रविवारीय: सलामी और सोशल मीडिया
– मनीश वर्मा ‘मनु’
सोशल मीडिया पर आए हुए प्रत्येक शुभकामना संदेशों का जवाब देते हुए अचानक शहर में नए नियुक्त पुलिस कप्तान का एक वाकया मेरे ज़ेहन में आया।
शहर में नए पुलिस कप्तान की पोस्टिंग होती है। पहली पहली नौकरी और साथ में जिले की कप्तानी। पहली बार जिला का प्रभार मिला है। नई नई नौकरी, वर्दी का रौब और तेवर का कहना ही क्या! ऐसा कुछ भी नहीं जो आपका आत्मविश्वास डिगा दे।
आत्मविश्वास से लवरेज व्यक्तित्व। बहुत कुछ कर गुजरने का माद्दा। व्यवहार में एक स्वाभाविक अक्खड़पन और सोंच में एक अल्हड़पन साफ झलकता था। छुपाने के तमाम कोशिशों के बावजूद। अगर हम इसे दो तीन शब्दों में समेटने की कोशिश करें तो कह सकते हैं : ” दुनिया मेरी जेब में “।
शायद व्यवहारिकता अभी सामने नहीं आई थी। अभी सामना होना बाकी था। वैसे भी जिंदगी एक अनुभव है और अनुभव कोई ऐसी चीज़ नहीं जिसे आप रातों रात अपने अधीन कर लें । समय तो लगता ही है । धैर्य और समय आपकी सबसे बड़ी पूंजी होती है। आपके सफलता के द्वार खोलती है।
कप्तान साहब ने नौकरी जहां से शुरू की थी वहां पहुंचने के पहले ही कितनों की नौकरियां दम तोड़ जाया करती है। कितने पायदान खाली रह जाते हैं। इसीलिए शायद व्यवहार कुछ और ही । कभी भी अनुभव बेचारा उतनी सीढ़ियां नहीं चढ़ पाया जहां आपकी पहली सीढ़ी होती है। विडंबना ही कहेंगे इसे आप।
खैर ! उसी शहर में एक बुजुर्ग दरोगा जी भी पदस्थापित थे , जो शायद इसी व्यवस्था में अंतिम पायदान पर खड़े थे ।पता नहीं उनके दिमाग में क्या चल रहा था । क्या हो गया था उन्हें।जब भी दरोगा जी के सामने कप्तान साहब आए या दोनों का आमना-सामना हुआ दरोगा जी ने अपने जूते पटक कर सैल्यूट नहीं बजाया । उम्र और अनुभव में एक कश्मकश चल रही थी। सैल्यूट बजाना चाहिए था । नौकरी कर रहे थे ।
“नौकरी न करी पर ना, ना करी? ”
आखिर पायदान का सवाल था।पर ,अंदर से नहीं हो पाया। दिल ने इजाज़त नही दी। शायद उम्र का तकाज़ा खुलकर सामने आ गया था ।कहीं ना कहीं उम्र ने ना चाहते हुए भी एक निर्णय सुना दिया । उचित है या अनुचित यह विषय हो सकता है। पर, नौकरी तो नियमों के दायरे मे ही होती है।
अब तो ऐसा अक्सर होने लगा। उम्र हमेशा जीतने लगी। अपरिपक्वता और उम्र के बीच एक द्वंद्व चलने लगा। आखिरकार, अनुभवहीनता सामने आ ही गई। कप्तान साहब के लिए बड़े जोरों का धक्का था यह। यह धक्का न बर्दाश्त करने के लायक था और ना ही माफी के लायक। बात ऊपर जानी थी सो गई। बड़े साहब के सामने शिकायत दर्ज कराई गई। दोनों ही तलब किए गए। शिकायत को गंभीरता से सुनने के बाद बड़े साहब के अनुभव ने ताड़ लिया कि आखिर माजरा क्या है। बात कहां पर अटक गई है।
आखिर, उन्होंने अपने बाल धूप मे तो सफेद नही किए थे। उन्होंने अपना फैसला सुनाया। कहा दरोगा जी ने गंभीर अपराध किया है। उन्हें इसकी सज़ा मिलनी चाहिए। अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जा सकती है। फैसला सुनाया गया- दरोगा जी अभी और इसी वक्त कप्तान साहब को सौ मर्तबा सैल्यूट करेंगे। बड़े साहब का फैसला जो ठहरा । बेचारे दरोगा जी शुरू हो गए । लगे दनादन सैल्यूट बजाने। कप्तान साहब को भी नियमानुकूल, आखिर सैल्यूट का जवाब तो देना ही था। बड़ा ही अद्भुत नजारा था।
कुछ ऐसा ही मामला होता है जब सोशल मीडिया पर आपको बहुत सारे शुभकामना संदेश आते हैं और आप इतने तंगदिल तो हो नही सकते कि बस एक पंक्ति लिखा और तमाम लोगों को एक साथ आभार प्रकट कर दिया। सभी की भावनाओं के साथ एक साथ खेल गए। व्यक्तिगत रूप से आभार तो प्रकट करना ही चाहिए। लोगों की भावनाओं की कद्र होनी ही चाहिए।
वैसे भी सोशल मीडिया ने कहां हमलोगों को सोशल रहने दिया है? ग़ुलाम हो गए हैं हम सभी। देखें इस गुलामी से कब हम आज़ाद हो पाते हैं।
Newly posted police kaptan & experienced Daroga ji ki bilkul satik warnan kiya hai Manu tum to abb har ek subject Mahir kathakar ho gaye ho iss field m Kafi tarakki karoge khuda tumhe sehatmand rakhe Ameen
भावपूर्ण अभिव्यक्ति