विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
दिनांक 19-12-2021 को हमारी विरासत स्वराज यात्रा वनम फाउंडेशन, पल्लादम तमिलनाडु पहुँची थी। वनम फाउंडेशन में तमिलनाडु की नदियों का बड़ा नदी सम्मेलन आयोजित हुआ था। इस सम्मेलन में तमिलनाडु की सभी नदियों पर काम करने लोग उपस्थित थे। यह सम्मेलन नोय्याल नदी के पास था। इसलिए इस सम्मेलन में सभी की सहमति से नोय्याल नदी संरक्षण समिति का गठन किया गया। यहाँ की वनिता मोहन लगभग 20 साल से नोय्याल नदी को पुनर्जीवित करने के काम में जुटीं हुई है। इन्हें सर्वसम्मति से समिति का अध्यक्षत चुना गया। इसके उपरांत समिति के संचालक मंडल परिषद का गठन किया गया जिसने ने नोय्याल नदी क्षेत्र की किसान समिति, पत्रकार समिति, वैज्ञानिक समिति, इंजीनिरिंग समिति का गठन किया। इसके बाद पल्लाड़ नदी का चुनाव हुआ, जिसमें कांजीअमुदन को नदी परिषद का संयोजन की जिम्मेदारी दी गई। इस सम्मेलन में तमिलनाडु की सभी नदियों के संयोजकों को चुना गया। यह सभी संयोजक अगले तीन महिना से छः महिने के बीच में नदी संसद का गठन करके, नदियों में रहे बिगाड़ को ठीक करने का काम करेंगे।
कोयंबटूर में हुई बैठक में मैनें किसानों, उद्योगपतियों, पत्रकारों से कहा था कि,नोय्यल नदी समिति का अध्यक्ष एक उद्योगपति महिला को चुना है, लेकिन यह किसानों के हित में ही काम करेगी। समिति में एक महिला का अध्यक्ष होना “नीर, नारी और नदी नारायण है” इस नारे को साकार करता है। तमिलनाडु वैसे भी मीनाक्षी माता का राज्य है, वो यहां की देवी है। इसलिए किसानों को समझना है कि, यह कोई उद्योगपति अध्यक्ष नहीं है बल्कि एक ऐसी नारी है, जो प्रकृति व धरती को सबको बराबर सम्मान करती हैं।
वर्तमान में तमिलनाडु की जल, जंगल, जमीन, नदियों की विरासतों पर सबसे अधिक संकट है। यहाँ की नदियां की भूमि में अतिक्रमण, प्रदूषण, शोषण की शिकार है। हमारी विरासत नदियों, जंगल आदि पर कब्जे बढ़ रहे है। हम सिर्फ नदियों से लेना ही जानते है। मगर अब दृष्टिकोण बदलना होगा, अब हमें नदियों को देना और लेना दोनों सीखना होगा। अगर हम लेते ही रहे तो नदियाँ मर जाऐंगी, तब समाज नहीं बचेगा। अब समाज को लेना और देना, दोनों तकनीक सीखनी होगी।
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20 दिसम्बर 2021 हमारी यात्रा तिरुपुर (तमिलनाडु) पहुँची। यहाँ नोय्यल नदी की समस्याओं के समाधान हेतु किसानों की बड़ी बैठक आयोजित हुई। तिरुपुर के उद्योग इस नदी के पानी को प्रदूषित करके खेती में बिगाड़ कर रहे है, इस विषय पर मैंने किसानों के साथ लंबी बातचीत करी और उन्हें यह समझाने की कोशिश की कि औद्योगिक प्रदूषित जल तब तक बिगाड़ करता रहेगा जब तक कि हम इस प्रदूषित जल का परिशोधन और पुनरुपयोग नहीं करेंगे। आज हमें प्रदूषित जल का परिशोधन और पुनरुपयोग करने की बहुत जरूरत है। इससे ही हमारी खेती में बिगाड़ रुकेगा। यह उद्योग परिशोधन का कार्य तब करेंगे, जब सभी किसान एक साथ संगठित होकर अहिंसात्मक सत्य का आग्रह करेंगे। इस संकट के समाधान के लिए युवाओं को आगे आना होगा। आज इस बात की जरूरत है कि, भारत के युवा अपनी सीमाओं और अपने खेतों, दोनों जगहों पर सजगता से अपना काम करें।
नदियाँ हमारी माँ हैं, जब इंसान बच्चा होता है, तब माँ बच्चे का मैला धोती है, मगर बच्चा जब बड़ा हो जाता है, तब माँ मैला धोने का काम नहीं करती, माँ केवल मैला धो सकती है, ढो नहीं सकती। आज कल यहाँ की नदियों को मैला ढोने का काम देते है, तब माँ और बच्चे दोनों बीमार हो जाते है। यदि हमें दोनों को स्वस्थ करना है तो, प्रकृति के शोषण करने वाली इंजीनियरिंग और तकनीक की जगह प्रकृति का पोषण करने वाली शिक्षा पढ़ाई करनी होगी। हम यदि अपने स्वास्थ्य को ठीक रखना चाहते हैं, तो नदियों को स्वस्थ्य रखना बहुत जरूरी है।
हमारी यात्रा आगे राजस्थान के लिए रवाना हो गयी। 21 दिसंबर 2021 को विरासत स्वराज यात्रा राजस्थान, करौली जिले के चौड़कियां कला, चौडियां का खाता और दौलतपुरा गांव में पहुंची। यह पूरा इलाका बेपानी होकर उजड़ा हुआ है। इस वीरान इलाके में कोविड के दौरान जो लोग शहरों से लौट कर अपने गांव आए थे, उन्हें हमारी संस्था तरुण भारत संघ ने पानी के लिए तालाब बनाने में मदद की और लोगों ने अपने पसीने की मेहनत से, जो जमीन जो वीरान पड़ी थी, उनको ठीक करने का काम किया। यहां पहले जो लोग गले में बंदूक डाले – फिरते रहते थे, वह अब दिनरात खेती के काम में लग गए हैं। यह खेती हमारे जीवन को पुनर्जीवित करने का एक अच्छा काम है और इससे हमारे जीवन में खुशहाली आई है। हमने देखा कि पहले इनको पीने का पानी नहीं मिलता था, ना ही इनकेजानवरों को!
यात्रा केला देवी नेशनल पार्क के आस पास के गांव में पहुंची। यात्रा ने यहां के लोगों को सुना और यहां तरुण भारत संघ के जल संरक्षण के कामों के प्रभाव को गांव के लोगों ने बहुत अच्छे से बताया। इस ग्राम के कुंजीलाल मीणा, सुरेश पाल सिंह और बहुत सारे लोगों ने कहा कि तरुण भारत संघ के काम से यह उजड़े हुए लोग अब दोबारा से बस गए है। सुरेश पाल ने कहा कि जब से तरुण भारत संघ ने हमारे इलाके में सैकड़ों छोटे – बड़े तालाब बनाए, इन तालाबों के कारण आज 1 मीटर पर ही पर्याप्त जल मिल जाता है। इस जल के कारण यह पूरा इलाका हरा भरा हो गया है। अब लोग उजड़ कर बाहर नहीं जाते हैं और जो लोग पहले बंदूक चलते थे, वो लोगों को पानी पिलाने व जानवरों की रक्षा करने वाले बन गए है। यह एक बड़ी क्रांति आई है। करोढी लाल मीणा ने बताया कि उनके गांव चोडियां खाता में दो साल पहले तरुण भारत संघ ने काम शुरू हुआ किया था। तब यह इलाका पूरा उजड़ा हुआ था, पीने और खेती के लिए बहुत कम पानी था। गांव में 100 घरों की बस्ती है। तरुण भारत संघ ने वहां सबसे पहले”धामोनी का तालाब” बनाया था। पहले इस तालाब क्षेत्र में धान या कोई भी खेती में उपज नही होती थी क्योंकि पानी की बहुत कमी थी। लेकिन आज इस तालाब से 32 बीघा में धान होती है और अभी 32 बीघा में गेहूं की फसल खड़ी हुई है। 80 बीघा में सरसों खड़ी हुई है। आज यहां लोगों के पास पर्याप्त पानी हो गया है।
यह जो इस इलाके का पुनर्जीवन हुआ है, यह यहां के जल संरक्षण के कामों से हुआ। लोगों ने कुल्हड़ बंदी की, पानी के प्रबंधन का काम किया, जंगलों, जंगली जानवरों को बचाया आदि जो भी लोगों ने अच्छे काम किए, उसी का परिणाम है कि, अब इस जगह पर जीवन लौट आया है और अब डकैती बंदूक छोड़कर लोग अपनी खेती करने लगे हैं। पीने के पानी से लोगों के जीवन में सुख समृद्धि आई है। यह सुख और समृद्धि हमारे जीवन में जब तक रहेगी जब तक हम पानी का काम करेंगे। प्यासे की पानी मिल जाए, खेती, जानवरों , पेड़ पौधों को पानी मिल जाए , तो इससे बड़ा शुभ काम और कोई नही हो सकता। आज जो जलवायु परिवर्तन का संकट पूरी दुनिया में आ रहा है, इसे इसी तरह के छोटे – छोटे जल संरक्षण के काम करके समाधान किया जा सकता है।
दिनांक 22 दिसंबर 2021 को विरासत स्वराज यात्रा केलादेवी से रवाना होकर, नहनिया की रावतपुरा,निभेरा दौलत पुर कल्याणपुर होकर गंगापुर सिटी पहुंची। इस यात्रा में बोस्निया और हर्जेगोविना के राजदूत मोहम्मद सेंजिक साथ रहे। यहां की महिलाओं ने बताया कि पानी के संकट के कारण सबसे ज्यादा परेशानी उन्हीं को ही होती थी, 10 किलोमीटर तक पीने के पानी लेने जाना पड़ता था। उनकी बच्चियों का सारा समय पानी भरने में ही लग जाता था, स्कूल नहीं जा पाती थीं। जब से तरुण भारत संघ ने संघ ने इस क्षैत्र में 1500 से अधिक तालाब,पोखर,एनिकट,चैकडेम आदि बनाएं है, उससे आज उन्हें हर मौसम में फसलें मिलती हैं, उनकी बच्चियां भी अब स्कूल जाने लगी हैं। उन लोगों को अब पास में ही पानी मिलने लगा है।
पिछले दो दिनों में बोस्निया और हर्जेगोविना और राजदूत मोहम्मद सेंजिक ने तरूण भारत संघ के कार्यों का अध्ययन किया । इन्होंने कहा सामाजिक न्याय, सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन, महिला और आर्थिक सशक्तिकरण के इस अद्वितीय काम ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया है, वे अपने जीवन में एक जमीनी जल क्रान्ति को देख पा रहे हैं । उन्होंने कहा ऐसे कार्य भारत को ही नहीं पूरी देश दुनिया को करने की आवश्यकता है और आगे कहा कि यह विरासत स्वराज यात्रा जल्दी यूरोप और मेरे देश बोस्निया पहुंचे और वे इसका स्वागत करेंगे क्योंकि आज जलवायु परिवर्तन के संकट का वास्तविक समाधान केवल जल से ही है।
24 दिसंम्बर 2021 को विरासत स्वराज यात्रा मातृसदन, हरिद्वार में गंगा चिंतन-मंथन शिविर में रूकी। शिविर के पहले सत्र में सम्मिलित सभी गंगा प्रमियों ने अपने-अपने विचार रखे। यहाँ उपस्थित रिटायर्ड फौजियों ने गंगा संकट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जहां सैनिक पूरे देश की रक्षा करता है, अपना जीवन बॉर्डर पर गुजारता है और जब वह यहां आता है तो इस समाज की स्थिति देखकर बड़ा दुख होता है कि किस तरीके से हमारी प्रकृति का सर्वनाश किया जा रहा है।
