[the_ad_placement id=”adsense-in-feed”]
रविवार पर विशेष
रमेश चंद शर्मा*
हमारे गांव के जलस्रोतों में जोहड़, जोहड़ी, कालकाजी मंदिर की जोहड़ी, चौगानन माता की झेलरी, चौलावा कुआं, कोठे वाला कुआं, गूनवाला कुआं, नीमडी वाला पटवारियों का कुआं, इच्छिलयों का कुआं, हवेली वालों का कुआं, हरिजनों की कुईयां, अहीरों का कुआं आदि मुख्य तौर पर शामिल रहे।
[the_ad_placement id=”content-placement-after-3rd-paragraph”]
जोहड़, जोहड़ी गांव से बाहर दूर। गांव के बाहर की ओर लगभग जुड़े हुए चौलावा कुआं, कोठे वाला कुआं, गूनवाला कुआं। चौलावा कुआं पर एकसाथ चार लाव चल सकती थी। कोठे वाले कुएं पर कोठा तथा खेली बनी हुई थी, जिसमें पानी भरा रहता था। जिससे इंसान या जानवरों को पानी उपलब्ध रहता। खेल या खेली में जानवरों के लिए पानी रहता। यह कोठी के तीन ओर बनी हुई थी। कोठी बहुत बड़ी थी, जिसमें पानी का अच्छा भंडार हो सकता। इसे पानी की बड़ी टंकी कह सकते हैं। जो ऊपर से खुली रहती। बिना छत, दरवाजा, खिड़की का यह कमरा पानी से भरकर रखा जाता। जिसका आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता।
पानी निकालने के लिए मोटी रस्सी, बरी, नेजु बाल्टी, डॉल काम में लेते। चाक, यह लकड़ी का बड़ा गोल पहिया जैसा, चकली, यह लोहे की छोटी गोल घीरी। इनके माध्यम से पानी निकालने काम आसान हो जाता।
सिंचाई के लिए चीडस, लाव काम में लाई जाती। चीडस आमतौर पर चमड़े का बना हुआ होता जो लकड़ी या लोहे के सहारे बंधा हुआ होता था। इसे खींचने के लिए बैलों, ऊंट आदि पशु का उपयोग किया जाता था। लाव के एक किनारे पर चीडस बंधी होती तो दूसरा किनारा कील्ली से पशु के जुए से जोड़ा जाता। पशु को चलाने के लिए व्यक्ति साथ रहता। अपने निश्चित स्थान पर पहुंच कर वह कील्ली खोलता और जो व्यक्ति कुएं पर चाक के पास होता वह चीडस को पकड़कर पानी उड़ेलता। यह कार्य बहुत कार्य कुशलता से ही संभव है। चीडस और कील्ली वाले का तालमेल उच्च दर्जे का आवश्यक है। जरा सी चूक बड़े खतरे का कारण बन सकती है। तालमेल बनाने के लिए बारे बोले जाते जिसकी बुलंद आवाज दूर दूर तक पहुंचती। इससे टीम के तालमेल के साथ-साथ दूर दूर तक सूचना पहुंच जाती की कौन सा कुआं चल रहा है। बारे के बोल भी मजेदार, संदेश, मजाक, व्यंग भरे भी होते।
ऐसे कुओं के आसपास की खेती बहु फसली होती। सिंचाई की फसलों को ऐसे खेतों में ही बोया जाता। इनके आसपास हरियाली भी खूब नजर आती। रास्तों पर जिस प्रकार प्याऊ लगाई जाती इसे दया धर्म का काम माना जाता। तिबारा, छतरी, कुआं, कुइयां भी दया धर्म, या किसी की स्मृति, यादगार में बनाए जाते। आते जाते पथिकों के लिए यह विश्राम स्थल होते।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
[the_ad_placement id=”sidebar-feed”]