सैरनी से परिवर्तन-10: फदालेकापुरा ढाणी के दस्यु परिवार
– डॉ राजेंद्र सिंह*
फदालेकापुरा ढाणी चम्बल के खूण्डा गांव की छ: ढाणियों में से एक है। बाकी पांच ढाणी हैं संडनकापुरा, बल्लापुरा, खूटियनकापुरा विरानेकापुरा, और रामाकापुरा। कुल मिलाकर यहाँ 180 परिवार रहते हैं। खूण्डा गांव मासलपुर से 12 कि मी दूरी पर स्थित है। इस गांव में सैरनी नदी तीनों ओर से गुजरती है। यहाँ सैरनी नदी 2016 से पहले दीपावली के बाद सूख जाती थी और गांव में रोजगार सिर्फ खनन कार्य रहता था। पशुपालन, मजदूरी, वर्षा आधारित खेती होती थी, आज बारह माह बहने वाली नदी बन गई है।
फदालेकापुरा ढाणी में पांच परिवार रहते हैं। यहां रहने वाली असरफी के पति दो सगे भाई थे जो खेती नहीं होने के कारण लूटपाट करते थे। यह दोनों डकैती करते समय ही मर गये।
असरफी के छोटे-छोटे बच्चे थे और उसके पति के भाई के बड़े लड़के थे, वे भी हिंसात्मक कार्यों में लगे रहते थे। उसके परिवार में रोजीरोटी का बहुत बड़ा संकट था और वो पशुपालन से अपने परिवार को चलाती थी। सात महीने गांव में रहती और पांच महीने अपनी मायके पशुओं को लेकर चली जाती थी। साथ में बच्चों को ले जाती और वर्षा होने पर आषाढ़ के महिने में वापस आती थी। इस तरह उसने 2007 तक अपना जीवन चलाया।
पहली बार असरफी ने तरुण भारत संघ के मरदई मोड़ पर हुए किसान सम्मेलन में भाग लिया था। तरुण भारत संघ के कामों से प्रेरित होकर नहार के नाले की पोखर बनाने का प्रार्थना पत्र दिया। उसने बताया, “मेरा प्रार्थना पत्र स्वीकार करके, तरुण भारत संघ के वर्षा के पहले मेरी पोखर बना दी थी। पोखर में पानी आया तो मेरे पास की दस बीघा जमीन पर खेती करने लगी हूँ। चार बीघा में गेहूं किया था, जिसमें पचास क्विंटल हुआ एवं छः बीघा में सरसों जिसमें तीस क्विंटल हो जाती है।”
असरफी के भतीजा भूरा सिंह ने कहा कि पहले वो गलत कार्य करने में लगा रहता था लेकिन पानी होने से अब खेती कर रहा है। सण्डनकापुरा निवासी सरदार ने कहा कि पहले वह लूटपाट का कार्य करता था। अब तरुण भारत संघ के सहयोग से पीपल वारा ताल बनवाया है, जिस वजह से भूरा के सभी पांच भाइयों के पास 200-200 मन अनाज हो जाता है और बारह माह ताल में पानी रहता है। इस तरह अब नदी से पूरा गांव पानीदार है व सभी पानी की बचत करते हैं।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।