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-ज्ञानेन्द्र रावत*
बीते दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अप्रैल माह से अब तक छोटे-बड़े तीव्रता वाले लगभग 18 भूकंप आने से दिल्ली के लोगों की इस दैवीय आपदा से बचाव की खातिर जागरूकता अभियान की शुरूआत की। दिल्ली के मुखिया होने के नाते उनका चिंतित होना स्वाभाविक भी है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग जरा सी धरती हिलने से सहम जाते हैं। फिर भूकंप के नाम से ही उन्हें तबाही का डर सताने लगता है।
देश की राजधानी दिल्ली में बार-बार भूकंप का आना खतरनाक संकेत है। भूगर्भ विज्ञानियों की सर्वसम्मत राय है कि भारत में भूकंप के खतरे कम नहीं हैं। दावे कुछ भी किये जायें असलियत यह है कि भूकंप के खतरे से निपटने की तैयारी में हम बहुत पीछे हैं। जहां तक दिल्ली का सवाल है, दिल्ली और इसके आसपास का क्षेत्र भूकंप संभावित जोन 4 में आता है। इसलिए हमें सतर्क रहना होगा।
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दरअसल कोरोना नामक महामारी के चलते वैसे ही देश संक्रमणकाल से गुजर रहा है और यदि भूकंप की तीव्रता रिएक्टर स्केल पर पांच से अधिक हो तो उससे उपजी त्रासदी का सामना करना और मुश्किल हो जायेगा। क्योंकि भूकंप एक ऐसा नाम है जिसके नाम से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, उसकी विनाश लीला की कल्पना से दिल दहलने लगता है।
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गौरतलब है कि आज से आठ-नौ बरस पहले संयुक्त प्रजातान्त्रिक गठबंधन सरकार के तत्कालीन केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी ने कहा था कि इस आपदा का कभी भी सामना करना पड़ सकता है और अभी स्थानीय प्रशासन-सरकार उसका पूरी तरह मुकाबला करने में अक्षम है, ने देशवासियों की नींद हराम कर दी थी। तब से देशवासी हरपल यही सोचते रहते हैं कि यदि ऐसा हुआ तो उन्हें कौन बचायेगा? जाहिर सी बात है कि बीते सालों में मौजूदा सरकार भी इस बारे में ऐसा कुछ खास कर पाने में नाकाम रही है।
यह कटु सत्य है कि मानव आज भी भूकंप की भविश्यवाणी कर पाने में नाकाम है। अर्थात भूकंप को हम रोक नहीं सकते लेकिन जापान की तरह उससे बचने के प्रयास तो कर ही सकते हैं। जरूरी है हम उससे जीने का तरीका सीखें। हमारे देश में सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि लोगों को भूकंप के बारे में बहुत कम जानकारी है। फिर हम भूकंप को दृष्टिगत रखते हुए विकास भी नहीं कर रहे हैं। बल्कि अंधाधुंध विकास की दौड़ में बेतहाशा भागे चले जा रहे हैं।
दरअसल हमारे यहां सबसे अधिक संवेदनशील जोन में देश का हिमालयी क्षेत्र आता है। हिन्दूकुश का इलाका, हिमालय की उंचाई वाला और जोशीमठ से उपर वाला हिस्सा, उत्तरपूर्व में शिलांग तक धारचूला से जाने वाला, कश्मीर का और कच्छ व रण का इलाका भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील जोन-5 में आते हैं। इसके अलावा देश की राजधानी दिल्ली, जम्मू और महाराष्ट्र तक का देश का काफी बड़ा हिस्सा भूकंपीय जोन-4 में आता है जहां हमेशा भूकंप का काफी खतरा बना रहता है।
देखा जाये तो भुज, लातूर और उत्तरकाशी के भूकंप के बाद यह आशा बंधी थी कि सरकार इस बारे में अतिशीघ्र कार्यवाही करेगी। लेकिन हुआ क्या?
