विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ.राजेंद्र सिंह*
मध्यप्रदेश में सामुदायिक जलाधिकार कानून बने
तीन दिनों का विरासत बचाओ सम्मेलन आज ग्वालियर में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन का 10 दिसंबर 2021 को शुभारंभ करते हुए भारत सरकार के नागरिक विमान उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि हमें अपनी विरासत को बचा के रखना होगा। उन्होंने कहा कि जल, जीवन को बचाने का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। बिना जल के मानव जीवन की कल्पना करना अधूरा है।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मध्य प्रदेश सरकार के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा कि जल संसाधन विभाग की तरफ से समाज के सभी वर्गों से उनका अनुरोध है कि, वह उनके विभाग की योजनाओं को जमीन में उतारने में सहयोग प्रदान करें, क्योंकि बिना सामाजिक सहयोग के सरकारी योजनाएं जमीन पर नहीं उतर सकती हैं।
‘‘विरासत बचाओ राष्ट्रीय जल सम्मेलन’’ के सत्रों के मध्य हिमालयन और पेनिनसुलर नदियों के संरक्षण पर विस्तार से चर्चा की गई, साथ ही ग्वालियर चंबल जैसे इलाके में सूखती नदियों, बढ़ते सूखे और जल संकट के ऊपर भी गंभीर विचार विमर्श किया गया। सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अवगत कराया गया कि केरल धीरे-धीरे जल संकट की तरफ बढ़ रहा है, इलाके की अधिकांश छोटी नदियां सूख गई हैं बड़ी नदियां भी अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। कार्यक्रम में तेलंगाना जल बोर्ड के अध्यक्ष वीरमल्ला प्रकाश राव ने बताया कि, उन्होंने कैसे अपने इलाके को पानीदार बनाने के लिए पिछले वर्षों में सरकार और समाज के साथ मिलकर काम किया है। पुणे से आए विनोद बोधनकर ने नदियों के संरक्षण और संवर्धन में नदी घाटी संगठन के उपयोगिता पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यदि नदियों को बचाना है तो नदी के किनारे नदी घाटी संगठन बनाने होंगे। महाराष्ट्र के विदर्भ के अंकित लोहिया ने विदर्भ क्षेत्र में जल संकट मुक्त बनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को रेखांकित किया।
पानी के अभाव में आज दुनिया बेपानी होकर उजड रहा है, लोग विस्थापित हो रहे हैं। आज नदियों के सामने संकट है। जल संरक्षण के लिए आज सरकारों की, जो भी योजनाएं चलाई जा रही हैं, उनमें स्थायित्व का अभाव है। योजना तो बन जाएगी लेकिन निरंतरता कैसे रहेगी, यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
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मैंने सरकार से आव्हान किया कि हर घर नल जल योजना जितनी महत्वपूर्ण है, उससे अधिक उसके स्थायित्व पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जिसके लिए भारत को जलाधिकार की जरूरत है। भारत में पानी की उपलब्धता पर्याप्त है, लेकिन प्रबंधन के अभाव में जल संकट निरंतर बढ़ता जा रहा है। सरकारों की जिम्मेदारी और हकदारी समाज से ज्यादा है। हम नदियों को मां मानते हैं, लेकिन आज नदियां मैला ढोने वाली नाला में परिवर्तित हो गई हैं। मां के अपमान के लिए हम सब समान रुप से दोषी हैं।
इस सम्मेलन में देश भर 24 राज्यों के 250 से ज्यादा लोग उपस्थित थे। आई. आई. टी. टी. एम. सभागार में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय जल सम्मेलन के समापन अवसर पर जल व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ग्वालियर जल जन घोषणापत्र भी 2021 जारी किया और सरकार से मांग की कि नदियों की अविरलता सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए जायें।
