विश्व मानक दिवस – 14 अक्टूबर
हमारे जीवन के लिए मानक ज़रूरी हैं। भारत में मानकों के निर्धारण का बड़ा इतिहास रहा है। ये मानक गुणवत्ता को बनाए रखने और सुधारने के लिए तय होते हैं, इसलिए भारत हमेशा मानकों के निर्धारण में उच्च श्रेणी का देश रहा है। भारत में इन मानकों का निर्धारण बी.एस.आई. करती है। बी.एस.आई. द्वारा तय किए गए मानक दिखते तो अच्छे हैं, पर फिर भी हमारी नदियां तो नाला ही बनती जा रही हैं और भू-जल भंडार खाली होते जा रहे हैं। यदि इन मानकों के निर्धारण और क्रियान्वयन, दोनों का योग होता, तो न तो नदियां नाला बनतीं और न ही भू-जल के भंडार खाली होते।
सतयुग, त्रेता और द्वापर काल में आज जैसे मानकों की जरूरत नहीं थी। उस काल में हम खुद अपने जीवन के मानक बनाते थे और हम खुद ही पालन करते थे। हम प्रकृति को ही अपना भगवान मानते थे और जितना प्यार, सम्मान और संरक्षण हम अपने शरीर को देते थे, उससे भी ज़्यादा हम प्रकृति को देते थे। इसलिए हमारी जीवन पद्धति प्रकृति का रक्षण-संरक्षण करने वाली थी।
जैसे-जैसे हमारे जीवन में प्रकृति की अनदेखी हुई, वैसे-वैसे हमारा जीवन जटिल बनता चला गया। इन जटिलताओं को समझकर अब हमारी सरकारों ने समाधान के मानक बनाने शुरू किए हैं। जब व्यक्ति अपने जीवन के मानक खुद बनाता है, तो वह स्वयं बदलने लगता है।
हमें यह समझना जरूरी है कि, जब हमारे जीवन के मानक हम खुद बनाते हैं, तो हम उनकी पालना करते हैं। हमारा अभिजात वर्ग झूठ और सत्य का अंतर समझे बिना, तथ्यों को तोड़-मरोड़कर मानकों को प्रस्तुत करके मानक प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेता है। बी.एस.आई. का मानक प्राप्त कर लेने के बाद वह निर्धारित मानकों की पालना नहीं करता।
मेरा तरुणाई का मानक था कि गांव अपने आपसी झगड़े अपने गांव की अदालत में निपटाए। तब तरुण भारत संघ का नारा होता था कि ‘‘गांव के झगड़े गांव निपटाए, पुलिस कचहरी कोई ना जाए’’ इन नारों ने लोगों में एक अलग ही विश्वास पैदा किया और पुलिस कचहरी जाना बंद कर दिया। जब इनके खेतों में पानी का काम हो गया, तो महिलाओं ने इन्हें समझाना शुरू किया कि, अब पुलिस कचहरी जाकर, अपने मामले रद्द कराओ।
इस काम के लिए तभासं के कार्यकर्ताओं ने सभी को समझाकर, अदालती मामले निपटाये और इनके खेतों पर पानी का काम किया।तरुण भारत संघ ने पिछले 4 दशकों में चम्बल क्षेत्र के बारे में यह समझ लिया कि यहां लोग पानी के संकट के कारण मजबूर होकर बाग़ी बने हैं; तब इनकी परिस्थ्ति को समझ कर, बिना किसी को भी यह कहे, कि तुम बंदूकें छोड़ो, उनसे पानी का काम कराया।इस दौरान तरुण भारत संघ के कार्यकर्ताओं का इन बाग़ियों ने कई बार अपहरण किया, लेकिन कार्यकर्ताओं का मानक था कि इनके हिंसा के काम छुड़वाकर अहिंसक जीवन पद्धति अपनाकर खेती में लगाना। तरुण भारत संघ ने अपने लिए जो मानक बनाए, उन्हें अपने आप बाग़ियों के साथ मिलकर क्रियान्वित कराये और सफल हुए। जल संरचनाओं में पानी आने से ये पानीदार बन गए और बंदूकें स्वयं छोड़ दीं। इन सब काम को करने के लिए कभी कोई समर्पण या समारोह आयोजित नहीं किए गए, बस! हिंसा त्यागकर अहिंसामय जीवन जीने का परिवर्तन-चक्र चलाया। अभी 3 हजार से ज़्यादा लोग हैं, जिनके खेतों में पानी आने से वे बाग़ी से किसानी, पशुपालन व हरियाली बढ़ाने के काम में जुट गए। अब यह पूरा क्षेत्र शांतिमय बन गया है।
हिंसा को अहिंसामय बनाने का काम करने में विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, एस.एन. सुब्बाराव व पी.वी. राजगोपाल की भूमिका मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में रही है। तरुण भारत संघ ने अपनी भूमिका राजस्थान क्षेत्र में निभायी, लेकिन यह सफलता अपने जीवन के लिए अपना मानक बनाने और पालना करने से ही सम्भव हुई है। आज विश्व मानक दिवस पर निवेदन करता हूं कि हिंसा को छोड़कर, अहिंसामय प्रकृतिप्रेम के मानक अपनाएं, ऐसा करने से ही हमारी नदियां और प्रकृति स्वस्थ्य रहेगी और हम भी स्वस्थ्य रहेंगे।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक।