– डॉ. राजेंद्र सिंह*
पर्यावरण अनदेखी से भारत में बाढ़-सुखाड़, समुद्री तूफान आधे दर्जन से अधिक इस साल में आ गए है। फिर भी कोयले खनन, हीरा खनन आदि का निजीकरण बहुत तेजी से बढ़ाया जा रहा है। पर्यावरणीय विनाश कर हम जगत गुरु नहीं बन सकते । हाँ हम जगत गुरु बन सकते है लेकिन पर्यावरणीय भारतीय ज्ञानतंत्र का सम्मान करके सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय हेतु जल उपयोग दक्षता बढ़ाकर। भारतीय युवाओं में पर्यावरणीय नेतृत्व निर्माण का काम भारत सरकार जरूरी काम मानकर करे तभी भारत को एक बार और जगत गुरू प्राकतिक-आध्यात्मिक, सांस्कृतिक समृद्धि द्वारा बना सकते हैं।
21वीं शताब्दी वैश्विक जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को बढ़ा रही है। इनको रोकने के लिए वर्ष 1972 में स्टॉकहोम स्वीडन से ही दुनिया में कोप (पृथ्वी शिखर सम्मेलन) नामक प्रक्रिया चालू हुई थी, लेकिन इस प्रक्रिया में भी आर्थिक पक्ष पर ही ज्यादा जोर रहता है। इस प्रक्रिया के अभी तक 24 सम्मेलन हो चुके हैं।
पेरिस (फ्रांस) में नवम्बर 2015 में आयोजित हुआ। इसमें भी मानवीय और प्राकृतिक रिश्तों को मजबूत करने वाला कोई चिंतन नहीं हुआ, बल्कि गैसों से मुक्ति और ऊर्जा का व्यापार ही चर्चा में रहा है। हम दुनिया के हजारों लोगों ने फ्रांस की सड़कों पर ’’जल ही जलवायु परिवर्तन अनुकूलन द्वारा बिगड़ते मौसम का समाधान है। ‘वॉटर इज़ क्लाइमेट, क्लाइमेट इज़ वॉटर’ को स्वीकार कराया। उसके बाद इसे क्रियान्वित कराने वाले सम्मेलन मोरक्को एवं दुनिया के अन्य शहरों में आयोजित हो चुके है। लेकिन जलवायु परिवर्तन संकट वैसा का वैसा ही है।
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पानी, मिट्टी, हरियाली, नदियां ये सभी चर्चा से बाहर थे। दुनियाभर के हजारों लोगों ने इस चर्चा में पानी, मिट्टी, हरियाली को मुख्य मुद्दा बनाने पर जोर दिया। इन विषयों पर दर्जनों सम्मेलन नागर समाज (सिविल सोसायटी) ने आयोजित किये। इसका प्रभाव यह रहा कि जब 22वां कोप मोरक्को में आयोजित हुआ तब इसमें दुनिया भर की सरकारों ने अपने पानी के राष्ट्रीय प्रबंधन के उपाय सामने रखे। पानी पर सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय दिलाने वाले फैसले लिए गये। दुनिया में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की नई प्रकिया बन सकी। इस दिशा में आगे बढ़ाने के लिए समग्रता से जल को ही स्थाई समृद्धि का आधार मानकर अग्रलिखित विषयों को समझना चाहिए।
सबसे पहले स्वच्छता जैसे बुनियादी पहलुओं पर चर्चा शुरू हो। हमें सुनिश्चित करना होगा, सभी का भू-जल संरक्षित हो, जल, अन्न, ऊर्जा को समग्रता से कैसे संचालित करें। दूषित जल का खाद्य, उद्यान एवं उद्योगों में उपयोग कैसे बढ़ाएं? रोजगार और जल की स्थाई समृद्धि के बीच गहरा जुड़ाव है। जल सुरक्षा दुनिया को बदलने संबंधी गहरी चुनौतियों का सहवरण कर सकती है। नदी बेसिन में बोरहोल को मॉनिटर करना अत्यंत जरुरी है। शहरों में जंगल और जल का संरक्षण भी वैसा ही जरूरी है, जैसे मानवता के लिए पाँच स्तरीय गहरी व ऊँची हरियाली।
