[the_ad_placement id=”adsense-in-feed”]
विशेष आलेख
बक्सर में विश्वामित्र ने जब दूसरी सृष्टि रची तब इन्द्र स्थापित हुए
जैसे हरिद्वार हिमालय के चार धामों का द्वार है, वैसे ही भागलपुर समुद्र का द्वार है जहां विन्ध्याचल पर्वत है जिससे सागर का मंथन हुआ था
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
[the_ad_placement id=”content-placement-after-3rd-paragraph”]
गंगे मांँ तू कानपुर में पहुँचकर मैला ढोने वाली मालगाड़ी बन जाती है। तुझे सरकार ने यहाँ फिर से माँ बनाने के लिए अब तक हजारों करोड़ खर्च किया है, लेकिन तू मैले का बोझ ज्यादा ही झेल रही है। लाखों-करोंडो तेरी सफाई पर खर्च हो रहे है, लेकिन कोविड-19 से कोई सीख लेने को तैयार नहीं है। कोविड-19 में लाॅकडाउन के दौरान तेरे स्वास्थ्य का सुधार स्वयं दिखने लगा था, कोई समझदार राजा होता तो अपने लाॅकडाउन के इस परिणाम से सीख लेकर तेरे नाम पर लाखों-करोडों खर्च रोककर तुझमे गंदे नाले मिलने पर रोक लगाता; लेकिन वह नही हुआ। अब और ज्यादा गंदे नाले उद्योगपति डाल रहे है।
ऐसा लगता है की भारत में तेरी पवित्रता का राज नही है। तुझ में प्रदूषण करने वाले उद्योगपतियों का राज्य है। तू कब कानपुर में निर्मल होगी? आशा बची नही है। अब ऐसा लगता है कि तुझे नमामि बनाकर निर्मलता के नाम पर लाखों-करोंडो खर्च होते रहेंगे। लेकिन प्रदूषण बढ़ता ही जायेगा। जब तक तेरी अविरलता पर विचार नहीं किया जायेगा, तब तक तेरा निर्मल बनना संभव नहीं है। आज तुझे राष्ट्रीय नदी घोषित करने वाली भारत सरकार में ‘ अजगर करे न चाकरी, पंक्षी करे न बैर ‘‘ जिन्हें कुछ नहीं करना होता उन्हें हड़बड़ी होती है।
हे गंगे अब आप चलते – चलते इलाहाबाद पहुँच गयी । आप अपनी पवित्रता की शक्ति से, अपनी गठरी उठाकर जहाँ चाहती है, वहाँ पहुँच जाती है। यहाँ तुझे हर्षित करने के लिए हर वर्ष माघ मेला, कुंभ और 144 वर्षो में महाकुंभ तेरे किनारे होता है। कहा जाता है कि, भारतीय लोक तुझे सम्मानित करने के लिए तेरे किनारे इक्ट्ठा होता है। लेकिन वो अपने पाप धोने के लालच के कारण तेरे किनारे आता है, यह तू भी जानती है। पर फिर भी तू उनका स्वागत ही करती है।
तूने भगीरथ से यह बात कही थी कि “मैं इस कारण भी पृथ्वी पर नहीं जाऊँगी कि लोग मुझमें अपने पाप धोयेंगे। फिर उस पाप को धोने मैं कहां जाऊंगी?”
