व्यंग्य: शिमला यात्रा
-डॉ. गीता पुष्प शॉ*
श्रीमान-श्रीमती ने शिमला घूमने का कार्यक्रम बनाया।पटना में भयंकर गर्मी पड़ रही थी। पारा पैंतालिस डिग्री के ऊपर जा रहा था। श्रीमान–श्रीमती का पारा वैसे भी सदा गरम रहता है। पति ने बैंक से रुपये निकाले। शिमला के टिकट भी बुक कर लिए। जाने की तैयारी में श्रीमती जी ने खरीदारी शुरू कर दी। शिमला में फ़ॉरेन के लोग भी तो हमें देखेंगे, ऐसे में बढ़िया ड्रेसेज़ पहनकर जाना चाहिए। फिर शिमला की ठंड के लिए स्वेटर, शॉल, कार्डीगन भी रख लिए। पति ने रुपये गिने। पत्नी पर बरस पड़े – “अरे, चलने के पहले ही इतने रुपये ख़र्च कर दिए। तुम सच में बड़ी ख़र्चीली बीवी हो।” पत्नी बिफर गई– “खर्चीली होती तो इतने रुपये कैसे बचते जो आज शिमला जाने की हिम्मत कर रहे हैं। मैं ही हूँ जो इतने कम खर्च में घर चला रही हूं।” पति चिल्लाया– “रहने दो, मैं जानता हूँ। हिसाब–किताब रखती नहीं, फिजूल खर्च करती चली जाती हो।” “कुछ फिजूल खर्च नहीं करती। ठहरो, तुम्हें हिसाब लिखकर देती हूँ।” पत्नी ने आंसू पोंछकर कहा। कागज़ पर जब हिसाब लिखना शुरू किया तो सच में थोड़ी देर बाद रुक गई. याद ही नहीं आ रहा था, इतने रुपये कहां ख़र्च हो गए। पति ने गरजकर कहा– “अब बोलो? हिसाब तो मिल नहीं रहा, फिर कहती हो मैं लड़ता हूँ. डांटता रहता हूँ।” पत्नी ने कहा– “मैं याद करके लिख तो रही हूँ। तुम्हें पैसे–पैसे का हिसाब देकर रहूंगी।”
इसी चख–चख में शिमला यात्रा शुरू हुई। पहले पटना से दिल्ली पहुंचे फिर दिल्ली से सुबह–सुबह पति–पत्नी शताब्दी ट्रेन में चढ़े। सारे डिब्बे ए.सी. थे। ठंडी हवा पाकर बड़ी राहत मिली। थोड़ी देर में हर यात्री को ठंडे पानी की बोतल मिली। पत्नी बोली– “वाह! फ्री बोतल!” पति ने डांटा– “चुप रहो। टिकट के इतने ज़्यादा पैसे दिए हैं, इसलिए मिल रहा है।” सबको एक–एक अख़बार भी मिल गया। फिर लगातार फ़्री सर्विस शुरू हुई। ट्रे में टॉफी, बिस्कुट, जैम, मक्खन, ब्रेड के साथ–साथ दूध–चीनी की पुड़िया, डिप– डिप चाय पाऊच, थर्मस में गर्म पानी सर्व हुआ। पत्नी जी खुश हो गईं। पहली बार कोई इतनी सेवा कर रहा है। वे आराम से चाय पीने लगीं। पति बोले– “मेरी चाय भी बना दो न!” पत्नी बोली– “सारा सामान सामने धरा है। ज़रा सी चाय भी नहीं बना सकते?” घर होता तो पति आसमान सर पर उठा लेते। यहां लड़ते तो सहयात्रियों पर क्या इम्प्रेशन पड़ता। खुद ही चाय बना ली। ए.सी. में बैठकर दोनों के गुस्से की गरमी कुछ कम हो गई थी। चाय की ट्रे उठा ली गई। कुछ देर बाद ब्रेकफास्ट सर्व होने लगा. पत्नी ने कहा– “वेज” और उन्हें इडली–बड़ा–साम्बर सर्व हुआ। पति ने कहा– “नॉन वेज।” उन्हें मक्खन, ब्रेड और बड़ा–सा आमलेट सर्व हुआ। वे खुश होकर चहके– “वाह, आमलेट!” पत्नी बोली– “धीरे बोलो। लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे। घर में जैसे आमलेट मिलता नहीं।” पति बोला– “महीने में एक दो बार धोखे से मिल जाता है। तुम तो अधिकतर अपने साज–सिंगार पर पैसे खर्च करती हो। ज़रा बढ़िया खाने पर भी खर्च किया करो।” पानीपत स्टेशन आ गया था। पति–पत्नी की लड़ाई भी शुरू हो गई थी। पत्नी बोली– “अभी ताने मत दो। मुझे इडली–साम्बर खाने दो। तुम तो इतने कंजूस हो, दो बरस पहले दिल्ली के ‘नीलगिरि‘ में दोसा खिलाया था।” पति बोला– “तुम इतना सजकर निकलती हो कि तुम्हारे हार, चेन और बालियों की रक्षा करते–करते दो बार जेब कटवा चुका हूँ।” कुरुक्षेत्र स्टेशन में ट्रेन रुकी। पति–पत्नी का वाक्युद्ध और तेज़ हो गया।