इसी क्रम में मैंने कहा कि हम सब जानते है कि गंगा नदी दुनिया की दूसरी नदियों से अलग विशिष्टताओं वाली नदी है। गंगा जल विशिष्ट है। यह सिद्ध करने वाली आधुनिक भारत में सैकड़ो शोध हो चुके हैं जो गंगा की विशिष्टता सिद्ध करते हैं। जैसे कानपुर से 20 किलोमीटर ऊपर बिठूर से लिये गंगाजल में कॉलिफोर्म नष्ट करने की विलक्षण शक्ति मौजूद है, जो कानपुर के जल आपूर्ति कुएं में आधी रह जाती है, और यहां के भूजल में यह शक्ति शून्य हो जाती है। यह गंगा जल में मौजूद सूक्ष्मकणों (बायोफ़ाज्म) के कारण हैं। हरिद्वार के गंगा जल में बीओडी को नष्ट करने की अत्याधिक क्षमता है। इसका क्षय करने वाले तत्वों का सामान्य जल से 16 गुना अधिक है। यह संभव है हिमालय की वनस्पति से आये अंशो के कारण। भागीरथी की जल में धातुओ के एक विशिष्ट मिश्रण से शक्ति का पता चला है। ऐसा मिश्रण संसार में अभी तक कहीं न पाया गया है। जो अब टिहरी बांध से ऊपर गंगा जल में विशेष तत्त्वों की नाशक क्षमता थी, वह सब गाद के साथ पीछे बैठ गए और बाँध के नीचे आने वाले जल में कोलीफॉर्म नाशक या सड़न नाशक क्षमता शून्य रह गयी है।
अभी 2017 में गंगा के डीएनए विश्लेषण से ऊपर की गंगा गाद में बीसों रोगों के रोगाणुओ को नष्ट करने की सक्षम शक्ति है। इसमें 18 रोगाणु की प्रजातियां जिनमें टीबी, हैजा,पेट की बहुत सी बीमारियां और टाइफाइड शामिल है। लेकिन आज मां गंगा जी को बांधो से बांध दिया गया। गंगा जी पर अतिक्रमण, शोषण, प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। हम सभी को इस खनन माफियों को रोकना ही होगा।
नदियों को शुद्ध-सदानीरा बनाने का काम भारत का समाज करता आया है और अब फिर करेगा। इसके लिए नदी संसद बनाने की प्रक्रिया शुरू होगी। नदी पुनर्जीवित करने के लिए केवल एक संसद नहीं बल्कि सब नदियों की अलग-अलग संसद बनाने की जरूरत है। यही संसद बनाने का काम हजारों साल पहले कुंभ के दौरान कुंभ के दौरान होता था। कुंभ में जहर और अमृत को अलग करने का जो अभ्यास है, यह व्यवस्था वैचारिक चिंतन मंथन करके समाज के लिए अच्छे और बुरे को अलग अलग करने वाले निर्णायक को पंच परमेश्वर मानकर थी।
आज यह व्यवस्था मर गई है, सरकार की संसद का ध्यान नदियों की तरफ नहीं है। आज का समाज लालच और लोभ में अपनी मां को भूल गया है और कुछ संत नदियों की प्रति लापरवाह हो गए है। आज जो अच्छे संत समाज में है, उन जो अच्छे लोगों संत समाज में है और जो राज में जो अच्छे लोग है, उनको आगे आना होगा। आगे आकर अपनी मां नदियों को शुद्ध सदानीरा बनाने के लिए काम करना होगा।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं।