ही जलवायु है’’। जलवायु परिवर्तन को अनुकूलन और उन्मूलन के रास्ते पर लाता है, तो हमें जल संरक्षण का विकेन्द्रित प्रबंधन को ही बढ़ावा देना होगा। जल के उपयोग की दक्षता बढ़ानी होगी। तभी खेती, उद्योगों की जीवन पद्धति में अनुकूलन और उन्मूलन होगा। हमारी बात पेरिस में स्वीकार कर ली गई।
तीसरी बार 6 अक्टूबर 2016 से 22 अक्टूबर 2016 तक यहाँ रहा। 6 अक्टूबर को लॉस एंजिल्स पहुँचा। यहाँ 6 अक्टूबर से 16 अक्टूबर तक विश्व शांति हेतु जल पद यात्रा में गया था। स्टीवन स्टार हवाई अड्डे पर मुझे लेने आया। इसका घर हवाई अड्डे के बहुत ही पास है। महावी डेजर्ट देखा। रास्ते में विश्वशांति यात्रा में 47 लोग थे। यहाँ लगे सोलर जनरेटर के कारण बहुत गर्मी थी। यह मेरी ओंस वैली की दूसरी साल की बीच के हिस्से की पदयात्रा थी। इस पदयात्रा में दुनिया का सबसे खतरनाक डेजर्ट जो डेड वैली के नाम से जाना जाता है, उसे भी देखा। यहाँ का तापमान 55 डिग्री तक पहुँच जाता है। इसलिए यहाँ जाने के लिए सभी जगह मनाही के बोर्ड लगे होते हैं। इसलिए ओन्स वैली की हमारी पदयात्रा इससे बचाकर ही प्लान की थी।
दूसरे वर्ष की हमारी यह पदयात्रा 15 से 20 किलोमीटर प्रतिदिन की थी और गर्मी के कारण रोज हालात बिगड़ते थे। फिर भी हमने यह यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की। यहाँ, जहाँ हम लंच कर रहे थे, वहांँ के पहाड़ पर अचानक आग लग गई। वहांँ केवल 5 मिनट के बाद ही आग नियंत्रण गाड़ियाँ और एक हैलीकॉप्टर पहुँच गया। फिर 12 मिनट के अंदर कुल 8 हैलीकॉप्टर नजर आये। एक वाटर टैंक आग की चपेट में आ गया। 1 घंटे में आग बुझा दी गई। आग की यह अद्भुत नई तकनीक देखकर अच्छा लगा। जो तकनीक आग लगाती है, वह बुझाती भी है। आग नहीं लगे ऐसी जीवन पद्धति कब होगी? यह सवाल खड़ा हुआ।
यह पदयात्रा कठिन थी, फिर भी हमने बीच-बीच में इस ओंस वैली पर सरकार ने जो काम किये हैं, उन्हें देखा। इस नदी को जगह-जगह से बाँध कर मार दिया गया है। हमारे यात्रा दल में पूरी दुनिया के विविध ज्ञान और उम्र के लोग थे। हम सभी ने इस यात्रा से नदी को जानने और सीखने का साधन माना। इसलिए हम सब यात्रा को करते हुए बहुत आनंदित थे और कोई बीमार नहीं हुआ था। इस यात्रा में 80 साल की जीजी से लेकर 18 साल के युवा तक शामिल हुए थे। यह यात्रा एक मायने में सबको सिखाने और सीखने वाली साबित हुई। इस यात्रा में प्रतिदिन जल प्रार्थना और जल के विविध पक्षों पर बातचीत करने का लक्ष्य रखा। इस यात्रा का परिणाम हुआ कि ईथन जैसे युवा साथी पूर्णकालिक बनकर इस काम में जुट गए।
ग्यारह दिन की यात्रा में प्रतिदिन, भारत के मरुस्थल और कैलिफ़ोर्निया का मरुस्थल में कितना अंतर है, यह सभी कुछ समझना आरंभ किया। हमारे मरुस्थल के लोगों का जीवन और उनका जीवन, हमारा पलायन और उनका पलायन। यहाँ से उजड़े आदिवासी कहाँ गए? आदिवासी और धनिक अमेरिकन के युद्ध की बहुत सी सच्ची कहानियाँ सुनी। कई जगहों पर जाकर देखा जहाँ युद्ध के विषय में लिखा था कि युद्ध नहीं, लोगों को मार-मार निकालना था।
चौथी बार 12 अक्टूबर 2017 से 30 अक्टूबर 2017 तक अमेरिका में रहा । यह मेरी ओन्स वैली की जल पदयात्रा का आखिरी साल था। इस बार मेरे पाँव में दर्द था, फिर भी में विश्वशांति की यात्रा को पूरा करने में सफल हुआ और मैंने यात्रा पूर्ण की। लॉस एन्जिल्स शहर के एक कोने से जहाँ यह नदी समुद्र में मिलती है, वहांँ तक की पदयात्रा थी। इस यात्रा में हर दिन हम नदी के किनारे के पब्लिक पार्क में या खेल के मैदान या किसी विश्वविद्यालय, कॉलेज के खुले स्थानों पर ही कैंप लगाते थे। हम सभी के भोजन बनाने के लिए हमारी एक टीम हमारे साथ थी, जो रोजाना खाना बनाती थी। लेकिन भोजन सामग्री इस यात्रा को जरूरी मानने वाले लोग देते थे। हमें कभी भी भोजन का संकट नहीं आया। सभी जगह समय पर भोजन मिला।
