व्यंग्य
– डॉ. गीता पुष्प शॉ
खाने वाले दूर से ही पहचाने जाते हैं
कौन कहता है, हम तो बस जीने के लिए खाते हैं? हमारा कहना है खाने के लिए जिओ नहीं तो जिओ किसलिए? मानस जनम बिरथा गंवायो जिसने नहीं खायो। खाओ, खाओ खूब खाओ। टी.वी. भी चिल्लाकर कहता है – खाये जाओ, खाये जाओ, यूनाइटेड (पार्टी) के गुण गाये जाओ। पार्टियां होती ही हैं खाने के लिए, ये सब जानते हैं। बड़े भोले हैं आप अगर यह नहीं जानते। कई लोग जो खाने के शौकीन होते हैं, वे –’पार्टियों’ के भी शौकीन होते हैं। जब-जब मौका मिलता है, पार्टी में खाने जा धमकते हैं। एक पार्टी में खाते हैं, फिर दूसरी पार्टी में जाकर खाते हैं। फिर तीसरी पार्टी में शामिल होते हैं। खाने के लिए पार्टियां बदलते रहते हैं। लक्ष्य एक ही होता है – खाना। उनकी पाचन शक्ति स्ट्रांग होती है। जो कमजोर होते हैं उनकी पाचन शक्ति भी कमजोर होती है और वे एक ही पार्टी में रहकर घिसा-पिटा एक ही स्वाद का खाना, मन मारकर खाते रहते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो पार्टी में तो जाते हैं, पर वर्कर बना दिए जाते हैं। उनका ध्यान बस काम में लगा रहता है। वे खाने की ओर ध्यान हीं नहीं देते हैं। दूसरों को खाते देखते-देखते उनका मन भर जाता है। बाद में पछताते हैं। कहते हैं- ‘मैया मोरी, मैं नहीं माखन खायो।’ पर अब पछताये होत का?
हे खाऊ ! खाए जाओ…खाए जाओ!
खाने में बड़े गुण हैं। पोषण शास्त्र में खाने की परिभाषा इस प्रकार दी गई है – ‘भोजन उसे कहते हैं जिसे हम खाते हैं, पचाते हैं और जो पचने के बाद हमारे रक्त में मिल जाता है। यही रक्त में मिला हुआ पोषक तत्व सांस द्वारा ली गई ऑक्सीजन से मिलकर ज्वलन क्रिया करके ऊर्जा या शक्ति उत्पन्न करता है।’ बड़ी सिम्पल सी बात है। सभी चीजें खाने की नहीं होतीं। जिन्हें आप पचा सकते हैं, उसे ही खाना चाहिए। एक का आहार, दूसरे का आहार नहीं हो सकता। जैसे गाय घास पचा सकती है, इसलिए उसे खाती है। मनुष्य घास पचा नहीं सकता इसलिए नहीं खाता है। परन्तु ऐसा भी सुना गया है कि कुछ लोग मिलकर पशुओं का चारा खा गये। वे उसे पचा नहीं सके और बहुत हो-हल्ला हुआ। उन्होंने कहा कि चारा नहीं खाया है। सत्यता को जांचने के लिए विशेषज्ञों की जांच समितियां गठित की गईं। परन्तु विशेषज्ञों का एक दल उसे प्रमाणित करता है तो दूसरा दल नकार देता है। वर्षों हो गए। शोध अभी तक चालू है। शोधकर्ताओं के एक दल ने कहा कि उसमें कुछ न कुछ सत्यता हो सकती है, क्योंकि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मनुष्यों की ऐसी नस्लें भी पाई जाती हैं जो ईंट, सीमेंट, बालू यहां तक कि कागज के नोट भी पचाने की क्षमता रखती हैं। देश खाने वाले भी होते हैं। यस, उनमें जादू होता है। आपने मेले में जादूगर को देखा होगा। वह ट्यूब लाइट खा लेता है। लोहे की कीलें खा लेता है। आप आश्चर्य से देखते रह जाते हैं। अरे! यह ऐसा कर सकता है तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते?
