विशेष आलेख भाग 2
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
हिमालय से निकली गंगा अब हल्दिया बंदरगाह पर समुद्र में रेत भरने लगी है। ज्वार की लहरे वापस समुद्र में जाकर मिलने लगी है। तेरी एक धारा थोड़ी दूर चल कर औरंगाबाद के पास पहुँची, तो तेरा नाम पद्मा हो गया। लेकिन माँ गंगे , तेरा सफर कभी खत्म नही होगा, समुद्र में भी तेरा सफर है, तू दुखी-दीनों की स्मृति हो, तुझमें हजारों नदियां, जल धारायें, गाड़-गदारे, नाली-नाले मिलकर तुम भारत की सब तरह की हजारों की नदियों का एक परिवार हो।
हे माँ गंगे, तुम्हारे साथ गौमुख से गंगासागर तक तीन बार 2002-2020 तक दो बार, गंगोत्री से कलकत्ता तक तेरे तटों पर गाड़ियों, मोटर वोटों के प्रदूषण से प्रदूषित करते होते, प्रत्यक्ष दर्शन करके मिश्रित मन से तुम्हें देखा। तुम मनेरी से टनल वाहिनी बनी, टेहरी में बाँध वाहिनी बनी, हरिद्वार, बिजनौर, नरौरा, कानपुर, फरक्का बहुत जगहों बांधो से बंधी तेरे पेट में खनन, शरीर पर सड़के व पुल नए बनने शुरू हुए। भारत के 90 बड़े शहरों, 120 से अधिक कस्बों और हजारों गांवों का मैला ढोने वाली तुम मालगाड़ी बनी।
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हिमालय के पंच प्रयागों का और वहीं के सभी नदियों के गंगत्व (बाॅयोफाज, ब्रह्मसत्व) करोड़ों लोगों को पिलाती थी, जिससे हमारे 17 तरह के रोगाणुओं को नष्ट करके हमें जिलाती थी। इस विरासत को पाकर मैं, अपनी जवानी में आनंदित था और अपने गांव की गलियों में घूमते हुए गौरव से गाता था कि ‘मैं उस देश का वासी हूँ, जिस देश में गंगा बहती है’ यह लाईन हमारे सीने को फूला देती थी। कभी-कभी ‘गंगा तेरा पानी अमृत’ गाकर, हे मां गंगे तुझमें गोता लगाकर, स्नान करने का बड़ा आनंद उठाते थे और मन आत्मा को पवित्र करके घर लौट आते थे। हे गंगे अब तेरा जल गन्ने की सिंचाई में जाता है और तू शहरों का गंदा जल लेकर बहती है। अब तुझमें स्नान करने का मन नहीं होता! मालूम नही क्यों? यह मेरा दुर्भाग्य है या तेरे या मेरे देश का । पर ऐसा लगता है कि हमारा विनाश काल है, उसी से हमारी बुद्धि विपरीत हो गयी है। तभी तो हम अपनी पवित्र माई को कमाई का धंधा बना रहे है। हमारे जीवन की जटिलताओं ने तुझे जकड़ा है।
मालूम नहीं मां गंगे लेकिन कुछ सवाल ‘क्यों‘ के रूप में पूछ रहा हूँ-
- गं अव्ययं गमयति इति गंगा…. अर्थात् जो स्वर्ग को ले जाये, वह गंगा है। ऐसा क्यों कहा गया?
- स्त्रोत सामस्मि जाह्नवी .श्री कृष्ण नें कहा-नदियों में मैं गंगा हूं। क्यों?
- आज भी मृत्यु के समय व्यक्ति के मुख में गंगाजल डालने का विधान मान्य बना हुआ है। क्यों?
- अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने की लोक प्रथा है।क्यों?
- कूटनीति और राजनीति के महान विशेषज्ञ चाणक्य ने कहा-‘जब संकट की घड़ी हो, तो गंगा की पूजा की जाये।क्यों?
- दुनिया में एक से एक सुन्दर, साफ और विशाल नदियां हैं। नील, वोल्गा, टेम्स और ओटावा…….लेकिन किसी के साथ भी दुनिया का इतना गहरा और आत्मीय रिश्ता नहीं है, जितना कि भारत की नदी गंगा के साथ। क्यों?
- गंगा का पानी महीनों और सालों तक रखने के बाद भी एकदम ताजा,कीटाणु रहित और दुर्गंध मुक्त रहता है। इसे अमृत कहा जाता है…. यानि ऐसा जल जो कभी मृत न हो। क्यों?