सम्मेलन के तीन दिवसों के निष्कर्षों पर चर्चा करते हुए मैंने कहा कि, केवल पैसे से जल संकट का समाधान नहीं हो सकता, इसके लिए सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन का तंत्र को खड़ा करने की आवश्यकता है। देश भर के कृषि विश्वविद्यालयों एवं शोध केन्द्रों में न्यूनतम जल उपयोग से अधिक उत्पादन करने वाले फसल चक्र को अपना कर, इस पद्धतियों को बढाने के लिए सरकार को विशेष पहल करनी चाहिए। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए प्राकृतिक अनुकूलन व्यवहार करने आवश्यक है।
सरकार छोटी नदियां को पुर्नजीवित करने के लिए नदी के उद्गम से पूरी घाटी में के सिद्धान्तों के आधार पर कार्य करे। नई शिक्षा नीति में जल साक्षरता को बढावा दिया जाना आवश्यक है। जल जीवन मिशन के स्थायित्व के लिए तात्कालिक रुप से सरकार को भूजल भरण हेतु योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है। पहले मध्य प्रदेश में, फिर सभी राज्यों में सामुदायिक जल अधिकार कानून बने, शिक्षा विभाग में जल साक्षरता हेतु जल शिक्षण पाठयक्रम आरम्भ होना चाहिए। मध्य प्रदेश के सभी कृषि विश्वविद्यालयों में जल शिक्षण का विधिवत पाठयक्रम आरम्भ किया जाये। मध्य प्रदेश की खेती और जल का संरक्षण और किसान के कल्याणकारी कार्यो को प्राथमिकता देकर भू-सांस्कृतिक खेती और मौसमी कृषि परिस्थितिकी विविधता का सम्मान करके जल प्रबंधन करने की जरूरत है। मध्य प्रदेश के सभी भू-सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय क्षेत्रों में जल संरक्षण एवं प्रबंधन को बढावा देने के लिए सामुदायिक प्रयास सुनिश्चित किया जाये, ग्वालियर चंबल संभाग में नदी यात्राओं का आयोजन किया जाये ताकि नदी से समाज को जोडने के लिए प्रयास हो सके।
इसके उपरांत अटल भूजल योजना के कार्यकर्ताओं से बैठक की और उन्हें ‘आओ नदी को जाने’ प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से युवा पीढी को विशेष तौर से जोडने के लिए प्रयास किए जायें तथा नदी के किनारे के समाज को जोडकर नदी घाटी संगठनों का निर्माण किया जाये, इन बातों पर जोर देने के लिए मैंने कहा।
इसके पहले दिनांक 10 दिसंबर 2021 को हमने सर्वप्रथम सुबह 6 बजे स्वर्ण रेखा नदी के उद्गम की तरफ आईआईटीटीएम के डायरेक्टर प्रो अशोक कुमार व अन्य साथियों के साथ यात्रा करते हुए, स्वर्ण रेखा नदी को देखा। इस नदी को पार करते हुए ही झांसी की रानी लक्ष्मी बाई वीरगति को प्राप्त हुई थी।
इसके उपरांत हम ग्वालियर की प्राकृतिक विरासत गोपालचल पहुंचे। यहां भारतीय विरासत के पहाड़ी में नमूने बने हुए है। इस यात्रा में जाना कि अभी भी भारतीय समाज में विरासत को बचाने का जज़्बा अभी भी बाकी है। बहुत पहले यह क्षेत्र पूरा वीरान हो गया था। इसको पिछले 20 साल में सरकार ने अतिक्रमण मुक्त करा कर यहां के समाज ने हरा भरा बनाया है। ग्वालियर तो पहले से प्राकृतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक विरासत का बडा केंद्र रहा है। यहां के राजाओं ने इनके संरक्षण का बहुत प्रयास किया था।
यदि लोग विरासत नही बचाएंगे, तो प्रकृति अपना क्रोध दिखाकर, अपनी विरासत को बचाने पर मजबूर करेगी। जिस प्रकार आज यह कोविड वायरस कर रहा है। प्रकृति की इस मार से बचने के लिए भारतीयों को अपनी विरासत जीवन के लिए प्रकृति को समृद्ध रखना होगा। प्रकृति में विनाश और बिगाड़ होगा तो मानवीय जीवन सुरक्षित नही रहेगा। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी विरासत को संरक्षित और समृद्ध रखें।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं।