बीते दिनों नयी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में क्लीनिकल ईकोटैक्सियोलाजी फेसिलिटी की ओर से तीन दिवसीय 36वीं इंटरनेशनल कान्फ्रेंस आफ इंटरनेशनल सोसाइटी फार फ्लोरोसिस रिसर्च का आयोजन हुआ। इसमें भारत के अलावा जापान, थाईलैंड, चीन, ईरान और अन्य देशों के वैज्ञानिक शामिल हुए जिन्होंने भूजल स्तर नीचे खिसकने समेत बहुतेरे कारणों की वजह से पानी में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ने के चलते फ्लोरोसिस की व्यापकता और बीमारी से निपटने के उपयोग पर गहनता से विचार विमर्श किया। सम्मेलन में क्लीनिकल ईकोटाक्सीकोलाजी के संस्थापक प्रमुख और एम्स के प्रोफेसर ए शरीफ ने कहा कि आज देश में आंध्र, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल भूजल में फ्लोराइड के मामले में शीर्ष पर हैं। इससे लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और राजधानी क्षेत्र में भी फ्लोराइड की निर्धारित मात्रा मानक से कहीं बहुत ज्यादा है। यहां रहने वाले फ्लोराइड जनित बीमारियों से परेशान हैं।
सरकार भले फ्लोरोसिस के मामलों में कमी आने का दावा करे लेकिन हकीकत में देश में 17 राज्यों के करीब 5-6 हजार से ज्यादा ऐसे इलाके हैं जो आज भी फ्लोरोसिस जोन के रूप में जाने जाते हैं। इसमें राजस्थान तो शीर्ष पर है जहां के 3000 से भी ज्यादा इलाके फ्लोरोसिस जोन के रूप में कुख्यात हैं। देश में 83 फीसदी फ्लोरोसिस जोन में राजस्थान के बाद मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु,पंजाब और बिहार आते हैं।
भारत वन स्थिति रिपोर्ट (आईएसएफआर) की ओर से बिहार में किए शोध में पाया गया है कि राज्य के कई जिलों में भूजल में फ्लोराइड की मात्रा 2 से 10 मिलीग्राम प्रति लीटर है। जबकि भारतीय मानक ब्यूरो यानी बीआईएस के मुताबिक पानी में फ्लोराइड की मात्रा एक मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। वहां के निवासियों के खून व मूत्र की जांच के बाद पाया गया कि वहां बड़ी मात्रा में लोग फ्लोरोसिस से प्रभावित हैं।
फ्लोराइड की समस्या से मुक्ति दिलाने हेतु बिहार में अभियान चलाया जा रहा है। इस बारे में सफदरजंग अस्पताल की पीएमआर विभाग की प्रोफेसर डा० सुमन बघेल का कहना है कि बचाव ही फ्लोरोसिस का सबसे बेहतर इलाज है। जिस भी स्रोत से पानी या खाद्य पदार्थ में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा है, उसमें सुधार किया जाना चाहिए। पानी में ज्यादा मात्रा में फ्लोराइड है तो उसमें फिल्टर लगाया जाना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति में प्राथमिक स्तर पर बीमारी का पता चल जाता है तो एक्सरसाइज या दूसरे तरीकों से आसानी से उसका इलाज किया जा सकता है। डाक्टरों के मुताबिक कैल्शियम, मैग्नीशियम और विटामिन सी युक्त भोजन के अभाव में भी फ्लोरोसिस की आशंका बढ़ जाती है।
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को लें तो उत्तर प्रदेश में लखनऊ, रायबरेली, कानपुर, हरदोई, उन्नाव, सीतापुर, बाराबंकी, जौनपुर,मिर्जापुर, आगरा, वाराणसी सर्वाधिक फ्लोराइड प्रभावित जिले हैं। इन जिलों में फ्लोराइड की मात्रा मानक 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है। उत्तर प्रदेश का आगरा जिला तो ऐसा है जहां फ्लोराइड से दिव्यांगों की तादाद हजारों में है। सोनभद्र जिले के 296 से ज्यादा गांव के लोग फ्लोरोसिस के शिकार हैं और वहां हर साल सैकड़ों लोग फ्लोरोसिस से मौत के मुंह में चले जाते हैं। यही नहीं फतेहपुर जिले में गंगा-जमुना के बीच बसे चोहट्टा और चित्तिसपुर गांव के 50 फीसदी से ज्यादा लोग हड्डियों की कमजोरी और दांतों के पीलेपन के शिकार हैं।
दुनिया में फ्लोरोसिस दिन-ब-दिन सुरसा के मुंह की तरह फैलता जा रहा है। इसका अहम कारण पानी में फ्लोराइड की अधिकता है जिसके चलते लोग हड्डियों, दांत, किडनी आदि के अलावा शरीर की कई अन्य बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। दुनिया में 20 करोड़ और भारत में 6 करोड़ लोग इसकी चपेट में हैं जो इस रोग की विकरालता का सबूत है।विशेषज्ञों के अनुसार फ्लोरोसिस होने के बाद किसी भी व्यक्ति का सामान्य जिंदगी जीना मुश्किल हो जाता है। इसलिए कोशिश की जानी चाहिए कि फ्लोरोसिस होने ही नहीं दिया जाये। यह ध्यान देने वाली बात है कि यह केवल दूषित पानी से ही नहीं होता, पानी के अलावा भी बहुत सारी चीजों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ने से न तो रंग में कोई बदलाव आता है और न ही स्वाद में कोई अंतर ही आता है। ऐसी स्थिति में इसकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है। उनके अनुसार ज्यादातर जलस्रोतों में प्राकृतिक रूप से भी फ्लोराइड पाया जाता है। यह भूजल में चट्टानों के कटाव से भी आता है। यही नहीं आग या विस्फोट से पानी अत्याधिक गंदा होने से भी पानी में फ्लोराइड बढ़ रहा है।
यह बीमारी काफी खतरनाक है। सबसे बड़ी बात इसके बारे में लोगों में जानकारी और जागरूकता का अभाव इसका सबसे बड़ा कारण है। स्वास्थ्य के प्रति जाने-अनजाने में बरती गयी लापरवाही, बढ़ते जल प्रदूषण और भूमिगत जल के इस्तेमाल की विवशता ने इंसान को इस बीमारी के मुहाने पर पहुंचा दिया है। इस तथ्य को बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्व विद्यालय के शोध ने प्रमाणित कर दिया है। यह भी कि यह किसी भी उम्र में हो सकती है। समय पर यदि रोग की पहचान और इलाज न हो तो काफी मुश्किल हो सकती है। कभी-कभी मरीज की हालत काफी गंभीर हो जाती है। हालत यहां तक खराब है कि जहां-जहां पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है, वहां के लोगों की हड्डियां काफी कमजोर हो गयी हैं, रीढ़ सहित शरीर के दूसरे हिस्से की हड्डी टेडी़-मेडी़ हो गयी हैं, कम उम्र के बच्चों के दांतों में अधिक पीलापन आ गया है, उसमें छेद हो गये हैं या टूट गये हैं, हाथ-पैर आगे या पीछे की ओर मुड़ गये हैं, घुटनों के आस – पास सूजन हो गयी है, उनको झुकने या बैठने में परेशानी होने लगी है, जोडो़ं में दर्द है, पेट भारी रहने लगा है, कब्ज रहने लगी है, प्यास नहीं बुझती है या फिर वे किडनी के रोग के शिकार हो रहे हैं।
बच्चों में डेंटल फ्लोरोसिस के केस ज्यादा होते हैं। इससे उनके दांत कम उम्र में ही कमजोर हो जाते हैं। शरीर में पोटेशियम बढ़ने से कैल्शियम की कमी होने लगती है। नतीजतन बच्चों के दांतों में पीलापन, उसमें छेद, धब्बे और गैप आने लगता है।
फ्लोरोसिस से प्रभावित लोगों की तादाद वहां अधिक है जहां खासतौर से गर्म जलवायु है और वहां पानी की खपत जरूरत से ज्यादा है। उसमें भी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में वहां जहाँ के लोग खासतौर से हैण्डपंप या कुंओं का पानी के लिए इस्तेमाल करते हैं।
अक्सर लोग हड्डियों में दर्द को गठिया मान लेते हैं जबकि ऐसा नहीं है। ये लक्षण फ्लोरोसिस के भी होते हैं। सच कहा जाये तो फ्लोरोसिस एक कास्मेटिक स्थिति है जो दांतों को प्रभावित करती है। यह जीवन के पहले आठ वर्षों के दौरान फ्लोराइड के ज्यादा इस्तेमाल के कारण भी होता है। यह वह समय होता है जब अधिकांश दांत बन रहे होते हैं।
देखा जाये तो पानी में फ्लोराइड की मात्रा से देश के अधिकांश राज्य प्रभावित हैं लेकिन पांच राज्यों में इनकी तादाद सर्वाधिक है। वैसे आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश,पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्य भी भूजल में फ्लोराइड से प्रभावितों में शीर्ष पर हैं। यहां भी भूजल में फ्लोराइड का स्तर सर्वाधिक है। वैज्ञानिकों की मानें तो पानी के अलावा मिट्टी के साथ गेंहूं, चावल और आलू जैसी चीजें खाने से भी फ्लोरोसिस हो सकता है। इसकी वजह से देश में लाखों लोग हर साल इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। यही नहीं देश की राजधानी दिल्ली का उत्तरी-पश्चिमी इलाका, दक्षिणी-पश्चिमी और पूर्वी दिल्ली का इलाका, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में फरीदाबाद सहित कई इलाके भूजल में फ्लोराइड की मानक से भी ज्यादा मात्रा से पीड़ित हैं।
जरुरी है फ्लोरोसिस से बचाव हेतु एंटी आक्सीडेंट आदि की प्रचुरता वाला भोजन लें। विशेषज्ञों का मानना है कि हम फिल्टर करके पानी पियें। बारिश का पानी जमा करके पियें। इससे सुरक्षित भूजल का स्तर भी नहीं गिरेगा। खून की जांच करायें जिससे फ्लोराइड की मौजूदगी का पता चल जाता है। यदि पानी में फ्लोराइड की मात्रा 0.05 एमजी/1 है, तो यह सेहत के लिए खतरनाक है। इसलिए खून और पेशाब की जांच कराना बेहद जरूरी है। ऐक्सरे की मदद से स्केलेटल फ्लोरोसिस का पता लग जाता है। हमें खासकर हड्डियों का भी ऐक्सरे कराना चाहिए जिससे बीमारी का पता लग जाता है।
असलियत में कुलमिलाकर निष्कर्ष यह कि जागरूक रहना फ्लोरोसिस को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है। सबसे पहले आप अपने पानी के स्रोत का परीक्षण करें और अपने जलापूर्ति प्रदाता से फ्लोराईडेशन कानून के बारे में जानकारी करें कि कैसे फ्लोराइड आपके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। यह जानकारी मिलने पर कि आपके पीने के पानी में कितना फ्लोराइड है, तब आप अपने स्वास्थ्य के बारे में उचित निर्णय लेकर अपने जीवन की रक्षा कर सकते हैं।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।