इस बार की यात्रा पहले की यात्रा से कठिन थी। लॉस एन्जलिस औद्योगिक शहर है और हमें वहाँ के औद्योगिक क्षेत्रों से गुजरना पड़ता था। वहाँ का प्रदूषण हमें बहुत परेशान करता था। इसलिए मोनोलेक से शुरू होने वाली पदयात्रा, लॉस एन्जिल्स के नीचे समुद्र व ओंस नदी के मिलन स्थान हाईपीच पर सम्पन्न हुई।
यह 450 कि.मी. लम्बी पदयात्रा हमनें 2015 में शुरू करके 2017 में सम्पन्न की, क्योंकि यह यात्रा हर साल 12 से 15 दिन की होती थी और कभी ज्यादा, कभी कम होती थी, लेकिन 10 कि.मी. से कम कभी नहीं चली। कभी-कभी तो लगभग 22 कि.मी. तक भी प्रतिदिन चले थे। इस प्रकार इस यात्रा ने हमें मजबूती दी और हम सफलता पूर्वक आगे बढ़ते गए। इस यात्रा के दायरे में अंग्रेजी में हर साल सामाजिक रिपोर्ट छपती रही है। मैंने इस यात्रा की रपट में उस सामग्री का अनुवाद नहीं किया, बल्कि जो अनुभव मैंने स्वंय ने किया, वह इस पुस्तक में लिखा है।
यहाँ पर अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया, केन्या और सूडान के युवाओं को जल, जंगल व जमीन के संरक्षण के बारे में बताया। 14 तारिख को लॉस एन्जलिस वाटर बोर्ड के रीजनल डायरेक्टर आदि बड़े अधिकारी आये थे। अमेरिका में अपनेपन का अभाव और बिखराव ही ज्यादा दिखाई दिया। यहाँ भौतिक तौर पर तो प्रेम दिखाई देता है; लेकिन हृदय प्रेम नहीं है। सब कुछ दिखावा ही है। आत्मिक कुछ भी नही दिखता। लेकिन कुछ लोग है जो भारतीय जीवन दर्शन व जीवन पद्धति से प्रेम करते है। उनके मन में पर्यावरण रक्षा, भारतीय आस्था से ही संभव है। यही एक विश्वास उन्हें भारतीयता की तरफ मोड़ती है। वे बापू से प्रभावित जन ही हैं। बापू आज भी उनके बीच जीवित है।
पाँचवीं बार 2 मई 2019 से 5 मई 2019 तक यहाँ रहा। 24 घंटे की यात्रा के बाद सिअटल ( अमेरिका) पहुँचे। जैक मुझे लेने आया था, उनके साथ अर्थ रिपेयर कान्फ्रेंस पोर्ट हडलूर वाशिंगटन गये। यह यहाँ की आर्मी का प्रशिक्षण केन्द्र था। अब केवल यहाँ के बड़े अधिकारी अपनी छुट्टी काटने यहाँ आते है। यह तीनों तरफ से समुद्र से घिरा बहुत सुन्दर स्थान है।
3 मई को सिअटल में सम्मेलन का शुभारंभ किया। सिअटल में मैंने अपना भारत का अनुभव रखा। सम्मेलन में दुनिया भर से 600 लोग आये थे। 5 मई को उसो में स्माल होल्डर से मिल कर, कैसे आंदोलन चलाएँ, इस विषय पर बातचीत हुई। इस सम्मेलन ने मुझे अर्थ रिपेयर सम्मान से सम्मानित भी किया। पूरी दुनिया के ‘पृथ्वी पुनर्जीवन’ सुधारने वालों की समझ का यह अकेला अनुभव था जहाँ धरती और जलवायु दोनों में सुधार हुआ है।
6 मई को पोर्ट टाउन सेन्ट में सैब शैइलिश के घर पर सम्मेलन के कोर ग्रुप की बैठक हुई। इस बैठक में जैक, जौन, माईकल, स्फीटर, हैना, ऐरिसिलिया मेक्सिको, बैक्की चार्ल्स आइस्टाइन आदि 15 लोग शामिल थे। वहांँ पर मैंने कहा कि पृथ्वी की सेहत सुधारने के लिए हम सबको मिलकर काम करने की जरूरत है। हमें अपना एक सिद्धांत बनाना चाहिये । हम नीर, नारी और नदी के सम्मान के द्वारा ही अपने लक्ष्य को पा सकते हैं। यह यात्रा पृथ्वी रक्षण का काम करने वालों से मिलने की यात्रा थी। इसमें दुनिया के सभी महाद्वीपों और उपमहाद्वीपों के देशों के लोग आये थे। जलनैतिकता और न्याय के बिना धरती का सुधार संभव नहीं है। इस बात पर लोगों ने बहुत रुचि लेकर मुझे सुना। उसी के अनुसार कार्यक्रम भी बनाये। जैक ने इस काम में बहुत रुचि लेकर इसे आगे बढ़ाया।
जैक ने मेरे साथ जल न्याय-नैतिकता की साक्षरता हेतु काम करने की जिम्मेदारी भी ली। फिर वह भारत भी आया। उसने हमारे साथ रहकर काम भी देखा। उसने यह काम जहाँ जरुरी होगा, वहाँ करने का अपना संकल्प तरुण भारत संघ के कार्यकर्ताओं को बताया।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।