विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष
– प्रशांत सिन्हा
संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित पर्यावरण दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर जागरूकता लाने के लिए मनाया जाता है। पांच जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था।
धरती पर जीवन के लालन पालन के लिए पर्यावरण प्रकृति का उपहार है। वह प्रत्येक तत्व जिसका उपयोग हम जीवित रहने के लिए करते हैं वह सभी पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं जैसे हवा, पानी, प्रकाश, भूमि, पेड़, जंगल और अन्य प्राकृतिक तत्व। आज हमारे चारों ओर के वातावरण में जो क्रियाकलाप हो रहे हैं, उनसे वातावरण का विनाश होता जा रहा है।
वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ऊर्जा प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण इत्यादि लाखों असमय मौतों के लिए जिम्मेवार हैं। वाहनों से निकलने वाले धुएं से वातावरण खराब हो रहा है। नदियों और तालाबों का जल प्रमोद के बजाय जीवन लीलने वाला बन गया है। यह बात सर्वविदीत है कि प्राकृतिक साधन सीमित है। एक न एक दिन ये सभी समाप्त हो जाएंगे अतः आवश्यक हो गया है कि बाल्यकाल से ही पर्यावरण संतुलन का ज्ञान देना आवश्यक हो गया है। जिससे उसके दिलों दिमाग मे यह बात धर कर ले कि संतुलित पर्यावरण ही उसके सुखी और सुरक्षित जीवन का एक मात्र विकल्प है। आस पास के वृक्षों, फूलों, पक्षियों, पहाड़ों, नदियों, समुद्र तटों और उसके जीव जंतुओं तथा वन्य पशुओं के महत्व को समझाना आवश्यक है तभी लोग उनका सरंक्षण कर सकेंगे।
प्राकृतिक संतुलन लिए जागरूक पैदा करना, व्यक्तियों में पर्यावरण संतुलन बनाए रखने की रुचि जगाना, वातावरण बिगाड़ने वाले कारणों की पहचान कराना आदि आज बहुत आवश्यक हो गया है।
पर्यावरण के प्रति जनचेतना का उद्देश्य वायु प्रदूषण की समस्याओं से लोगों का अवगत कराना है जिससे वे वायु प्रदूषण को रोकने में अपना सक्रिय योगदान कर सके और आने वाले खतरों से सचेत रहें। जल प्रदूषण का निराकरण करने के लिए छात्रों के साथ चर्चा करना चाहिए। इसी प्रकार ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए जनता को समुचित रूप से शिक्षित करना होगा ताकि ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम हो सके। भू प्रदूषण की समस्या भी गंभीर समस्याओं में से एक है जिसका निराकरण भी होना आवश्यक है। इसके लिए हमें चाहिए कि जनजागृति पैदा की जाए ताकि लोग इधर उधर जगह जगह पर थूके नहीं और गन्दगी नही फैलाएं। अपने घरों के पास पेड़ पौधों के लिए जगह छोड़ें। घास के खुले मैदान नहीं छोड़ेंगे तो भू प्रदूषण भी फैलेगा।
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पर्यावरण सरंक्षण हेतु जनसाधारण को खासकर छात्रों को इसके लिए प्रेरित और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। लोगों को आभास कराना है कि वह उस व्यवस्था का अभिन्न अंग हैं जिसमे पर्यावरण शामिल है। पर्यावरण संबंधित समास्याओं के समाधान में जिम्मेदारी का भी अवबोधन कराना चाहिए।
प्राकृतिक सरंक्षण तभी संभव होगा जब पर्यावरण सम्बंधी जनचेतना होगी। यह बात नही भूलना चाहिए कि इस पर्यावरण ने सारी सृष्टि को सदियों से बचाए रखा है। यदि हम स्वयं को या सृष्टि को बचाए रखना चाहते हैं तो पर्यावरण को सरकार के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए। जलवायु बदल रही है, हमने थोडे न तापमान बढ़ाया है ये सब तो सरकारों का काम है। मेरे सिर्फ अकेले से क्या होगा। ऐसे सोच से बचना चाहिए। स्वार्थपूर्ण प्रवृति वालों के ये बोल अक्सर सुनने को मिलता है लेकिन ये नुकसानदेह है। एक एक व्यक्ति को पर्यावरण बचाने के लिए आगे आना चाहिए। हमें यह समझना ज़रूरी है कि सबकुछ सरकारें नहीं कर सकतीं। हमारी भी जिम्मेदारी है। जो काम सरकारों का है वह करती रहें लेकिन ये धरती हमारी है इसे बचाना हमारी जिम्मेदारी है।
पर्यावरण की समझ पैदा करना और वर्तमान समाज में उसकी भुमिका को समझना सभी के लिए आवश्यक है।