लड़ते–लड़ते कालका स्टेशन आ गया। ट्रेन रुक गई। सभी यात्री उतर गए। शिमला जाने वाले अब छोटी–सी खिलौना गाड़ी में बैठे। देवभूमि हिमाचल की खूबसूरत वादियों के बीच से ट्रेन अत्यन्त धीमी गति से इठलाती बलखाती चल रही थी। ऐसे घुमावदार मोड़ आते कि ट्रेन में बैठे बच्चे चिल्लाते– “वो देखो, अपनी ट्रेन का इंजन अब सुरंग में घुस रहा है। पूरी एक सौ दो सुरंगें पार करके शिमला पहुंचेगी।”
पति डायरी निकालकर सुरंगों के नम्बरों के साथ–साथ यह भी नोट करने लगे कि कौन–सा स्टेशन कितनी ऊंचाई पर है। पत्नी ने भी अपनी डायरी निकाली। वह किए गए ख़र्चों का हिसाब याद करके जोड़ने लगी। सुन्दर घाटियों के बीच बादल, कभी ऊपर दिखते कभी नीचे। ऊपर से खिलौनों जैसे छोटे–छोटे घर और सीढ़ीनुमा खेत दिखाई दे रहे थे। पूरी वादी में हल्की ठंड थी, इसलिए ट्रेन में पंखे भी नहीं लगे थे। बच्चे, स्त्रियां, देशी–विदेशी पर्यटक मनोरम दृश्यों का आनन्द ले रहे थे, परन्तु धन्ना सेठ व्यापारियों को यहां भी चैन नहीं। वे कानों में मोबाइल फोन लगाये ज़ोर–ज़ोर से बातें कर रहे थे– “मैं बस चार दिनों में पहुंच जाऊंगा। माल भेज देना। बिल्टी छुड़ा लेना… गोरखपुर वाला चेक आया या नहीं…” उनका व्यापार बुलेटिन सुनते–सुनते आखिर छः घंटों की मनोरम यात्रा के बाद शिमला आ गया।
सुबह शिमला घूमने का प्रोग्राम पत्नी ने बनाया। पति ने पहले रुपये गिने और पत्नी की ओर व्यंग्य बाण फेंका– “क्यों जी, खर्च का हिसाब मिला या नहीं? पहले उन रुपयों का हिसाब बताओ, तब शिमला में शॉपिंग करना।” पत्नी मन में सोच रही थी, काफी ख़र्च तो याद आ गए, बस पांच हजार रूपए का हिसाब नहीं मिल रहा है। इनको भी बस हर वक्त हिसाब… हिसाब यहां भी चैन से रहने नहीं देते। यहां न मच्छर हैं, न मक्खियां, न छिपकली, न धूल, न जाले।यहां की औरतों का वक्त हमारी तरह, सफाई करने में नहीं बीतता होगा। पर बाप रे! रोज़–रोज़ पहाड़ से नीचे उतरकर सब्ज़ी लाना, खरीदारी करना, फिर चढ़ाई चढ़ना। यहां न रिक्शा है, न साइकिल। बस केवल कारें। बड़ा कठिन जीवन है यहां।
शाम को पति–पत्नी शिमला का ‘रिज‘ घूमने निकले। यहां की सबसे बड़ी समतल जगह यही है, जहां पर्यटक घूमते हैं। पहाड़ियों पर बसे घर दीपों की तरह टिमटिमा रहे थे। साथ आए व्यक्ति ने बताया– “रिज के नीचे पूरे शिमला के लिए पानी संग्रहित किया जाता है। अंग्रेजों ने बनवाया था यह वाटर टैंक।” पानी का नाम आते ही पति ने तुरन्त पत्नी से पूछा– “क्यों जी, घर से चलते समय सारे नल ठीक से बन्द करके आई थीं या नहीं? तुम्हें तो आदत है, सदा नल खुला छोड़ देने की।” पत्नी बोली– “बस भी करिए, आपकी तो आदत है हमेशा टोकते रहने की और डाँटते रहने की। देखिए न, क्राइस्ट चर्च कितना सुन्दर दिख रहा है। फिल्मों में जब भी शिमला दिखाते हैं, क्राइस्ट चर्च ज़रूर दिखाई देता है। और देखिए न हनीमून मनाने आए जोड़े कैसे गले में बाहें डाले साथ–साथ घूम रहे हैं।” पति चिढ़कर बोला– “घूम लेने दो। नये–नये में तो सभी यही करते हैं। बाद में तो हमारी तरह लड़ना ही है।”
“मैं लड़ती हूँ या आप?”
