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सुझाव
-अनिल शर्मा*
राज्य सरकारों ने यदि गंभीरता पूर्वक अपने अपने राज्यों में गांव से लेकर नगर और महानगर तक मजदूरों का यदि पलायन रजिस्टर बनाया होता तो लॉक डाउन के दौरान मजदूरों की घर वापिसी की समस्या इतनी विकराल नहीं हुई होती। देश की प्रत्येक राज्य सरकार के पास यह रिकॉर्ड होता कि उसके कितने मजदूर किस प्रदेश में किस महानगर या नगर में मजदूरी कर रहे हैं। वे फैक्टरी में काम कर रहे हैं या किसी बिल्डर के यहाँ काम कर रहे हैं या अन्य व्यवसायी जैसे मिठाई बनाने वाले, होटल या रेस्टोरेंट में, कपड़े बनाने वाली किसी कंपनी में या सिलाई करने वाली किसी फर्म में या दुकान में काम कर रहे हैं। या फिर पानी पुड़ी बेच रहे हैं या फिर हमाली का काम कर रहे हैं या फिर डिलीवरी बॉय का काम कर रहे हैं। अगर ऐसे रजिस्टर बने होते तो मजदूरों को उनके परिजनों के साथ लॉक डाउन में सैकड़ों किलोमीटर तपती धूप में पैदल नहीं चलना पड़ता। न ही मजदूरों को और न ही हित चिंतकों को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करनी पड़ती। न ही सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ को बीती 30 अप्रैल 2020 को मजदूरों के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला देकर केंद्र सरकार को स्पेशल ट्रेन चलवाने के लिए तथा राज्य सरकारों को बसें की व्यवस्था करने के लिए आदेश नहीं देना पड़ता। ये न होने के कारण केंद्र और राज्य सरकारों को मजदूरों को घर पहुचाने के लिए हड़ बड़ाहट में तमाम कौतुक न करने पड़े होते। राज्य सरकारें अपने अपने प्रान्त के मजदूरों को आसानी से सूचना देकर उन्हें सरकारी संसाधनों से उनके घरों तके पहुचा देतीं। मालूम हो कि देश की 60 प्रतिशत के आसपास आबादी मजदूर, भूमि हीन मजदूर, लघु सीमांत कृषक है। हर राज्य में प्रति वर्ष करोड़ों मजदूर रोजी रोटी के लिए महानगरों या दूसरे प्रदेश के नगरों और महानगरों में जाते हैं। उनका कोई नाम पता रजिस्टर सरकार के पास नहीं होता है।
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कैसे बनेगा मजदूर पलायन रजिस्टर ?
देश के प्रत्येक ग्राम में ग्राम प्रधान को एक ऐसा रजिस्टर बनाना होगा कि उसके गांव से कितने लोग मजदूरी के लिए किस प्रदेश के किस महानगर या शहर में गये हैं। वहां वे कहाँ और क्या काम कर रहे हैं। इस रजिस्टर में उस मजदूर का नाम, उसकी उम्र, उसका लिंग पुरुष या स्त्री और यदि वो बच्चों को अपने साथ ले जा रहा है तो उसका भी विवरण होगा। प्रत्येक मजदूर और उसके परिवार के प्रत्येक सदस्य का आधार कार्ड नम्बर तथा उस मजदूर से संपर्क हेतु मोबाइल नम्बर तथा जहां वो काम कर रहा है उस नियोक्ता का फ़ोन नम्बर रजिस्टर में दर्ज किया जाएगा। यदि मजदूर के पास पलायन करते समय नियोक्ता का फ़ोन नम्बर या कंपनी का नाम नहीं है तो वह वहां जाकर फोन से एक सप्ताह के भीतर मजदूर पलायन रजिस्टर में यह सूचना दर्ज करवाएगा। इसके साथ ही इस रजिस्टर में प्रत्येक पलायन करने वाले मजदूर को अपने परिवार की कुल वार्षिक आय के बारे में भी बताना होगा।
ताकि सरकार को यह पता चल सके कि वो किस कारण से पलायन के लिए मजबूर है। इस तरह का मजदूर पलायन रजिस्टर प्रत्येक गांव के अलावा प्रत्येक नगर पंचायतों, नगर पालिकाओं तथा महानगर पालिका क्षेत्रों में क्रमशः वार्ड का सभासद, नगर पालिका के वार्ड का सभासद तथा महानगरों का पार्षद यह रजिस्टर बनाएगा। इसके बाद जिला प्रशासन जिला स्तर पर मजदूर पलायन की एक बुकलेट छापेगा। इसी तरह उस राज्य के सभी जिलों को मिलाकर प्रदेश स्तर पर मजदूरों के पलायन का डेटा तैयार किया जाएगा। अगर इस देश में प्रत्येक राज्यों के पास पहले से ही मजदूर पलायन का डेटा तैयार रहा होता तो कोरोना महामारी के दौरान प्रत्येक राज्य सरकार अपने डेटाबेस में अपने राज्य के प्रत्येक पलायन करने वाले मजदूर का नाम, कहाँ काम कर रहा है, क्या काम कर रहा है तथा उसका मोबाइल नंबर या फोन नम्बर क्या है। यह राज्य सरकार की टिप पर होता। और राज्य सरकारें कम्प्यूटर का एक बटन दबाते ही मजदूरों की पूरी जानकारी तुरंत प्राप्त कर लेतीं। तब राज्य सरकारें लॉक डाउन के दौरान सैकड़ों मील पैदल चलने वाले मजदूर और उनके परिजनों को किस विकट परेशानी से आसानी से बचा लेतीं। इतना ही नहीं जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीती 22 मार्च 2020 को सैंपल लॉक डाउन की देश व्यापी घोषणा की थी। यदि केंद्र और राज्य सरकारों के पास पलायन करने वाले मजदूरों का डेटाबेस रहा होता तो केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर ऐसी रणनीति बनाती की 22 मार्च की रात से लेकर 24 मार्च की रात तक बहुत आराम से करोड़ों मजदूरों को रेल और बसों से उनके घर पहुंचाया जा चुका होता।
*लेखक उरांव स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं। यहाँ प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
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