जल चिंतन – 3
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
बड़े बांध बनाने पर भारत सरकार 2018 तक अरबों-करोड़ों रुपये खर्च कर चुकी है। इन योजनाओं से दो करोड़ हैक्टर जमीन सिंचित होने का सरकारी दावा था। वास्तव में कितनी जमीन की सिंचाई ये योजनायें कर रही है। यह कहा नहीं जा सकता, क्योंकि जिस प्रकार इनके आंकड़े इकट्ठे किये जाते हैं, उसके कारण सारी बात शंकास्पद है। इस अर्से में 246 बड़ी योजनायें शुरू की गई थी, उनमें सिर्फ 65 योजनायें अभी तक पूरी हुई है। इन बड़ी योजनाओं में अब जो घाटे की धारा बह रही है वह चौंकाने वाली है। एक वर्ष में हजारों करोड़ का घाटा कहां से, कैसे पूरा होगा? यह बात निश्चित ही जागरूक व्यक्ति को चिन्तित करती रहती है।
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बड़े बांधों से ‘‘सिंचाई’’ का बहाना तो सिर्फ लोगों की आंखों में धूल झांकने के लिये थे । अगर सही तथ्य सामने आते जाये तो वास्तव में बड़े बांधों के कारण कुल-मिलाकर सिंचाई पहले की अपेक्षा कम ही हुई है क्योंकि इन बांधों से नदियों के प्रवाह रूक जाने के कारण इन प्रवाहों के दोनों और की लाखों एकड़ जमीन और उसमें स्थित कुएं सूख गये हैं तथा भूगर्भ जल का स्तर पिछले दस-बीस बरसों में पचास से सात सौ फीट तक नीचे चला गया है। इन बड़े बांधों का असली उद्देश्य तो किसान की स्वावलम्बी व्यवस्था को तोड़कर उसे केन्द्रित करने और बड़े-बड़े घरानों या बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को लाभ पहुंचाने का था। गांव-गांव में सिंचाई की जो परम्परागत स्वावलम्बी व्यवस्था थी उसे समाप्त करके किसान का भाग्य इन लोगों के हाथों में सौंप दिया गया।
इन सीधे-सादे लेकिन असरकारक तालाबों की अब भी उपेक्षा करने की भूल की जा रही है। 1950 में भारत के कुल सिंचित क्षेत्र की 17 प्रतिशत सिंचाई तालाबों से की जाती थी। ये तालाब सिंचाई के साथ-साथ भू-गर्भ के जलस्तर को भी बनाये रखते थे, इस बात के ठोस प्रमाण उपलब्ध है। 1950 से पहले तो हमारे तालाब ही सिंचाई के प्रभावी साधन थे। सुदूर भूतकाल में तो 8 प्रतिशत से अधिक सिंचाई तालाबों से ही होती थी। तालाबों में पाये गये शिला-लेख इसके जीते-जागते प्रमाण हैं। ये तालाब हिन्दुस्तान के हर कोने में पाये जाते रहे हैं। सबसे अधिक सुमन्द्रतटीय जिलों में तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में तालाबों से होने वाली सिंचाई का क्षेत्रफल 1890 तक निरन्तर बढ़ता रहा था। इस स्वावलम्बी सिंचाई योजना का अंग्रेजों ने जानबूझकर खत्म करने का जो षडयंत्र रचा था, उसे स्वतंत्र भारत के योजनाकारों ने बरकरार रखा है और वर्तमान, जनविरोधी, ग्राम-गुलामी की सिंचाई योजना को तेजी से लागू किया है।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। यहां प्रकाशित आलेख उनके निजी विचार हैं।