“लड़ाई तो तुम्हीं शुरू करती हो।”
“अच्छा छोड़िए। देखिए, यहां कोई यातायात नहीं। सभी आराम से घूम रहे हैं या सड़क के किनारे बनी बेंचों पर बैठे हैं। बीच में कुछ लोग घोड़े पर चढ़कर घुड़सवारी करते हुए तस्वीरें खिंचवा रहे हैं। आप भी घोड़े पर चढ़कर फोटो खिंचवाइए न!” पति ने कहा– “एक बार घोड़ी पर चढ़कर तुम्हारे घर आया था। आज तक पछता रहा हूँ।” बिना कुछ समझे पत्नी बोली– “उधर देखिए, पेशेवर फोटोग्राफर हिमाचली ड्रेस पहनाकर फोटू खींच रहे हैं। एक मेरी भी खिंचवा दीजिए।” पति ने पूछा– “क्यों?” पत्नी बोली– “इसलिए कि अब आप मुझे प्यार नहीं करते। एक बार मैं अपनी दोस्त से उधार लेकर काश्मीरी ड्रेस पहनकर अपनी छत पर आयी थी, बस लट्टू हो गये थे आप! ऊंची छत फांद कर मुझसे मिलने आते थे। शायद इस हिमाचली ड्रेस में मुझे देखकर, फिर से…” पति ने धीरे से कहा– “दोबारा ऐसी नौबत आई तो छत से नीचे कूद जाऊंगा।”
“क्या कहा?” पत्नी ने पूछा। पति ने कहा– “कुछ नहीं। चलो उधर। लक्कड़ बाज़ार है। वहां केवल लकड़ी के सामान मिलते हैं।” पत्नी ने कहा– “अपने घर तो लकड़ी के ढेर सारे फर्नीचर हैं। मेरी सहेली ने कहा था– स्कैंडिल पॉइन्ट ज़रूर देखना। बहुत मशहूर है। पटियाला के महाराजा एक गोरी मेम को लेकर यहां से भाग गए थे।” दोनों वहां पहुंचे। ‘स्कैंडिल पॉइन्ट‘ पर एक सिपाही खड़ा था। पति ने एक व्यक्ति से पूछा– “यहां सिपाही क्यों खड़ा है?” वह बोला– “यहां हर समय एक सिपाही रहता है ताकि दोबारा ऐसी घटना नहीं हो।” पति ने पूछा– “अब पटियाला के महाराजा कहां मिलेंगे? मेरे पास भी एक गोरी है, मगर मेम नहीं, खांटी इंडियन है।” वह आदमी मुस्कुराकर चल दिया। ठंडे मौसम में स्वेटर पहनकर भी लोग आइस्क्रीम खाने का आनन्द उठा रहे थे। पत्नी चहककर बोली– “हाय! सर्दियों में शिमला आते तो स्नो फॉल देखते।” यह सुनकर वहां की निवासी एक महिला बताने लगी कि शिमला के तीन फॉल बहुत प्रसिद्ध हैं – रेन फॉल, स्नो फॉल और तीसरा गेस्ट फॉल। हर सीजन में सभी घरों में गेस्ट भरे रहते हैं। फल–सब्ज़ियां, पनीर, चिकन सभी चीजें इस समय महंगी हो जाती हैं। आजकल तो पानी की भी कमी होने लगी है। पति बीच में ही बताने लगे – “जी हां, हमारे यहां भी बहुत गेस्ट आते हैं, पर मेरे कम, मेरी ससुराल से बहुत गेस्ट आते हैं।” पत्नी को बुरा लगा। चिढ़कर बोली– “यहां भी आप मेरे मायकेवालों की बुराई करने से बाज़ नहीं आए।” और पति–पत्नी की लड़ाई फिर शुरू हो गई।
