-डा.रक्षपाल सिंह*
शिक्षा नीति-1986/92 के तहत देश में शिक्षा के उदारीकरण का रास्ता प्रशस्त हुआ और बेसिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा स्तर तक अधिकांश नये शिक्षण संस्थानों को मान्यता के नियमों को बलाए ताक रखकर मान्यतायें दे दी गईं । ऐसे संस्थानों में विभिन्न रोजगारपरक उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले काफी संस्थान भी शामिल थे जिनमें उक्त शिक्षा नीति के क्रियान्वयन से लेकर आज तक मानकों के अनुरूप क्वालीफायड शिक्षक-कर्मचारियों की नियुक्तियां एवं आवश्यक सुविधाओं का प्रबंध भी नहीं हो सका है । परिणामत: शिक्षण संस्थानों का संचालन सुचारू रूप से नहीं हो पाता।
हकीकत ये भी है कि रोजगारपरक पाठ्यक्रमों की प्रवेशों हेतु आयोजित परीक्षाओं में न्यूनतम अंक प्राप्ति की भी स्ववित्त पोषित शिक्षण संस्थानों के प्रवेशों में इस तरह अनदेखी होती है कि प्रवेश परीक्षाओं में मात्र शामिल भर होने वाले अभ्यर्थियों के प्रवेश होते रहते हैं। प्रवेशों की उक्त प्रक्रिया वर्ष 2014 में केन्द्र में भाजपा सरकार बनने के बाद आज तक जारी है।
उल्लेखनीय यह भी है कि रोजगारपरक पाठ्यक्रमों का 50% आन्तरिक एवं 50% वाह्य मूल्यांकन के नियम होने के कारण निजी शिक्षण संस्थानों में प्रवेशित लगभग सभी परीक्षार्थी येन केन प्रकारेण अपने पाठ्यक्रम की डिग्री हासिल करने का कारनामा तो कर लेते हैं, लेकिन अधिकांश डिग्रीधारी डिग्री की योग्यता के अभाव में रोजगार पाने में असमर्थ रहते हैं और परिणामत: डिग्रीधारी बेरोजगारों की संख्या में ही हर साल बढ़ोतरी होती जाती है।
ज्ञातव्य यह भी है कि केन्द्रीय/राजकीय/ सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु आयोजित प्रवेश परीक्षाओं में न्यूनतम अंक प्राप्ति की अनिवार्यता होने के कारण सम्बंधित पाठ्यक्रम के लिये योग्य अभ्यर्थियों का चयन हो जाने तथा इन शिक्षण संस्थानों में पठन पाठन सुचारू रूप से होने की वज़ह से योग्य डिग्रीधारी ही उक्त संस्थानों से निकलते हैं जिनमें से अधिकांश लोगों को रोजगार मिल ही जाता है।ज्ञात हो कि विभिन्न रोजगारपरक डिग्री पाठयक्रमों हेतु योग्य अभ्यर्थियो की आवश्यकता होती है और इसीलिये प्रवेश परीक्षाओं में न्यूनतम अंक प्राप्ति की शर्तें प्रवेश हेतु रखी जाती हैं जिनकी अधिकांश स्ववित्त पोषित शिक्षण संस्थान अवहेलना करते हैं। फलत: उन पाठ्यक्रमों का गुणवत्तापरक ज्ञान तो दूर रहा वह सामान्य ज्ञान भी प्राप्त करने में नाकाम रहते हैं तथा येन केन प्रकारेण प्राप्त की गई डिग्री से उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता। रोजगारपरक पाठ्यक्रमों की डिग्रियां हासिल करना महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण यह बात है कि डिग्रीधारियों को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम का सम्यक ज्ञान हो।
उक्त विषय के सम्बंध में विभिन्न रोजगारपरक डिग्री पाठयक्रमों में प्रवेश हेतु प्रवेश परीक्षाओं में न्यूनतम अंक प्राप्ति की अनिवार्यता होनी चाहिए। इस संदर्भ में सुझाव है कि प्रवेश परीक्षाओं में न्यूनतम 33%अंक पाने वालों को ही रोजगारपरक डिग्री पाठयक्रमों में प्रवेश दिया जाये जिससे कि बेरोजगारों की लिस्ट में प्रति वर्ष लाखों अयोग्य डिग्रीधारी बेरोजगारों की तादाद में और बढो़तरी न कर सकें।
*प्रख्यात शिक्षाविद, अलीगढ़ स्थित धर्म समाज कालेज के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं डा.बी आर अम्बेडकर विश्व विद्यालय शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष।
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