– प्रशांत सिन्हा
आज ज़रुरत इस बात की है कि पर्यावरण रक्षा के कार्यों को इस तरह आगे बढ़ाया जाए जिससे पर्यावरण भी बचेगा और रोज़गार भी बढ़ेगा। यदि ऐसा होता है तो पर्यावरण रक्षा और आजीविका की रक्षा इन दोनों सार्थक उद्देश्यों का आपस में समन्वय हो जायेगा।
पर्यावरण में बदलाव चिंता का विषय है। देश में प्रदूषण एवं जलवायु परिर्वतन के संकट को देखते हुए इससे निपटने के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं। पर पर्यावरण देश के आर्थिक उन्नति में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अभी तक जो भी पर्यावरण रक्षा के लिए प्रयास किए जा रहे हैं उसमें अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। इस असफलता की बड़ी वजह यह है कि पर्यावरण रक्षा में मेहनतकश लोगों के हितों की अनदेखा होती है जिससे व्यापक समर्थन नहीं मिल पाता। यदि पर्यावरण बचाने की मुहीम में मेहनतकश लोगों व कमजोर वर्गों के हित भी जुड़ जाएं तो इससे गरीबी भी दूर होगी।।
पहल हो रहे हैं जिन्हें बढ़ावा देने की ज़रुरत है।आइये देखें किस तरह पर्यावरण की बढ़ती आवश्यकता लोगों को रोज़गार दिलाएगी।
कुछ वर्ष पहले बढ़ते मरुस्थलीकरण को लेकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री ने यह एलान किया था कि अगले दस सालों में पचास लाख हेक्टेयर या बंजर पड़ी भूमि को उपजाऊ बनाया जायेगा। भूमि के उपजाऊ होने से देश में लाखों की संख्या में नौकरियां पैदा होती हैं। वैसे पूरी दुनिया मरुस्थलीकरण की इस चुनौती से निपटने के लिए पूरी ताकत से जुटी है। क्योंकि भूमि के बंजर या बेकार होने के पीछे एक बड़ी वजह जलवायू परिर्वतन भी है। देश में वायु प्रदुषण, जल प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण अपनी चरम सीमा पर है। नदियां, तलाबे, पहाड़, पेड़ पौधे खत्म होते जा रहे है। यही कारण है कि पर्यावरणीय वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों की बहुत आवश्यकता है। आने वाले समय में इस क्षेत्र में विस्तार दिखने वाला है।
वनों का पर्यावरण संतुलन में अधिक महत्व है। पर्यावरण सुरक्षा के लिए यदि हम वन लगाएं तो एक ओर तो हमें शुद्ध वातावरण मे जीने का मौका मिलता है, साथ ही मुनाफा कमाने का अवसर प्राप्त होता है। इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार भारत का 28.82 फीसदी भू-भाग वन आच्छादित हैं। वैसे तो वन हमारे पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने के लिए आवश्यक है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में वनों का महत्व और भी इन कारणों से हो जाता है कि एक बड़ी ग्रामीण आबादी वनों पर अपनी आर्थिक संपन्नता के लिए निर्भर करती है। मछली पालन, बांस एवं फलदार वृक्ष की बागवानी से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है और साथ ही पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है।
देश में पर्यावरण शिक्षा अनिवार्य हो रहा है जिसके लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता होगी।
वायु गुणवत्ता सूचकांक के मापन, जल गुणवत्ता के मापन, ध्वनि की तीव्रता मापन, खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता मापन जैसे क्षेत्रों में रोज़गार की संभावनाएं हैं। हरित पट्टी के निर्माण, पौधशाला का संचालन, जलाशयों का जीर्णोद्धार, पेयजल की उपलब्धता, वन्य जीवन का संरक्षण आदि क्षेत्रों में रोज़गार की प्रबल संभावना है।
इसके अलावा भारत में जिस तेजी से शहरीकरण हो रहा है लगातार नए भवनों का निर्माण हो रहा है और ऊर्जा की मांग बढ़ रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए नियम कायदे और कड़े हो रहे हैं। उसे देखते हुए बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में एनवायरनमेंटल साइंस और रिन्यूएबल एनर्जी में प्रशिक्षित लोगों की ज़रुरत होगी।
आने वाले समय में पानी और कचरा प्रबंधकों की जरूरत होगी। इस ज़रुरत को पूरा करने के लिए भी काफी लोगों की जरूरत होगी।
इसका मतलब यही है कि इन क्षेत्रों में नौकरी की अपार संभावनाएं हैं। आज कंजर्वेशनिस्ट की काफी मांग है। कारण यह है कि पर्यावरण को संरक्षित और सुरक्षित रखने के ऐसे लोगों को का ज़रुरत है जो नदियों को साफ करने की परियोजनाओं और जल प्रदूषण के प्रति काम कर सकें।
इन सबके अलावा आने वाले समय में नई तकनीक और इनोवेशन की डिमांड बहुत बढ़ जाएगी और इसमें संभावनाएं बढ़ेंगी। इस तरह विकास के साथ साथ मानवता को बचाने में योगदान दिया जा सकता है।
सही कहा हैं, आगे जाकर पर्यावरण मे सुधार लाने के लिये इस तरह का रोजगार उपलब्ध हो जायेगा, और युवा वर्ग इसमे सेहभागी होगा. धन्यवाद 🙏🏻