- क्यूं कहा गया कि गंगा के समान कोई तीर्थ नही? गंगा के किनारे 350 करोड़ छोटे-बडे़ तीर्थों की परिकल्पना है। क्यों?
- जिन्होंने महाभारत जीता, उन पाण्डु पुत्रों को भी जब जीवन में निर्वाण बोध हुआ,तो उन्होंने भी गंगा मूल के हिमालय क्षेत्र में ही अपना भविष्य देखा। क्यों?
- हिन्दू गंगा पर अपना दावा जताते हैं। गंगा को कुछ लोग सिर्फ हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र मानते हैं। बावजूद इसके बादशाह अकबर ने गंगाजल को अमृत कहा। सुल्तान मुहम्मद तुगलक और औरंगजेब ने गंगा जल को अतिविशिष्ट माना तथा खास मानकर ही अपने इस्तेमाल में लिया। क्यों?
- पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक लोक गीत में क्यों कहा गया अल्लाह मोरे अई हैं, मुहम्मद मोरे अई हैं। आगे गंगा थाम ली, जमुना हिलोरे लेयं। बीच मा खड़ी बीवी फातिमा, उम्मत बलैया लेय…दूल्हा बने रसूल।।
- 644 ईस्वी में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने शुभारम्भ हेतु पाटलिपुत्र में गंगा और उसके रानी घाट को ही क्यों चुना?
- सम्राट अशोक ने गंगा किनारे ही बोधिवृक्ष की शाखा अपनी पुत्री संघमित्रा को सौंपी और संघमित्रा को गंगा के प्रवाह मार्ग से ही ताम्रलिप्त नामक बंगाल की एक जगह से होते हुए श्रीलंका के लिए भेजा। क्यों?
- महात्मा बुद्ध ने भविष्यवाणी की थी कि गंगा का किनारा पाटलिपुत्र एक दिन आर्य भारत के व्यावरा और आर्थिक कार्य कलाप का प्रमुख केंद्र बनेगा। यही पाटलिपुत्र एक दिन बौद्ध और जैन धर्मो के विकास का भी केंद्र बना। क्यों?
- वाल्मीकि और तुलसीदास यमुना की गोदी में जन्मे फिर भी क्रमश: रामायण और रामचरित मानस की रचना गंगा की गोदी में ही बैठकर क्यों की? बिठूर में गंगा की सहायक तमसा और गंगा के मध्य स्थान पर वाल्मीकि आश्रम में रामायण लिखा गया और बनारस के अस्सी घाट पर रामचरितमानस।
- महर्षि व्यास ने गंगा किनारे हिमालय के शांत वनों में बैठकर ही पुराणों की रचना की। आदिगुरु शंकराचार्य ने गंगा किनारे ही ‘गंगाष्टक‘ रचा। रामानुज, वल्लभाचार्य , रामानंद, चैतन्य महाप्रभु…. सभी ने गंगा की महिमा के गीत गाये।क्यों?
- संत कबीर के लहरतारा गांव को भला कौन भूल सकता! कबीर जन्में भी गंगा के किनारे और कबीरा की तान भी यहीं से पूरी दुनिया में गूंजी । संत रैदास ने तो गंगा किनारे बैठकर ही कहा- ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा।’ क्यों?
- जगन्नाथ की ‘गंगालहरी‘ यहीं अमर हुई। 15वीं शताब्दी में दक्षिण भारत के विद्वान कुमार गुरुपाद ने शैव सिद्धांत की रचना इसी गंगा के केदार घाट पर बैठकर ही क्यों की?
- कर्नाटक संगीत के स्थापना पुरुष मुत्तुस्वामी दीक्षित ने ‘ राग झंझूती‘ की रचना के लिए इसी गंगा तट को क्यों चुना?
- इसी गंगा तट पर कभी मगध के महामंत्री कौटिल्य ने अर्थशास्त्र लिखा और चाणक्य की कूटनीति ने ख्याति पायी । सोचिए कि महाकवि कालिदास की कोई रचना गंगा और हिमालय के बिना पूरी क्यों नहीं होती?
- महान साहित्यकार प्रेमचन्द की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं उनके गंगा प्रवास के दौरान ही जन्मीं। क्यों?
- आर्य समाज के प्रणेता महर्षि दयानंद ने अपने चिंतन प्रवास का मुख्य स्थान नरोरा में गंगा के राजघाट को ही क्यों चुना ?
- गंगा का बनारस बहुत प्राचीन शहर है । छोटी-छोटी संकरी गलियों, टूटी-फूटी पुरानी इमारतों और अव्यवस्थित बसावट वाली नगरी होने के बावजूद चाहे कोई धर्म हो, कोई बड़ा आंदोलन या कोई बड़ा आध्यात्मिक पुरुष ….सभी का वाराणसी आना उनके जीवन में निर्णायक साबित हुआ। क्यों?
- सोचिए! कि उ. प्र. की राजधानी लखनऊ जरूर है , लेकिन उसकी आध्यात्मिक और शैक्षिक शक्ति का केन्द्र आज भी गंगा किनारे बसे नगर इलाहाबाद और वाराणसी क्यों?
- पटना साहिब आज भी गंगा और सिक्ख गुरुओं के रिश्तों का खास गवाह क्यों माना जाता है?
- भगवान बुद्ध और महावीर जैसे महान ज्ञानी युगपुरुषों को भी विद्या लाभ के लिए गंगा किनारे वाराणसी क्यों आना पड़ा?
- आचार्य वाग्यभट्ट ने गंगा के किनारे एक हकीम से आयुर्विज्ञान की शिक्षा पाई ओर 12 शाखाओं का विकास किया। प्रसिद्ध बांग्ला रचनाकार गुरु रविंद्र नाथ टैगोर ताउम्र बंगाल में रहे, लेकिन उनकी रचनायें भी बनारस की गलियों से अछूती नहीं रही। क्यों?
- गंगा किनारे के चार विश्वविद्यालय… तक्षशिला, नालंदा, काशी और इलाहाबाद को जितनी ख्याति अर्जित हुई, अपवाद छोड़ दें तो उसका दशांश भी किसी और भारतीय विश्वविद्यालय को आज तक हासिल क्यों नहीं हुआ? प्रयाग में आनंद भवन के सामने आज भी वाल्मिकि शिष्य भारद्वाज के आश्रम के अवशेष हैं, जो कभी एक बड़ा विश्वविद्यालय था।
- गंगा तो सिर्फ उत्तर भारत की जीवनदायिनी धारा है, फिर मद्रास के दक्षिण में महाबलीपुरम के मूर्तिकारों ने अपनी कल्पना को साकार करने के लिए गंगा को एक मूर्ति रूप् देने की इतनी ललक क्यों महसूस की?
- पंडित नेहरू ने कभी गंगा स्नान कर पुण्य कमाने की लालसा नहीं की। मृत शरीर की अस्थियां गंगा में प्रवाहित करने का उनके लिए कोई धार्मिक महत्व नहीं था। वह निराशावादी थे। बावजूद उसके अपनी वसीयत में अपनी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने की बात क्यों लिखी?
- पंडित नेहरू ने चिट्ठी चाहे एडवर्ड थाॅमसन को लिखी हो या नैनी जेल से बेटी इंदु को, वह गंगा के बारे में लिखना नहीं भूले। क्यों?
- आजादी के बाद भारत विभाजन का कष्ट समेटने महात्मा गांधी हुगली के नामकरण वाली गंगा के सागर संगम क्षेत्र पर स्थित नोआखाली में ही क्यों गये?
- गौ, गीता और गायत्री के अतिरिक्त जिस चौथे आधार को मानव मुक्ति का द्वार माना गया, वह एकमात्र गंगा ही है। क्यों ?
- सिर्फ गंगा के किनारे ही हर बरस माघ मेला जोड़ने की परम्परा बनी। क्यों?
- ख्यातिनाम शहनाई वादक स्व. उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने क्यों कहा था?-‘‘ गंगा और संगीत एक-दूसरे के पूरक है।‘‘
- यदि कभी हरिद्वार ही स्वर्ग का द्वार था और हिमालय क्षेत्र उत्तराखंड की ही स्वर्ग के रूप् में ख्याति थी, तो और भी कई नदियां इसी उत्तराखंड से उतर-उतरकर भारतखण्ड में प्रवाहित होती हैं। फिर गंगा को ही सुरसरि.. क्यों कहा गया?
- गंगा के साथ ही आकाश से उतारकर सगर पुत्रों को पुनर्जीवित करने के भगीरथ प्रयास का किस्सा क्यों जुडा? क्यों नहीं और हिम नदियों को स्वर्ग से उतारकर धरती पर लाने के किस्सों को ख्याति मिली? क्या शेष स्वर्ग धाराएं बिना प्रयास ही पृथ्वी पर उतर आयीं ?
- क्यों नहीं कोई और धारा सभी युगों में इतना पूज्य और महिमायुक्त हुई ? क्यों नहीं किसी और नदी का जल अक्षुण्ण है? क्यों नहीं कोई और भारतीय नदी दुनिया में भारत की राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान मानी गई?
- क्यों नहीं किसी और एक नदी के तट पर भारतीय धर्म, साहित्य, रचना, ज्ञान और पुरुषार्थ का ऐसा समग्र इतिहास मिलता?
- हे गंगे, तेरे पक्ष में बहुत जवाबों के बावजूद, अब तर्क देने की जरुरत नही है कि, गंगा एक राष्ट्रीय नदी प्रतीक के रूप में मान्य हो। हमारी मां गंगा के विषय में बहुत लोगों ने कहा है लेकिन मैं, यहाँ सर एडमंड हिलेरी जिन्होंने एवरेस्ट पर पहली बार चढ़ाई में विजय पायी थी, उनकी मोटर बोट लाख कोशिशों के बावजूद अलकनंदा की धारा में नंद प्रयाग से आगे नहीं बढ़ पाई, तो उन्होंने यही कहा कि ‘‘सचमुच गंगा सिर्फ नदी नहीं है, गंगा भारतीय संस्कृति की महाधारा है।‘‘ दुनिया में जितनी भी नदियां है, उनके किनारे सभ्यताएं जन्मी लेकिन गंगा के किनारे तो एक भली-पूरी संस्कृति ने जन्म लिया है।
हजारों वर्ष बाद गंगा के किनारे आज भी भारतीय संस्कृति का केन्द्र बने हुए है। गंगा भारतीय आस्था की एक राष्ट्रीय प्रतीक है। तभी तो आदिगुरु शंकराचार्य ने कहा कि उन्हें गंगा की मछली, गंगा का कछुआ, गंगा का एक गरीब इंसान, मतलब कुछ भी बन कर रहना मंजूर है। गंगा जी पर दुनिया भर के जल विशेषज्ञ डा. एफ. कोहिमान, विख्यात फ्रांसीसी, डा. डी. हरेल, प्रसिद्ध अमरीकी लेखक, मार्केट वेवन, बर्लिन के, और भारत के डा. के. एल.राव तथा दुनिया के मेडिकल साइंस के ख्यातिनाम वैज्ञानिकों ने
गंगाजल पर महत्वपूर्ण शोध किये और सभी ने पाया कि गंगा में दूसरी नदियों की अपेक्षा गंगत्व (जीवाणु भक्ष) की मात्रा बहुत अधिक है। दुनिया की सबसे साफ नदी टेम्स का रखा हुआ जल दूषित हो जाता है, जबकि गंगा जल पूरी तरह ताजा मिलता है, इसीलिए गंगा ही सिर्फ द्युलोक व भूलोक की साक्षी है। इसलिए राज, समाज और संत मिलकर मां गंगा के सम्मान व संरक्षण का काम करते थे।
गंगा, मूल में दुनिया का अद्वितीय वानस्पतिक संघटन है। इसकी ऊंचाई के ढलानों पर ऐसा अद्भुत पारिस्थितिक तंत्र विकसित हुआ है, जिसमें दुनिया के लगभग सभी पादप और भौगोलिक तत्वों का समावेश है। गंगा के प्रवाह में सिप्रीनिड समूह के अनूठे जीव-जन्तु भी है …हजार-दो हजार नहीं, बल्कि जीव-जन्तुओं की जाति-प्रजाति की दृष्टि से भी गंगा का प्रवाह निःसंदेह दुनिया में सबसे समृद्ध प्रवाहों में से एक है। गंगा को सूर्य की रोशनी भी समृद्ध करती है, तो उत्तराखंड की हवायें भी, वनस्पति भी और उत्तराखंड से लेकर भरतखंड तक भूमि का स्पर्श भी। इसलिए गंगा ब्रह्मपुत्री भी है, सूर्यपुत्री भी और हिमपुत्री भी।
अब आप समझ सकते हैं कि महात्मा गांधी गंगा किनारे, इलाहाबाद में पहुँचकर मुंह धोते वक्त एक लोटा पानी बिखर जाने से क्यों चिंतित हुए। जब पं. नेहरू ने उन्हें आश्वस्त करने की कोशिश की – ‘यहां तो गंगा बहती है। यहां एक लोटे पानी की चिंता क्यों?’ इस पर गांधी जी ने कहा कि गंगा अकेले नेहरू या गांधी की नहीं, गंगा के दोनों किनारे पर बसे 30 करोड़ों लोगों की है। क्यों? दरअसल यह सोच का प्रश्न है.. एक लोटे पानी का नहीं? इसी सोच ने गंगा को गंगा बनाए रखा। गंगा इसलिए सिर्फ एक नदी नहीं कुछ और बनी रही, क्योंकि गंगा के किनारे ऐसी सोच बसती थी।
