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दुनिया की नदियां – 10
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
मोरक्को उत्तरी अफ्रीका का एक देश है। मोरक्को भौगोलिक रूप से अटलांटिक महासागर और भूमध्य सागर के साथ उत्तरी अफ्रीका में स्थित है। यह एक समृद्ध दारा नदी संस्कृति और सभ्यता वाला देश है। यह अल्जीरिया और पश्चिमी सहारा से घिरा हुआ है। मोरक्को का वातावरण इसकी स्थलाकृति की तरह, स्थान के साथ भी भिन्न होता है। रिबात यहाँ की राजधानी है।द्रारा नदी से इस देश का बहुत लम्बा इतिहास है।
दारहा या द्रारा मोरक्को की सबसे लंबी नदी है, इसकी लंबाई 1,100 किलोमीटर है। यह दादस नदी और इमिनी नदी के संगम से बनती है। यह उच्च एटलस पहाड़ों से शुरू होती है, शुरू में दक्षिण–पूर्व से टैगौनाइट तक, और टागौनाइट से ज्यादातर पश्चिम की ओर से अटलांटिक महासागर में अपने मुंह तक जाती है। 1971 में, मंसूर एडदाबी बांध का निर्माण क्षेत्रीय राजधानी ऑउरज़ाज़ेट की सेवा के लिए और द्रारा के प्रवाह को विनियमित करने के लिए किया गया था। टैगौनाइट के बाद वर्ष के अधिकांश भाग में द्रारा का भाग सूख जाता है।
द्रारा नदी को शुद्ध–सदानीरा बनाये रखने के प्रयास यहाँ होते रहे है। यहाँ के बादशाह भी नदी को शुद्ध–सदानीरा बनाकर रखना चाहते है। जल प्रवाह की कमी और शहरी प्रदूषण से मुक्ति अभी तक इस नदी को मिली नहीं है। इसमें जल है। बहता जल दिखता है। भारत की नदियों से तो बेहतर है। द्रारा ने मारकेश में जल संस्कृति बनाई है।
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द्रारा के पानी का उपयोग नदी के किनारे ताड़ के पेड़ों और छोटे खेतों की सिंचाई के लिए किया जाता है। द्रारा के निवासियों को अरबी द्रा में कहा जाता है, शिल्हा इद्रवियन में, सबसे प्रसिद्ध द्राई (द्रा का एकवचन) निस्संदेह सुल्तान मोहम्मद ऐश–शेख (1490-1557) है। द्रा क्षेत्र के बाहर इस नाम का प्रयोग ज्यादातर द्रारा के गहरे रंग के लोगों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जो इसके निवासियों का सबसे बड़ा हिस्सा बनाते हैं।
20 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, द्रा के सबसे निचले पाठ्यक्रम ने मोरक्को के फ्रांसीसी संरक्षक और स्पेनिश शासन के तहत क्षेत्र के बीच की सीमा को चिह्नित किया।
लगभग 225,000 लोग द्रारा की घाटी में रहते हैं, जिसका माप 23,000 वर्ग किलोमीटर (8,900 वर्ग मील) है। घाटी ज़गोरा प्रांत से मेल खाती है, जिसे 1997 में सूस–मस्सा-द्रा क्षेत्र में बनाया गया था। प्रांत में 23 गाँव और दो नगर हैं: ज़गोरा और अगदज़। ज़गोरा के पास, तामेग्रौटे का गाँव अपने ज़ाविया के लिए प्रसिद्ध है।
घाटी में फ़ेज़ौटा संरचनाएं हैं, जो लोअर ऑर्डोविशियन से संबंधित बर्गेस शेल–प्रकार की जमा राशि हैं, जो आम कैम्ब्रियन लेगरस्टेटन और लेट ऑर्डोविशियन सूमशेल के बीच एक महत्वपूर्ण संरक्षण खिड़की को भरती हैं।जीवाश्मजीवों में कई जीव थे जिनके बारे में पहले माना जाता था कि मध्य कैम्ब्रियन के बाद मर गए थे।
द्रारा की घाटी का पूर्व–इतिहास हजारों साल पीछे चला जाता है, सबसे अधिक टैन–टैन के शुक्र की खोज से प्रमाणित होता है, जैसा कि इसके आसपास के कई रॉक कला नक्काशी या पेट्रोग्लिफ से और यह मूर्ति संभवतः अब तक की सबसे पुरानी मानव मूर्ति है। यह तीन सौ हजार साल से अधिक पुरानी है। सहारा के प्रागितिहास के सभी मुख्य काल से शैल–उत्कीर्णन और शैल–पेंटिंग मिले हैं। फ़ाउम चेन्ना (टिनज़ौलिन), ऐट औआज़िक (एस्गुइन टार्ना, ताज़रीन), और टियोरिरिन ई टिस्गिनिन (ज़गोरा) द्रा क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है।