जल के साथ अर्थव्यवस्था को स्वच्छता से आगे बढ़ाएं। एसडीजी को सफल बनाने हेतु आर्थिक साधन और शोध चाहिए। सभी बेसिन में सिंचाई हेतु आर्थिक मदद चाहिए। एसडीजी को सफल बनाने वाली परिणामदायी मदद चाहिए। अभी जो विकास के नाम पर चल रहा है, इससे दुनिया और धरती का चेहरा बिगड़ रहा है। बढ़ती बाढ़-सुखाड़, भूकंप व समुद्री तूफानों की, सरकारें पूर्व चेतावनी तक नहीं दे पाती हैं। इसलिए धरती पर प्राकृतिक संकट खतरनाक तौर पर बढ़ रहा है। इससे बचने हेतु धरती का कटाव रोकने वाला काम करना चाहिए। यही बाढ़-सुखाड़ से मुक्ति का उपाय सिखाता है।
जल रोजगार का सीधा समृद्धि के साथ संबंध है। “जल ऊर्जा जंगल मंच” ही एसडीजी के जल, उर्जा और जंगल से सम्बन्धित जरुरतों को पूरी करने में मदद करेगा। जल, खनिज के आर्थिक विकास में प्राकृतिक संसाधनों का हस कर रहा है। चमड़ा-कपड़ा उद्योगों को सहयोग करके स्वीकृति स्तर प्राप्त कराये। वर्ष 2030 हेतु जल संरचना के उच्चस्तर का निर्माण करें। एसडीजी को अनुभवों के आधार पर स्वीकृति देकर अनुभवों से आगे बढ़ाना। जल सुरक्षा, समाज सरलीकरण द्वारा समाज को दात्यिव निर्वाह के लिए तैयार करना है।
जल सुरक्षा व्यवस्थापन करने वाले जल संसाधन का निर्माण कराना, जल स्वच्छता के भ्रम को दूर करें और असफलताओं को सफलतापूर्वक पुनः कैसे स्थापित करें? जल और रोजगार, विश्व जल विकास की रिपोर्ट के अनुसार, स्थाई समृद्धि का चालक है। शहरों के लिए स्थाई समृद्धि हेतु जल समाधान करना, जैव मानव एवं पशु और पानी सम्बन्धी ग्रामीण क्षेत्रों और नगरों में वातावरण का निर्माण करना, स्थानीय संगठनो को समग्र प्रक्रिया में शामिल करना है। पलायन और जल प्रबंधन को नीति और अभ्यास में शामिल करना, बेसिन भूमि एवं खतरनाक लैण्डस्कैप को बदलना, मानव की जल स्वच्छता की जरुरत को पूरा करने वाला सामुदायिक कार्यक्रम तैयार करना, यूएन, दर्जन भागीदार, एसडीजी 6, एवं कोप 21 के प्रकाश में काम को करना है। वर्ष 2030 के जल एजेंडा में विनाश को रोकना है। स्थाई समृद्धि का रास्ता पकड़ना है। जल आस्था संगठन एसडीजी के क्रियान्वयन में सहयोग करना है।
पारिस्थितिकी तंत्र का ह्रास जीविका को कष्टमय बना रहा है। भूजल पुनर्भरण द्वारा अंतर्राष्ट्रीय भूजल भण्डारों को भरना और व्यवस्थापन करना, जल संरचनाओं हेतु आर्थिक व्यवस्थापन करके स्थाई समृद्धि के रास्ते पर चलना, सामाजिक प्रभाव जानना, जलवायु परिवर्तन का व्यवस्थापन एवं कूटनीति। आधुनिक जल सेवाओं द्धारा निर्माण और संचालन करना, जल सुरक्षा हेतु प्राकृतिक आर्थिक निर्माण करना है । पारिस्थितिकी ह्रास रोक कर और जीविकोपार्जन के साथ-साथ विनाश को रोक कर विकास चक्र का निर्माण करना है। जल हेतु अर्थ का स्थाई व्यवस्थापन करना है। लैंगिक (जेंडर) जल स्वच्छता कार्यक्रम विद्यालय एवं कार्यस्थल पर चलाना है।
इसका स्थाई अर्थ व्यवस्थापन द्वारा जल के काम को सफल बनाना। पीपीपी प्रयोग असफल हुआ है। इसमें बड़ी कम्पनियों को लाभ मिला है। अतः अब सामुदायिक जल मंच से स्थाई विकास करना। विश्व जल दिवस हेतु वेस्ट वाटर रिसाईकल व्यवस्था, युवा जल कर्मियों की क्षमताओं का विकास करना। युवाओं के लिए रोजगाररू युवा जल स्वच्छता वास्तव मे सतत् विकास प्रदान कर सकता है? जल संरचनाओं पर खर्च करना स्थाई समृद्धि है।
* लेखक जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।