– डॉ रमेश भूत्या* एवं बृजेश विजयवर्घिया**
बाराँ: राजस्थान के बाराँ जिले में शाहाबाद के आसपास के क्षेत्र का जो जंगल है वह जैव विविधता की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। मध्य प्रदेश के सीमा के पास होने के कारण इस क्षेत्र में मध्य भारत के पौधे, उत्तर भारत के पौधे, दक्षिण भारत के पौधे, और पश्चिमी भारत के यानी कि राजस्थान के पौधे यहां विद्यमान है।
शाहाबाद के आसपास 16 गोरजेज यानी खोह है और यह खोहें जूलॉजी और बॉटनी, दोनों ही दृष्टि से बहुत ही विविधतापूर्ण है। खास बात यह है कि इन खोंहों के दुर्गम होने से इनमें मानवीय गतिविधियां नहीं होने के कारण, बहुत ही दुर्लभ प्रजातियों के पौधे यहां पर है।
यहां बोटैनिकल सर्वे में यह बात सामने आई है कि यहां लगभग 1050 से अधिक प्रजातियों के पौधे विद्यमान हैं। यहां पर बहुत से दुर्लभ पौधे हैं जो केवल यहीं पर मिलते हैं और कहीं नहीं पाए जाते हैं, जैसे सेलागिनेल्ला राजस्थानएन्सिस। खास-खास पौधों की अगर हम गणना करें तो यहां पर कतीरा, मेदा लकड़ी, मोखा, अर्जुन, विजयसार, चिरौंजी, महुआ, बहेड़ा, आंवला, हरड़, अंकोल, सिरस, पीला पलाश, 4 तरह की धोक, जंगली केला, धामन, 2 तरह की गूगल, शालपर्णी, गोजिह्वा, शिवलिंगी, मेड़सिंघी, पुत्रजीवक, तंबोलिया, हल्दू एवं और बहुत सी प्रजातियां के वृक्ष यहां पर मौजूद है।
खास बात यह कि यह जंगल बहुत अधिक पुराने हैं, इस वजह से पुराने विशाल वृक्ष यहां पर मौजूद हैं, जो यहां की खोहों की यात्रा करने पर ही नजर आते हैं। इस तरह यहां के जंगल बहुत ही जैव विविधता के हिसाब से बहुत ही महत्वपूर्ण है और इनका संरक्षण किया जाना जरूरी है खास बात यह है कि आयुर्वेद में जो औषधीय पौधे हैं जिनसे दवाइयां बनती हैं वह लगभग 500 पौधे हैं, उनमें से 320 पौधे यहां पर पाए जाते हैं।
इस क्षेत्र को पौधों से जुड़े तीनो विभागों, फॉरेस्ट विभाग, बॉटनी विभाग और आयुर्वेदिक विभाग, तीनों ने ही यहां की जैव विविधता को कभी गंभीरता से नही लिया है। जो पौधों की गणना यहां की गई है, इसमें और अधिक पौधे मिलने की संभावना है, क्योंकि यहां का बोटैनिकल सर्वे ठीक से नहीं हुआ है। इस कारण से इस क्षेत्र में ओर अधिक पौधे मिलने की और संभावना बनती है। विशेष बात यह है कि इस क्षेत्र के जो वृक्ष हैं, वो बहुत पुराने है और उन पर दुर्लभ ऑर्कीड्स पाए जाते हैं।
ये जंगल केवल शाहाबाद की सम्पत्ति नहीं है अपितु पूरे देश की जनता की धरोहर है परन्तु अब इन्हें हाइड्रो पावर प्लांट लगाने के लिए नष्ट किया जा रहा है जिससे स्थानीय लोगों में एक रोष है। पर्यावरणविदों का आरोप है कि जंगल में कटने वाले पेड़ों की संख्या को सरकार द्वारा छुपाया जा रहा है और मौका मुआयना करने से पता चलता है कि इस पॉवर प्लांट लगाने हेतु 119759 पेड़ों के स्थान पर कम से कम 25 लाख से 28 लाख पेड़ों को काटा जाएगा।
यह भी पढ़ें: कृपया बचाएं: जौहर बाई का तालाब और शाहाबाद के जंगल
शाहाबाद जंगल बचाओ आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है कि जंगल में लगने वाला हाइड्रो पावर प्लांट एक पुरानी पद्धति है जिसके कई विकल्प अभी प्रचलन में है।ये केवल कुछ लोगों द्वारा वन भूमि को हथियाने का षडयंत्र मात्र है।
सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरण विद प्रशांत पाटनी ने कहा कि “इस जंगल द्वारा जैव विविधता, वन्य जीव आवास, जलवायु परिवर्तन, कृषि उपज ,वर्षा जल प्रतिशत के साथ साथ हमारे जीवन जीने के अनेक कारक जुड़े हुए हैं।इन पेड़ों से के साथ हम सभी लोगों का जीवन जुड़ा हुआ है जो इन पेड़ों के कटने से सीधे तौर पर प्रभावित होगा। बारां जिले, राजस्थान,देश और विश्व भर के पर्यावरण को प्रभावित करने वाली इस घटना को विकास के नाम पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।चाहे हमें कितना भी बड़ा आंदोलन क्यों न करना पड़े।”
पर्यावरणविद् रॉबिन सिंह ने कहा कि “जिस तरह ऑक्सीजन पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के लिए आवश्यक है ठीक उसी तरह शाहबाद के जंगल भी देश भर के लोगों के जीवन के लिए आवश्यक है।”
इसी बाबत 6 जनुअरी 2025 को भारतीय सांस्कृतिक निधि वराह नगरी बारां अध्याय,दिया फाउंडेशन, वृक्ष मित्र फाउंडेशन और शाहाबाद घाटी संरक्षण संघर्ष समिति बारां द्वारा एक पर्यावरण संरक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रख्यात जल संरक्षक डॉ राजेंद्र सिंह ने कहा कि शाहाबाद जंगल के पेड़ों को काटा जाना पर्यावरण को प्रभावित करता है और यह सीधे तौर पर आम आदमी के जीवन को प्रभावित करता है इस नाते यह कार्य संविधान के विरुद्ध है। डॉ राजेंद्र सिंह ने कहा कि “एक पौधे को पेड़ बनने में सैकड़ों वर्ष लग जाते हैं जिसमें 150 से 200 वर्ष तक की उम्र के पेड़ों को काटा जाना इस देश की नहीं पूरे विश्व की पर्यावरणीय क्षति है जिसमें लगभग 600 तरह के औषधीय गुणों वाली प्रजातियों के पेड़ शामिल हैं।यह घटना पूरी मानवता के लिए विनाशकारी दुर्घटना है जिसके रोके जाने के लिए जितने भी कदम उठाने पड़े उठाए जाएंगे।”
कार्यशाला के दूसरे दिन डॉ राजेंद्र सिंह और रॉबिन सिंह की टीम सुबह 6 बजे बारां से शाहबाद जंगल के लिए रवाना हुई और 7.30 बजे कलोनी गांव पहुंची टीम ने गांव वासियों को इस अभियान के बारे में जानकारी देते हुए जंगल काटने से होने वाले नुकसान के बारे में बताया।गांव वासियों ने मंदिर के पास हुई इस सभा में शामिल होकर अपनी ओर से विश्वास दिलाया कि विकास की शर्त पर विनाश को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कलोनी गांव में पहुंचते ही सारे लोग इकट्ठे हो गए जो बाद में एक जन सभा के रूप में बदल गया।
यहां पर डॉ राजेंद्र सिंह और राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता रॉबिन सिंह ने प्लांट लगने से संबंधित जानकारियां और कटने वाले पेड़ों से होने वाले नुकसान की जानकारियां जुटाई ।लगभग एक घंटे कलोनी गांव में रुकने के बाद टीम शाहाबाद में लगने वाले हाइड्रो पावर प्लांट की जमीन पर कूनो नदी के किनारे पर पहुंचे।बीच में जगह जगह पर काटे गए पेड़ों को देखा और जोधपुर हाईकोर्ट के स्थगन आदेश के फैसले के बाद भी की गई कटाई और प्लांट लगाने को लेकर की जा रही तैयारियों को अवैधानिक बताया।
*डॉ रमेश भूत्या, पूर्व अतिरिक्त निदेशक, आयुर्वेद विभाग, कोटा
**बृजेश विजयवर्घिया, स्वतंत्र पत्रकार