किसान दिवस पर विशेष
– प्रशांत सिन्हा
ऐसा किसान आंदोलन देश में कभी नहीं हुआ है
आज किसान दिवस है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां पर भारत की ज्यादातर जनसंख्या खेती पर निर्भर होती है इसलिए किसान दिवस का यहां बहुत महत्व है। इस दिवस का आयोजन भारत के पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह के सम्मान में तथा उनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। चौ. चरण सिंह जब प्रधान मंत्री पद पर थे तब उन्होने किसानों के हित के बारे में काम करने का फैसला लिया था। वह किसान के सभी समस्याओं को जानते थे।
देश की अर्थवयवस्था के विकास में किसानों का अहम योगदान है। बावजूद किसानों की समस्याएं कम होने के बजाय दिन ब दिन जटिल हो रही है। कृषि और किसान कल्याण को लेकर जब हम ठोस रणनीति की बात करते हैं तो उसमे सबसे पहले 86 फीसदी लघु और सीमांत किसानों की बात आती है जो हाशिए पर जा रहे हैं। किसान बहुत मेहनत और लगन के साथ अनाज उगाता है और बाज़ार में बेचता है। परन्तु किसानों को उसकी सही लागत नहीं मिल पाता। किसानों को अच्छे अनाज उत्पादन के लिऐ बहुत कठिन कार्य एवं संघर्ष करना पड़ता है। कई बार किसानों की फसल मौसम, कीड़े, इत्यादि के कारण खराब हो जाता है जिससे किसानों को बहुत नुकसान होता है। कई किसान हताश होकर आत्महत्या कर लेते हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि उद्योग और व्यापार जगत की प्रयास से अर्थव्यवस्था में सुधार देखने को मिल रहा है। और इस बीच कृषि क्षेत्र की लगातार उपेक्षा होती जा रही है। देश की कुछ जनसंख्या का एक बड़ा भाग आज भी कृषि पर आश्रित है। कृषि क्षेत्र की अनदेखी नहीं की जा सकती। यह भी बात सही है कि सरकार ने 2023 तक देश के किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है।
पांच जून को अध्यादेश आने के बाद और 18 सितंबर तक विधेयक पारित होने तक इन कानूनों पर कोई विशेष प्रतिक्रिया देश में नहीं हुई। कहीं कोई विरोध भी सुनने को नही मिला। लेकिन संसद में विधेयक पारित होने के साथ ही कुछ कृषि विषेशज्ञों विशेषकर लेखक और विचारकों द्वारा इन कानूनों पर कुछ आपत्ति की गई। इन आपत्तियों पर लेख और सोशल मीडिया में चर्चा के बाद यह बात पंजाब में सबसे चर्चा में आई। यहां कांग्रेस की सरकार ने इस विरोध को एक मुकाम दिया। कानूनों को प्रदेश में लागू नही करने के लिए विधेयक पारित कर दिया और मंजूरी के लिऐ राष्ट्रपति को भेज दिया। इस कानून का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब में हुआ। 40 संगठनों की एक किसान संघर्ष समिति बनी। इसके बाद आंदोलन ने गति पकड़ ली। सरकार ने 6 दौर की बातचीत की लेकीन समाधान नहीं निकला। किसान तीनों कानून रद्द कराना चाहते हैं। सरकार कानूनों में कुछ संशोधन करने के लिए तैयार है लेकिन किसान इसके लिए तैयार नहीं है।
किसान आंदोलन गंभीर रूप धारण करता जा रहा है। तीन हफ्ते बीत गए लेकिन इसका कोई समाधान नहीं दिख रहा है। कृषि मंत्री, गृह मंत्री के साथ किसान नेताओं की कई दौर की बात हो चुकी है लेकिन कितनी विचित्र स्थिति है कि अब सर्वोच्च न्यायलय को बीच में आना पड़ रहा है। किसान इस पर अडे हुए हैं कि सरकार इन तीनों कृषि सुधार कानूनों को वापस ले और सरकार किसानों को यह समझाने में लगी है कि ये कानून उनके फायदे के लिऐ बनाए गए हैं। इस आन्दोलन से विपक्ष की चांदी हो गई। हालांकि किसान राजनीतिक दलों को अपना मंच साझा नहीं करने दे रहे लेकिन फिर भी विपक्ष अपने को किसान के साथ खड़े होते दिखाने की कोशिश ज़रूर कर रहे है।
इसमें गलती सरकार की भी है। जैसे नोट बंदी, जीएसटी, तीन तलाक़, और नागरिकता संशोधन एक झटके में थोप दिया वैसे ही किसान कानून के साथ किया गया। किसानों को शायद यही गवारा नहीं हुआ। सरकार ने सपने में नहीं सोचा होगा कि उसके विरुद्ध इतना बड़ा आंदोलन खड़ा हो जाएगा। ऐसा किसान आंदोलन देश में कभी नहीं हुआ है।
सरकार और अनेक कृषि विषेशज्ञों की राय है कि इन कानूनों से भारतीय खेती के आधुनिकीकरण की गति बहुत तेज़ ले जायेगी। किसानों को बेहतर बीज, सिंचाई, कटाई, भंडारण और बिक्री के अवसर मिलेंगे।
आज किसान दिवस के अवसर पर सभी पक्षों को इसका समाधान निकालना होगा। दुनिया ऐसे दौर से गुजर रही है जब हर क्षेत्र में तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं। शिक्षा, चिकित्सा, मीडिया, यातायात, और बैंकिंग समेत अन्य सेक्टरों में काफी बदलाव हुए हैं। भारत में भी कृषि क्षेत्र में बदलाव की जरूरत है।
प्रायः देखा गया है जब भी कोई बदलाव होता है शुरुआत में इसका विरोध होता है। कंप्यूटर, नोट गिनने की मशीन आदि जब लगने शुरू हुए थे तब इसका जबरदस्त विरोध हुआ था लेकिन आज इनके बगैर एक दिन भी काम नहीं कर पाते। किसानों के आर्थिक पक्ष को मजबूत करने के लिऐ उन्हें जागरूक करना चाहिए कि वे अपनी हैसियत से ज्यादा सरकारों के भरोसे कर्ज न लें। इसके साथ ही जिन फसलों , फलों या सब्जियों की बाज़ार में ज्यादा मांग है उनकी खेती को ही अपनाएं।
सरकार को चाहिए कि वह राज्यों को छूट दे। जिन राज्यों को यह कानून लागू करना हो वह करे। जिन्हें नहीं करना हो वह न करें। सरकार को चाहिए कि किसानों दुविधा को अविलंब दूर करें। अब भी देश के 90 प्रतिशत किसान एमएसपी की दया पर निर्भर नहीं है। वे मुक्त हैं किसी भी कंपनी से सौदा करने, अपना माल खुले बाज़ार में बेचने और अपनी खेती का आधुनिकीकरण करने के लिऐ। इन कानूनों के रहने या न रहने से उनको क्या फायदा या नुकसान है? को यह बात आंदोलनकारी किसानों से समझना होगा और कोई रास्ता अति शीघ्र निकालना होगा ताकि वे वापिस लौट रबी के फसलों की बुआई में लगें। वही उनकी सही जगह है ना कि सर्द रातों में खुले आसमान के नीचे सड़कों पर। सरकार और किसान एक बीच का रास्ता निकालें जो सभी के लिए बेहतर हो।