भगीरथ- “माता! जिन्होंने लोक-परलोक, धन-सम्पत्ति और स्त्री-पुत्र की कामना से मुक्ति ले ली है , जो संसार से ऊपर होकर अपने आप में शांत हैं, जो ब्रह्मनिष्ठ और लोकों को पवित्र करने वाले परोपकार सज्जन हैं….. वे आपके द्वारा ग्रहण किये गए पाप को अपने अंग स्पर्श व श्रम निष्ठा से नष्ट कर देंगे।”
ऐसे ही स्वामी सानंद व स्वामी शिवानंद हैं। सम्भवतः इसीलिए गंगा रक्षा सिद्धांतो ने ऐसे परोपकारी सज्जनों को ही गंगा स्नान का हक दिया। गंगा नहाने का मतलब ही है-सम्पूर्णता। जीवन में सम्पूर्णता का भाव जगाये बगैर गंगा स्नान का कोई मतलब नहीं। न ही उन्हें गंगा स्नान का कोई अधिकर है, जो अपूर्ण है… लक्ष्य से भी और विचार से भी। इसीलिए किसी अच्छे काम के सम्पन्न होने पर हमारे समाज ने कहा – हम तो गंगा नहा लिये।
अब इलाहाबाद में तेरी रेत निकालकर तुझ में जहर घोलते है। यह जहर केवल तुझे बीमार करता ऐसा नही है, यह जहर डालने वालों को भी बीमार करता है। ज्यादातर यह जहर कानपुर से गंगा जी और दिल्ली से यमुना जी लेकर आती है । इलाहाबाद में दोनों का जहर एक-दूसरे से मिल जाता है। यहाँ से चलकर आप फतेहपुर होते हुए काशी में पहुँच जाती है। काशी में असी और वरुणा दोनों अपना जहर तेरी देह में डालते है।
आज भी कुछ लोग प्रतिदिन तेरे तटों की सफाई करते है जैसे कि केथी में गुरुदास गोस्वामी दो घंटे सफाई करते है। यह कार्य ये वर्षो से कर रहे है।
जब गंगा थोड़ी और आगे बढ़ी तो, गोमती बेहाल होकर तुझ में आकर मिल गई है। गाजीपुर-बक्सर के बीच करमनासा आकर मिल गई। करमनासा के बारे में कहते है कि इसका जल छूने से पुण्य का नाश हो जाता है। बक्सर में विश्वामित्र ने जब दूसरी सृष्टि रची तब इन्द्र स्थापित हुए। करमनासा के दूसरी पार बौद्ध धर्म था।
बिहार में गंगा तट पर बक्सर अकेला तीर्थ है। वैसे तो बनारस और मगध दोनों एक जैसे है। गंगा के दूसरी पार मगहर है। आमी नदी के किनारे ये सभी गंगा ही है। मगहर कबीर के साथ जुड़ा है और बिहार बौद्ध के साथ जुड़ा इसलिए गंगा स्नान का पुण्य दोनों जगहों पर कुछ न कुछ गंगा में जुड़ने वाली दूसरी नदियों के साथ गलत धारणाएं जोड़ ली गई है।
गंगा जी नरभसा पहुंचकर, पंडो के मोक्ष तथा सिचाई का जल व उद्योगों के प्रदूषण से मुक्ति पा जाती है। वाराणसी से भागलपुर तक गंगा का ढाल बहुत विनम्र है। एक कोस अर्थात् तीन किलोमीटर में केवल 10 इंच का ढाल है। जब राजा भगीरथ के पुरखों की आत्मा को मोक्ष हेतु यहाँ-जहाँ यह शब्द प्रचलित हुआ, वहाँ-वहाँ मोक्ष का बाजार पहुंचा, तो बोधगया से बौद्ध धर्म उखड़ गया।
हे गंगे, ‘तू ही तू है‘ अब तेरे किनारे बहुत कुछ बना, पला, आगे बढ़ा, साथ के साथ उस सबको तूने टिकाकर रखा है।आशा है कि आगे भी टिकाकर रखेगी। उन्हें चलाने वालों को तू उखाड़ कर नष्ट करती है। इसीलिए तुझमें ब्रह्मा-विष्णु-महेश का वास माना जाता है।
तू ही तू है, तू ही तू है, तू ही तू है।
यह भी पढ़ें: जलपुरुष की जल प्रार्थना
यह बात केवल पौराणिक ही नही, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक सत्य भी हुई है। तेरे किनारे आनंद की बूंद बनने वाले ब्रह्म के रास्ते पकड़ते है। तेरे आनंद की बूंद को सहेजने वाले विष्णु बनकर पालक बनते है। तेरे क्रोध का शिकार बनने वाले शंकर -संहारक बन जाते है।
हे गंगे, तेरे तट पर पत्थर बनी मलाहिन हाथ जोड़कर यह गीत गाती है- उंची रे अटरिया तट धुने मलहिनिया आरे माई हो गंगा जी, मोर केवटा के बचइह, आरे माई हो गंगा जी। जब वह पास आयी तो पता चला कि वह पागल हो गई। दंबग लोगों ने केवट के पेशे पर कब्जा कर लिया है और उसका पति बाहर चला गया; दूसरी शादी कर ली है।