ऐसा मां गंगा के मिट जाने की कल्पना मात्र से हृदय कांप उठता है।… लेकिन सच तो यही है, जो एक दादा की पोती ने कहा कि अंधाधुंध कचरा डालने के बाद गंगा कब तक अमृतमयी बनी रह सकती है? एक न एक दिन तो इसे मैला ढोने वाली मालगाड़ी में तब्दील होना ही है…हो रही है। गंगा अब न अमृतमयी है! न तारनहार!! अब तो गंगा बीमारी देने और प्राण लेने वाली बन गई है। जब किसी नदी के तट और जल को इतना गन्दा कर दिया जाए कि वहां जीवन-मृत्यु संस्कारों के कर्म काण्ड में रूकावट पैदा होने लगे; नदी का गन्दा जल देखकर स्नान की इच्छा मर जाये….नदी का जल आचमन करने योग्य भी न रहे, तो वह नदी एक तरह से मरी हुई ही होती है। क्या यही हमारी गंगा है? क्या हमारे ऋषि-मुनियों ने ऐसी ही गंगा को अपनी आस्था को केन्द्र बनाया था? क्या उन्होंने हमें ऐसी ही गंगा सौंपी थी? क्या ऐसे ही जल वाली नदी को हम ‘गंगा’ कहते है। जिस नदी का जल मर गया हो, क्या उसकी संतानों को उस नदी को अपनी माँ कहने का हक बचता है? नहीं!… बिल्कुल नही!! हम झूठ बोलते हैं! हमने गंगा को कभी हृदय से अपनी माँ माना ही नहीं। सोचिए क्यों?
प्रत्येक क्यों का जबाब है अब ‘‘बेटे-बेटियों ने बीमार माँ की चिंता छोड़ दी है। अब माँ गंगा केवल स्नान से पाप धोने वाली ही है। इसलिए अब हमारी मां अपने हाल पर कोमा में है। इसकी चिकित्सा नहीं बल्कि ‘‘माई से कमाई‘‘ का कानून सरकार बना रही है। कानून बनाने वाले बोल रहे है कि माई का ईलाज हो रहा है। वह अब ठीक हो रही है। सरकारी तंत्र भी गंगा को धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सभी कुछ बोलते हैं । ‘गंगा तू ही तू है‘! इसी सम्मान के चलते गंगा की चिकित्सा करने वाले विभाग का नाम भी नमामि गंगे रखा है। उनको समझना होगा कि नाम बदलने से बीमार ठीक नहीं होगा, गंगे की बीमारी रक्त प्रवाह की है और सरकार घाट बनवाकर, सुन्दर दिखाने के नाम पर जवड़ा बनाने में अच्छा पैसा खर्च कर रही है और कमाई में खतरा भी कम है। इसलिए घाट ज्यादा बन रहे है। आगे भी ऐसे ही कामों को स्वीकृति देने वाला कानून बनाने के लिए प्रारूप तैयार किया है।
रक्त प्रवाह तेरा ठीक करना बहुत आसान है- उसमें बस पैसे का खेल नहीं है। सरकार का पैसा किसी की जेब में नहीं जा सकेगा। बस यही बाधा है। नये बांध और खनन को रोकने से ही ठीक हो जायेगा। लेकिन इस काम से ठेकेदारों की आय नहीं होगी, कमानें की स्वार्थ सिद्धी नहीं होगी। इसलिए माई से कमाई का रास्ता बंद होता है। यही तेरी अविरलता में बाधा है। तुझे ही अब अपनी अविरलता के लिए अपना पुराना रूप दिखाना होगा। हमें विश्वास ‘तू ही तू है‘। अपना स्वास्थ्य स्वयं ठीक करोगी। आजादी से अविरल बनकर सभी को तारोगी। ‘तू ही तू है! अब तू ही तू है!! तू ही तू है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं।