– रमेश चंद शर्मा*
गांधी शांति प्रतिष्ठान के बारे में चर्चा, विचार विमर्श, चिंतन मनन तो 1955 से ही गांधी स्मारक निधि में शुरू हुआ। यह निधि की पहली स्वायत संस्था बनाई गई। 1958 में स्थापना का अधिकार निधि के अध्यक्ष श्री रंगनाथ रामचंद्र दिवाकर को दिया गया। एक करोड़ का कोष प्रतिष्ठान के नाम से निर्धारित किया गया। विधान एवं योजना बनाने के लिए एक समिति गठित की गई जिसके सदस्य थे सर्वश्री डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती सुचेता कृपलानी, मोरारजी भाई देसाई, आचार्य जे बी कृपलानी, उ न ढेबर भाई एवं जी रामचंद्रन।
कार्यसमिति ने 1959 में विधान स्वीकार किया।
पहले लगभग पांच साल निधि के अंग के रूप में ही प्रतिष्ठान का काम चला। प्रारम्भिक प्रमुख विशेष कार्यक्रम-
- केरल प्रदेश का व्यापक अध्ययन। जनता के विरोध के कारण 1959 में केरल राज्य सरकार की बर्खास्तगी हुई।
- 1960 में दस स्नातकोत्तर छात्रों को फैलोशिप प्रदान की गई। जिनके विषय थे- धार्मिक सहिष्णुता की गांधी कल्पना, अपराध और दंड की अहिंसात्मक दृष्टि, लोकतंत्रीय शासन में ट्रस्टीशिप, सामाजिक परिवर्तन की अहिंसक पद्धति। इन विषयों पर काका कालेलकर, आचार्य जे बी कृपलानी, श्रीमन्नारायण, डॉ वी के आर वी राव, डॉ ज्ञानचंद के मार्गदर्शन में शोधकर्ताओं ने शोध तैयार किए।
- 1962 में अणु अस्त्र विरोधी तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन। अणु अस्त्र के बारे में बातचीत करने के लिए दो प्रतिनिधि मंडल बनाए गए। एक आर आर दिवाकर के नेतृत्व में राजाजी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एवं वी शिवराज सदस्य को अमेरिका और ब्रिटेन तथा दूसरा उ न ढेबर भाई के नेतृत्व में जी रामचंद्रन सदस्य को रुस भेजा गया।
- 1965 में निधि के तत्व प्रचार केन्द्र प्रतिष्ठान को सौंपे जाने शुरू हुए जो 1969 तक प्रक्रिया जारी रही। कुछ केन्द्र बंद भी किए गए तथा कुछ नए बनाए भी गए। केन्द्र शांति कार्य, गांधी विचार का प्रचार प्रसार, तनाव मुक्ति, प्रशिक्षण आयोजित करना, चर्चा, गोष्ठी, परिसंवाद, भाषण, साहित्य बिक्री, सफाई, श्रमदान, भंगी मुक्ति, स्थानीय आवश्यकता, वातावरण, समस्या के समाधान हेतु कार्यक्रम, युवा कार्यक्रम आदि का आयोजन।
हिंदी, अंग्रेजी की गांधी मार्ग पत्रिका भी सौंप दी गई।
- प्रकाशन कार्य के अंतर्गत पुस्तकों, दस्तावेजों का प्रकाशन।
- राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय संपर्क, संवाद स्थापित करना।
- पुस्तकालय।
- प्रबंध समिति (गवर्निंग बॉडी) बनी। अध्यक्ष सर्वश्री रंगनाथ रामचंद्र दिवाकर, मंत्री जी रामचंद्रन, सदस्य बने डाॅ राजेन्द्र प्रसाद, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पंडित जवाहरलाल नेहरु, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, आचार्य जे बी कृपलानी, डॉ जाकिर हुसैन, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी भाई देसाई, काका कालेलकर, उ न ढेबर भाई, जयराम दौलतराम।
लक्ष्य रखे गए- अध्ययन, अहिंसा अनुसंधान, संचार, कार्य। सत्य, अहिंसा, न्याय के लिए जनमत जागृत करना।
1963 में गांधी शांति प्रतिष्ठान का पंजीकरण कराया गया।
1969 गांधी शताब्दी तक भवन एवं प्रशासनिक व्यवस्था बनकर तैयार हुई।
दिवाकर जी बाबा विनोबा भावे से केएस राधाकृष्ण जी को जो उस समय सर्व सेवा संघ का कार्य संभाल रहे थे, प्रतिष्ठान के लिए मांग कर लाए। पहले विनोबा जी तैयार नहीं हो रहे थे। एक अद्भुत प्रसंग बना आग्रह के साथ दिवाकर जी ने कहा बाबा एक ब्राह्मण दूसरे ब्राह्मण से तीसरे ब्राह्मण को मांग रहा है। के एस राधाकृष्ण मंत्री बने।
गांधी शताब्दी 1969 से ही प्रतिष्ठान का मुख्य काम तीव्र गति से चला। उस समय देश और दुनिया के सामने कई खतरे चुनौती दे रहे थे।
साम्प्रदायिक तनाव, अणुअस्त्र, महाशक्तियों का प्रभुत्व आदि। गांधी शताब्दी एक बड़ा अवसर बना इन चुनौतियों का सामना करने को।
गांधी की प्रासंगिकता पर अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन। सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान का भारत दौरा। गांधी दर्शन प्रदर्शनी में सहयोग। संसद सदस्यों के मध्य कार्य। नशाबंदी कार्यक्रम। भारत की अणु नीति। तत्व प्रचार केन्द्रों का समन्वय। राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संपर्क संवाद स्थापित करना। शांति कार्य में जुटे व्यक्ति, संगठन, समूह, संस्था, संस्थानों से संपर्क, संवाद। युवकों, छात्रों, औधौगिक मजदूरों, अल्पसंख्यकों, मध्यवर्गीय लोगों से तालमेल।
महात्मा गांधी सौ वर्ष, संपादक- सर्वपल्ली राधाकृष्णन का प्रकाशन। भारतीय शांति अनुसंधान परिषद की स्थापना। आजीवन सदस्य योजना। युद्ध विरोधी आंदोलन। विश्व में प्रतिनिधि भेजना। अहिंसा विद्यालय राजघाट, नई दिल्ली, मदुरै, मद्रास, कालीकट।
गांधी शांति प्रतिष्ठान मात्र एकेडमिक नहीं रहे बल्कि कार्योन्मुख बने। ऐसे प्रमुख कदम उठाए गए। गांधी शांति प्रतिष्ठान के प्रारंभिक काल के बारे में अपन ने एक संक्षिप्त नोट तैयार किया था। अब मन किया कि उसे आप तक पहुंचाना उचित उपयोगी रहेगा।