भिखारी ठाकुर ने विदेषिया को अपना स्वर बनाया । उन्हें मालूम था कि दर्दर मुनि के वंषज अपना गांव छोड़कर जा रहे है। हे गंगे आप हरिद्वार से चलकर भागलपुर तक मैदानी इलाके में चली आती हो जैसे हरिद्वार हिमालय के चार धामों का द्वार है, वैसे ही भागलपुर समुद्र का द्वार है। यही पर वह विन्ध्याचल पर्वत है, जिससे सागर का मंथन हुआ था। जहाँ से देवता अमृत लेकर भागे थे।
काशी को उसी द्वार पर बसना था जहाँ कोसी और गंगा का संगम है। यही कहलगांव में यही अष्टावक्र ने जनक को हरा कर अपने पिता कोहल को कारागार से छुड़ाया था। अष्टचक्र गीता का जन्म हुआ। इस पार विश्वामित्र, उस पार वशिष्ठ आकर बैठ गए थे। अकेले बिहार में सूर्य के नौ केन्द्र बने है, जबकि पूरे भारत में 108 केन्द्र है। सूर्य पुत्र कर्ण अंग देश का राजा था। बगल में तक्शिला का केन्द्र था। यहाँ सूरज की संस्कृति, पूर्व की संस्कृति बन गई थी। सब कुछ यहीं था। फिर भी बगल में मापी हुई तो महज नौ गज जमीन कम पड़ गई थी। इसलिए ही बनारस में जाकर काशी बसी थी। सभी ने कहा छल हुआ, किससे कहे, ज्ञानी रावण के हाथों में शिव साक्षी बनकर खड़े थे। कोसी तो गुस्से से हद पार कर चुकी थी। ऊपर बारिश और नीचे कोसी । कोसी गंगा जी में ऐसे स्थान पर मिलती है, जहाँ गंगा जी का ढाल न के बराबर होता है। इसलिए कोसी हर दो-तीन साल में अपना भाग बदलती है, इसी प्रकार कोसी को गंगा में मिलने के बाद, गंगा जी में भी यही हाल हो जाता है। कोसी के बाद गंगा जी का तल भी तेजी से ऊपर उठता जाता है। गंगा बीच-बीच में डेल्टा बनाने लगती है।
साहबगंज पहुँचते ही गंगा के बेटे तुझमें क्रेशर से विन्ध्या पर्वत को तोडकर मिट्टी बहाने लगती है। क्रशरों से मिट्टी बारिश के दिनों में गंगा का तल ऊपर कर देती है। जिससे जल सही से बह नही पाता और परिणाम बाढ़ रूप में दिखता है। तेरी बाढ़ पहले कहर लाती है और बाद में बहार बन जाती है। क्योकि तेरी मिट्टी और पानी से गंगा के किनारे लोगों की रोजी-रोटी चलती है।
आगे चलकर फरक्का में गंगा संस्कृति को नष्ट करके नयी सभ्यता को जन्म दे दिया है। फरक्का में हिमालय की रेती भारत-नेपाल से आकर एक नया हिमालय बनाती है। फरक्का बाँध का डिजाइन अवैज्ञानिक है। इसलिए नीचे की तरफ गंगा जी तू भारत से मिट्टी का कटाव करके बांग्लादेश में डालती रहती है। यहाँ तेरे किनारे खड़े होकर देखा तो मेरे मुँह से अचानक एक आह! निकली- गंगा तू ही तू है, तेरा क्रोध भारत पर ही क्यों है? भारत की मिट्टी को काटकर बांग्लादेश को मिट्टी दे रही है। उसे ही बढ़ा रही है। हम तो ‘‘वसुदेव कुटुंबकम‘‘ मानने वाले है। फिर भी धरती माता का कटना व नई जगह पर जमना अच्छा नही लगता।
हे गंगे अब तू अपना क्रोध कम कर और भारत माता की भूमि का कटाव मत कर। मैं नही जानता हूँ यह कटाव तेरा प्राकृतिक स्वरुप है, बल्कि मानव निर्मित है। बिहार गंगा जी का सबसे प्यारा बेटा है। यहाँ आकर तू अपना सभी कुछ लूटा देती है! तू भर देती है, धरती का पेट लबालब भर जाती है। जलमग्न बन जाती है, बिहार की भूमि। तेरे जल की अति और कमी दोनों बिहार की आपदा ही है। बिहार में इसी लिए तेरे स्नान को मोक्ष मानने वाले सबसे कम ही है। हे गंगे तेरा जल अमृत है। तेरी विशिष्टताओं ने ही तुझे दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ बनाया है। इसलिए पूरा भारत विविध प्रकार के तेरे गीत और प्रार्थनायें करता है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं।
[the_ad_placement id=”sidebar-feed”]