द्रारा घाटी मोरक्को की खजूर की टोकरी के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ 18 से अधिक किस्मों को उगाया जाता है। फलों के पेड़ और सब्जियाँ मुख्य फसलें हैं, लेकिन मेंहदी भी इस क्षेत्र का एक प्रसिद्ध उत्पाद है। कृषि बहुत श्रम प्रधान हैै क्योंकि यह सीढ़ीदार खेतों पर होती है। छोटी नहरें नदी से पानी को खेतों तक पहुँचाती हैं। उत्तरी अफ्रीका (सिवा, कुफ़्रा, ऑउरग्ला) में कुछ अन्य प्राचीन बर्बर ओसेस की तरह, द्रारा घाटी अपने कतरा, भूमिगत सिंचाई नहरों की एक परिष्कृत प्रणाली के लिए जानी जाती थी। इस नदी की मैंने दोबारा यात्रा की है। दोनां बार ही वैश्विक सम्मेलनों के बुलावे पर गया था।
पहली बार 1997 में विश्व जल मंच में पहली बार मोरक्को गया था, फिर 10 नवम्बर 2016 से 16 नवम्बर 2016 तक मोरक्को में रहा था। मोरक्को में कोप-22, कोप-21 के निर्णयों को क्रियान्वित करने के लिए पृथ्वी शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था, उसमें वक्ता बतौर गया था। कोप-22, पेरिस ऐग्रीमेंट, कोप-21 और एस.डी.जी– 15 को लागू करने के लिए सरकारें अपना–अपना प्लान लेकर आयी थी। हमने उनके इस प्लान में अपनी भी भागीदारी ढूँढ़ने की कोशिश की थी। नदी पुनर्जीवन आदि काम होंगे, दिखाई नही दिए। हमारा ज्यादातर समय सामाजिक काम करने वाली स्वैच्छिक संस्थाओं के पंडालों में जल साक्षरता, जल नैतिकता और न्याय नदी पुनर्जीवन की बातचीत करने में ही बीता। यहाँ के विश्वविद्यालयों के बुलावे पर भू–जल पुनर्भरण कार्यशाला में भी मैंने भारत के अपने अनुभव रखे। यहाँ प्रो. राजेन्द्र पौद्दार, ईथन आदि साथियों का एक सक्रिय दल मेरे साथ था। जुलिया ने तरुण भारत संघ के कामों की फिल्म कई जगहों पर दिखाई थी। प्रो. पोद्दार ने तरुण भारत संघ का अनुभव खेती में अनुकूलन करके जलवायु को कैसे ठीक किया जा सकता है और जल संरक्षण से धरती का बुखार व मौसम के मिजाज को कैसे ठीक रखा जा सकता है इसका प्रस्तुतिकरण किया। इसका अच्छा परिणाम यह हुआ कि कोप-22 में जलवायु परिवर्तन, उन्मूलन व अनुुकूलन हेतु जल व खेती दोनों ही छाये रहे।
यहाँ पर मारकेश जाते हुए रास्ते में एक बार और सहारा डेजर्ट देखा। यहाँ जल संकट है। यहाँ के युवाओं ने स्विट्जरलैंड की मदद से एक सेंटर शुरू किया है। उनका एक बड़ा कार्यक्रम यहाँ 22 वां कोप( पृथ्वी शिखर सम्मेलन) हुआ था। स्विट्जरलैंड के राष्ट्राध्यक्ष ने हमारे यात्रा दल का स्वागत किया। उन्होंने हमसे पूछा कि आपकी क्या अपेक्षाएँ हैं? हमने कहा कि अब दुनिया में जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचने के लिए केवल जल, मिट्टी और हवा पर ही ध्यान देने की जरूरत है। हमारा भगवान ये ही है। इसी के साथ हमें रहना–जीना और मरना भी है। इसलिए पंचमहाभूतों का संरक्षण, प्रबंधन ही जरुरी है। इन्हीं पर हमारा ध्यान जाना जरुरी है। पंचमहाभूत स्वस्थ्य होंगे तो हम भी स्वस्थ्य होंगे।
फ्रांस के जल सेंटर और अफ्रीकन वाटर फोरम के साथियों के साथ एक बैठक हुई, जिसमें जून में तंजानिया में जलवायु मंच आयोजित करना तय हुआ। आयोजन की जिम्मेदारी लेने वाले साथी मौजूद थे। इन्होंने तय करके सुनिश्चित किया। हमने उन्हें बताया कि हम केन्या, थाईलैंड व दक्षिण अफ्रीका में इसी महीने जाकर, काम करने वाले लोगों से मिलकर सम्मेलन की तैयारी करेंगे। मारकेश के पास गाँव में एक शिविर में जाकर जल संरक्षण के बारे में सिखाया। यह मारकेष यात्रा बहुत सार्थक रही। यहाँ के गाँवों में मैंने कई युवा शिविरों मारकेश की संस्थाओं से मिलकर किये। इनमें ईथन और जुलिया मेर साथ रहे। इन्होंने अनुवाद करने में मदद करी। यहीं से हमारी अफ्रीका जल साक्षरता यात्रा सक्रिय एवं प्रभावशाली बनने लगी। यहाँ हमें दुनिया भर के लोगों से मिले।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। यहां प्रकाशित आलेख उनके निजी विचार हैं।