आप ऐसा कुछ कर के देखें तो सावधानी बरतें क्योंकि खाने के संबंध में कहा गया है कि खाना हमेशा संतुलित होना चाहिए। बिहारी भाषा में, कहीं ‘हदिया’ के खा लिया तो उल्टी भी हो सकती है। सब कुछ बाहर आ जाएगा। सबको पता चल जाता है कि क्या खाया था। खाना, थोड़ा-थोड़ा कुछ समय के अंतराल से खाना चाहिए। डाक्टर भी यही कहते हैं।
खानेवाले दूर से ही पहचाने जाते हैं। वे हृष्ट-पुष्ट होते हैं। उनकी तोंद निकली हुई होती है। तोंद वह उपकरण जिसमें सब कुछ समा जाता है और छिपा भी रहता है। आप उसे देखकर दूर से ही कह सकते हैं – खाता-पीता आदमी है। ग़जब का खाता है। वह पास आता है। आपके दोनों हाथ अपने आप नमस्कार की मुद्रा में जुड़ जाते हैं। उसके भी जुड़ जाते हैं। फिर वह आशीर्वाद देता है – ‘जिओ, बहुत दिन जिओ।’ उसका मतलब साफ होता है ज्यादा दिन जिओगे तभी तो ज्यादा खा सकोगे। इसलिए जिओ और जीने दो। खाओ और खाने दो।
कुछ लोग मूर्ख होते हैं। मांगें पूरी नहीं होने पर खाना छोड़ देते हैं।अनशन पर बैठ जाते हैं। कई-कई दिन हो जाते हैं, अनशन खत्म ही नहीं करते। तब खाने वाले लोगों को चिंता हो जाती है। अरे हम खाएंगे और तुम नहीं खाओ, ऐसा कैसे हो सकता है? हमें असुविधा हो रही है। तुम नहीं खाकर वाहवाही लूट रहे हो। अखबारों की सुर्खियां बन रहे हो । सफेद झकाझक कुरते पर गेंदे की पीली फूलमालाएं पहनकर सुशोभित हो रहे हो। अपनी सुंदर छवि बना रहे हो। ऐसा नहीं चलेगा। हम तुम्हारा अनशन तुड़वाकर रहेंगे। और वे उनका अनशन तुड़वाने पहुंच जाते हैं। फ्रूट जूस लेकर। लो, थोड़ा-सा लो । तभी तो हम खा सकेंगे। और अंत में, वे उनका अनशन तुड़वाकर ठंडी सांसें लेते हैं, इत्मीनान की। चलो, अब रास्ता साफ है। अब वे भी खाते रहेंगे। हम भी खाते रहेंगे। पहले हम जमीन पर बैठकर खाते थे। अब कुर्सी पर बैठकर खाते हैं। कुर्सी जितनी बड़ी होती है, खाने में उतनी ज्यादा सुविधा होती है। बुजुर्ग विशेषज्ञों ने कहा है – पौष्टिक भोजन, जीवन का आधार है। इसलिए स्वयं खाओ, परिवार वालों को भी खाने के अवसर दो। यही स्वस्थ रहने का रहस्य है। तुम्हारा परिवार भी खाकर स्वस्थ रहेगा तो देश भी स्वस्थ रहेगा।
सावधानी
हे खाऊ! खाए जाओ, खाए जाओ। जितना पचा सको, खाए जाओ। बस ‘हदिया’ के मत खाना। अनपच हो जाने से उल्टियां भी हो सकती हैं, ‘सरकारी ससुराल’ जाकर खिचड़ी खाने की भी नौबत आ सकती है।
*डॉ. गीता पुष्प शॉ की रचनाओं का आकाशवाणी पटना, इलाहाबाद तथा बी.बी.सी. से प्रसारण, ‘हवा महल’ से अनेकों नाटिकाएं प्रसारित। गवर्नमेंट होम साइंस कॉलेज, जबलपुर में अध्यापन। सुप्रसिद्ध लेखक ‘राबिन शॉ पुष्प’ से विवाह के पश्चात् पटना विश्वविद्यालय के मगध महिला कॉलेज में अध्यापन। मेट्रिक से स्नातकोत्तर स्तर तक की पाठ्य पुस्तकों का लेखन। देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। तीन बाल-उपन्यास एवं छह हास्य-व्यंग्य संकलन प्रकाशित। राबिन शॉ पुष्प रचनावली (छः खंड) का सम्पादन। बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा साहित्य साधना सम्मान से सम्मानित एवं पुरस्कृत। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से शताब्दी सम्मान एवं साहित्य के लिए काशीनाथ पाण्डेय शिखर सम्मान प्राप्त।
बेहतरीन व्यंग्य । मज़ा आ गया।
अद्भुत, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह व्यंग्य रचना न सिर्फ हास्य रस से ओतप्रोत है अपितु इसमें निहित विषय सोचने पर विवश भी करता है, साधूवाद…..
इतनी सहजता के साथ आपने वर्तमान परिप्रेक्ष्य पर कटाक्ष किया है।पढ़ते पढ़ते गुदगुदी छूटती रही।मजा आ गया।