अंतरराष्ट्रीय किसान दिवस, 17 अप्रैल, पर विशेष
-चौ0 राकेश टिकैत*
पूरे विश्व के किसानों को एक मंच पर लाने के लिए 1998 में भारतीय किसान यूनियन व कर्नाटक राज्य रैयत संघ द्वारा ला विया कम्पेसिना नामक एक मंच तैयार किया गया। जिसमें दुनिया के आज के समय में लगभग 181 संगठन व 81 देश शामिल हैं। इसी वैश्विक किसान आन्दोलन का नतीजा है कि पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा में किसानों के मानवाधिकार को लेकर 2018 में प्रस्ताव पारित करते हुए स्वीकृति प्रदान की है, लेकिन अभी बहुत सारे देशों की सरकारों ने इसे अपनाया नहीं है जिसके लिए संघर्ष जारी है।
अन्तर्राष्ट्रीय किसान आन्दोलन खाद्य सम्प्रभुता, विश्व व्यापार संगठन से खेती को बाहर किए जाने, परम्परागत खेती, अनुवांशिक बीज, महिला किसानों के अधिकार को लेकर कार्य कर रहा है।
17 अप्रैल को पूरी दुनिया में ला विया कम्पेसिना अन्तर्राष्ट्रीय किसान संघर्ष के रूप में मनाते हुए किसानों के साथ एकजुटता दिखाता है। इसका उद्देश्य किसानों की समाज के लिए ऐतिहासिक भूमिका जैसे-युद्ध, आपदा एवं महामारी के समय लोगों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए किसान संघर्षों को नमन, प्रणाम करना है।
वर्तमान हालात में कोविड-19 महामारी ने पूरे विश्व को पंगु बना दिया है। इस वायरस ने औद्योगिक कृषि पर हावी वर्तमान वैश्विक खाद्य प्रणाली की कमजोरी को उजागर कर दिया है।
इन विकट एवं विपरित परिस्थितियों में भी किसान दुनिया में करोड़ों लोगों तक भोजन पहुंचा रहा है। आज सरकारों को इस संकट से सीख लेनी चाहिए कि किसान अपनी स्थानीय ज्ञान व विविधता के दम पर करोडों-अरबों लोगों का पेट भर रहा है। इस संकट से सीख लेकर किसानों की रक्षा की गारंटी सरकार को देनी चाहिए। कोविड-19 जैसी खतरनाक महामारी के चलते आज किसान जान हथेली पर रखकर हर दिन दुनिया के पेट भरने के लिए अपने खेत में खड़ा होकर कार्य कर रहा है।
आज किसानों के सामने नकदी का भारी संकट है। किसानों के पास न तो फसलों के कटाई के लिए पैसा है और न ही अगली फसल की बुवाई हेतु पर्याप्त साधन है। किसानों को दी गई छूट का पालन भी सरकारों द्वारा नहीं कराया जा रहा है।
जिस किसान के दम पर भारत के प्रधानमंत्री व खाद्यमंत्री द्वारा सीना ठोक कर कहा जा रहा है कि देश में अनाज का भंडार अगले एक वर्ष के लिए पर्याप्त है, आज इस महामारी के समय उसी किसान को भुला दिया गया है। कोविड-19 के चलते भारत सरकार द्वारा जो आर्थिक पैकेज घोषित किया गया है किसानों को उससे बाहर कर दिया गया है।
देश में किसान सम्मान निधि की सच्चाई किसी से छिपी नहीं है। किसान सम्मान निधि का दायरा केवल 30 प्रतिशत किसानों तक ही सीमित है। तमाम प्रतिबन्धों के चलते किसानों को रबी की कटाई व खरीफ की बुवाई प्रभावित हो रही है। महामारी के डर से किसानों को खेत में श्रमिक नहीं मिल पा रहे हैं। दूध, फल, सब्जियाँ आदि के दाम लगातार गिर रहें हैं। मंडियाँ सुचारू रूप से न चलने व परिवहन के समस्या के कारण सब्जियाँ व फल खेतों में सड़ रहें हैं। मधुमक्खियों के स्थान परिवर्तन न होने के कारण मधुमक्खियां मर रही हैं। फूल की मांग न होने के कारण फूलों को खेतों में नष्ट करना पड रहा है। मुर्गी पालक किसानों को मांग में कमी आने के कारण काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
भारतीय किसान यूनियन किसानों के संघर्षों को एकजुट व जनता के सामने लाने के लिए संकल्पित है। भारतीय किसान यूनियन समय-समय पर किसानों के कल्याण एवं समस्या के समाधान हेतु आन्दोलन का निर्माण करता रहा है। भारतीय किसान यूनियन मांग करता है कि किसानों के लिए अलग से एक विस्तृत पैकेज 1.5 लाख करोड घोषित किया जाए। कृषि कार्य हेतु किसानों को मनरेगा के माध्यम से श्रमिक उपलब्ध कराएं जाएं। खेतीहर मजदूरों को भी मिलने वाले 1000 रुपये का लाभ दिया जाए। जिससे किसानों को आत्महत्या से बचाया जा सके।
अतः हमारी देश के किसानों से अपील है कि अंतरराष्ट्रीय किसान दिवस के अवसर पर आर्थिक पैकेज की मांग को लेकर 17 अप्रैल समय शाम 5 बजे अपने कृषि यन्त्रों को लेकर गेट पर खडे होकर फोटो सोशल मीडिया के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व मीडिया को शेयर करें।
*लेखक भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। यहां प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
किसानों की मदद के लिए सही तरीका रहेगा। किसान हमारे देश के अन्नदाता हैं। लाकडाउन में एक महीना हम अपने घरों में रह सकते हैं। लेकिन एक महीना हम बिना खाए पिए नहीं रह सकते हैं। इसलिए किसान हमारा अन्नदाता है। हमारा भोजन भगवान है।