दूसरे दिन दोनों ‘जाखो‘ गए। यहां हनुमानजी का मंदिर है। पत्नी ने वहां ढेर सारे बन्दरों को देखकर पति से कहा– “सतर्क रहिए। सुना है, ये बन्दर पॉकेट में हाथ डालकर चीजें निकाल लेते हैं। हाथों की चीजें छीन लेते हैं। यहां तक कि पुजारियों को चनों से भरी प्रसाद की पेटी में भी ताला लगाकर रखना पड़ता है, नहीं तो बन्दर पेटी खोलकर प्रसाद खा लेते हैं। कहते हैं, एक बार किसी बन्दर ने एक आदमी की जेब से उसकी पूरी तनखा निकाल ली थी और भागकर ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया था। वहां बैठकर उसने एक–एक कर सारे नोट हवा में उड़ा दिए नीचे दुर्गम खाइयों में, जंगल झाड़ियों में वे नोट उड़ गए और वह आदमी रोता रह गया…” पति बोला– “हां, जैसे तुम मेरी तनखा देखते–ही–देखते उड़ा दिया करती हो और मैं रोता रह जाता हूँ।” ख़र्चों को लेकर हज़ारों मीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर भी पति–पत्नी में फिर लड़ाई शुरू हो गई। यहीं जाखो में नई ऊर्जा…
पत्नी ने कहा– “यहां बेकार लड़िए मत।” पति बोला– “इतनी ठंड में भी मेरा दिमाग गर्म हो रहा है। मैं कहां लड़ता हूँ। सारी चिक–चिक तो तुम शुरू करती हो।” पत्नी खुशी से चहक उठी– “मिल गया, हिसाब मिल गया. गर्मी और धूप से बचने के लिए मैंने बालकनी में जो चिक लगवाई थी, उस पर पूरे पांच हज़ार रुपये खर्च हुए थे।” उसने तुरन्त डायरी निकालकर लिखा और कहा– “लीजिए पूरा हिसाब मिल गया।”
पति धम से बैठ गया। पत्नी ने कहा– “उठिए भी, अब चलें।” पति बोला– “संजीवनी बूटी लाने गए हनुमान जी, सुमेरु पर्वत उठाए-उठाए जब थक गए थे, तब यहां थोड़ा विश्राम कर उन्होंने नई ऊर्जा पाई थी। गृहस्थी का बोझ उठानेवाला हर पति हनुमानजी जैसा ही होता है।” पत्नी बोली– “उठिए भी, नेहरू जी ने कहा था- आराम हराम है।” पति ने अपनी पत्नी को देखा, मन ही मन कहा– “बाप रे, इतना भारी बोझ…” मगर इस बार बिना खिच-खिच किये, वह उसके पीछे चुपचाप चल पड़ा, क्योंकि गृहस्थी की गाड़ी हर बार लड़ाई से नहीं चलती।
*डॉ. गीता पुष्प शॉ की रचनाओं का आकाशवाणी पटना, इलाहाबाद तथा बी.बी.सी. से प्रसारण, ‘हवा महल’ से अनेकों नाटिकाएं प्रसारित। गवर्नमेंट होम साइंस कॉलेज, जबलपुर में अध्यापन। सुप्रसिद्ध लेखक ‘राबिन शॉ पुष्प’ से विवाह के पश्चात् पटना विश्वविद्यालय के मगध महिला कॉलेज में अध्यापन। मेट्रिक से स्नातकोत्तर स्तर तक की पाठ्य पुस्तकों का लेखन। देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। तीन बाल-उपन्यास एवं छह हास्य-व्यंग्य संकलन प्रकाशित। राबिन शॉ पुष्प रचनावली (छः खंड) का सम्पादन। बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा साहित्य साधना सम्मान से सम्मानित एवं पुरस्कृत। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से शताब्दी सम्मान एवं साहित्य के लिए काशीनाथ पाण्डेय शिखर सम्मान प्राप्त।
सुंदर व्यंग्य के साथ साथ शिमला का भ्रमण भी कर लिया 😊🙏