हमारे यहां दो प्रतिशत ही भूंकप रोधी तकनीक और नियम-कायदे से बनायी गई इमारतें हैं। अधिकतर बहुमंजिली आवासीय इमारतें आज भूकंप को झेलने में अक्षम हैं । फिर पुरानी दिल्ली के संकरे इलाके जहां की गलियों की चौड़ाई कुलमिलाकर तीन-चार फीट या अधिक से अधिक पांच फीट है, और वहां सौ-सवा साल पुराने तीन-चार मंजिले मकान-हवेलियां हैं, वहां फायर ब्रिगेड या राहत पहुंचाना टेड़ी खीर है। यहां यह जान लेना जरूरी है कि भूकंप नहीं मारता, मकान मारते हैं। इसलिए भूकंप से बचने की खातिर ऐसे मकानों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
हमारे यहां जहां अशिक्षा, गरीबी, भुखमरी, बढ़ती आबादी, आधुनिक निर्माण सम्बंधी जानकारी, जागरूकता व जरूरी कार्यकुशलता का अभाव है, इससे जनजीवन की हानि का जोखिम और बढ़ गया है। खतरों के बारे में जानना व उसके लिए तैयार रहना हमारी सोच का हिस्सा ही नहीं है। ऐसी स्थिति में भूकंप से हुए विध्वंस की भरपाई की कल्पना ही बेमानी है।
हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि देश ही नहीं दुनियां में संयुक्त राष्ट्र के नियमों के मुताबिक बचाव नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है इसलिए हमें खुद कुछ करना होगा। सबसे पहले हमें भूकंप से पहले अपने मकानों की जांच कर लेनी चाहिए और अगर कुछ कमी है तो उसे ठीक करा लेना चाहिए। कोशिश करें कि अपने घर या दफ्तर के फर्नीचर को दीवार के सहारे मजबूती के साथ रखें ताकि वह भूकंप की स्थिति में उड़कर किसी के उपर ना गिरे। अपने जरूरी कागजातों की फोटो प्रतिया, खून की जानकारी आदिं ई मेल या फिर कम्प्यूटर में सुरक्षित कर लें। भूकंप का सामना करने हेतु सभी को ड्राप कवर होल्ड तकनीक की जानकारी हो। आपातकालीन सेवा हेतु 1077 को हमेशा याद रखें।आपातकालीन किट तैयार रखें। टार्च, पाॅवर बैंक, चार्जिंग का सामान, पानी की बोतल, फर्स्ट एड का सामान, दवाइयां आदि अपने पास एक सुरक्षित जगह रखें। भूकंप आने पर बहुमंजिली इमारतों-खिड़कियों से दूरी बनायें। उंची इमारतों से उतरते समय सीड़ियों का इस्तेमाल करें। कहीं फंसे हैं तो आवाज लगाने की जगह किसी चीज से आवाज करने का प्रयास करें। वाहन का बहुत जरूरी हो तभी इस्तमाल करें। अपनी जगह छोड़ने से पहले पूरी सावधानी बरतें।
इस बारे में केजरीवाल की चिंता जायज है और उनका प्रयास प्रशंसनीय। कोरोना संक्रमण काल ने उनको बहुत कुछ सिखाया है। यह कवायद भी उसी का परिणाम है। साथ ही यह भी कटु सत्य है कि सरकार के बूते कुछ नहीं होने वाला। हमीं कुछ करेंगे तभी भूकंप के साये से कुछ हद तक हम खुद को बचा सकेंगे। स्थिति की भयावहता को तो सरकार खुद स्वीकार कर ही चुकी है। निष्कर्ष यह कि भूकंप से बचा जा सकता है लेकिन इसके लिए समाज, सरकार, वैज्ञानिक और आम जनता सबको प्रयास करने होंगे।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं चर्चित पर्यावरणविद् हैं।
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