सैरनी से परिवर्तन -2: महाराजपुरा ने हिंसक आर्थिकी को अहिंसक पारिस्थिति की सेवा से बदला
– डॉ राजेंद्र सिंह*
जब सैरनी नदी सूख गई थी, तब उसके उद्गम गाँव महाराजपुरा, भूडखेड़ा, दाउदपुरा, अरोंदा, बल्लापुरा, खूंडा, कोरीपुरा सबसे ज्यादा लाचार, बेकार थे। सबसे पहले इन्हीं गाँवों में तरुण भारत संघ ने जल संरक्षण का काम आरंभ कराया, जिससे खेती और पशुपालन भी शुरू हुआ। पहले केवल बरसात के दिनों में ही लोग गाँव में रहते थे।
अब यहाँ के युवा फरारी से मुक्ति हेतु अदालत में जाकर मुक्त होने लगे। महाराजपुरा गांव में पूरे साल रहकर खेती करने लगे। आरंभ तो कार्यकर्ताओं को भी डराने-धमकाने से हुआ था। मेरे साथ श्रवण, गोपाल सिंह, चमन सिंह, छोटेलाल मीणा आदि को बार-बार अपने साथ लेकर गए। जिससे इनका भी प्रशिक्षण होता रहा। इन्होंने अपना पूरा प्यार और सम्मान महाराजपुरा के समाज को दिया। पानी और प्यार ने इस क्षेत्र में एक अलग प्रकार से विश्वास कायम किया। तरुण भारत संघ का प्यार अब विश्वास बनने लगा। इससे जल संरक्षण की समृद्धि का अहसास आया, तब ही सैरनी के हिंसक शेरों को अहिंसक बनने का आभास हुआ।
सभ्यता और संस्कृति का आधार सैरनी ने बनाया है। महाराजपुरा के रामनरेश कहते है कि, जल, जीवन और जीविका से जमीर का आभास होते ही हिंसा छोड़ना शुरू हुआ। इन्हें लगा कि हम पर पुलिस ने जो केस दायर किया है उन्हें स्वीकार कर जल्दी मुक्त होना अच्छा है। एक मुक्ति से पूरा गाँव अपराध मुक्त हो गया। ऐसी बहुत सी घटनाएँ थी, जो एक की फरारी की सजा पूरे गाँव को भुगतनी पड़ती थी।
जल ने इन्हें जीवन तो दिया, हमारी जीविका में खेती -पशुपालन से उत्पादन भी बढ़ा दिया है। इसने इनके जीवन में प्रेम भाईचारा और आनंद से जीवन जीना भी सीखा दिया है। अब ये सभी एक-दूसरे का ख्याल रखते है और एक-दूसरे को अपने प्यार से सींचते और आनंद बांटते है। अब लड़ाई की मार-काट को भूलकर आपस में प्यार से बातें करके मोहब्बत बाँटना सीख गए है। यह सभी कुछ इन्हें जल ने सिखाया है। पहले तो तालाब बनाकर,जल इक्ट्ठा किया, फिर सभी को जल मिलने लगे, इस हेतु तरुण भारत संघ के पाइप-फब्बारे लाकर कम जल खर्च करके, अधिक उत्पादन करना सीख गए।
“हमारा अधिक उत्पादन किसी का छीन-छपाट कर नहीं, जल से धरती सींचकर ले रहे हैं। जब जल आया तो प्यार से पैदा करना भी सीख लिया है, तो प्यार से पैदा करना भी सीख लिया है। यह सीख सब के भलाई के लिए है,” रामनरेश ने कहा ।
महाराजपुरा का कुंवर पाल सिंह कहता है कि जल आया तो जीवन में बहार और खुशहाली आ गई, पहले तो गेहूँ का दाना तक नहीं होता था। एक-आध मण बाजरे के दोने हो जाते थे। यहीं तिल-अरहर कुछ भी पैदा नहीं होता था। अब के तीन सौ मण गेहूँ, जौ, सरसों से घर भर गया है।
जब घर खाली था तो, हमारे दिल दिमाग भी खाली थे। उसमें प्यार-संतोष के लिए जगह नहीं थी। खाली पेट-खाली दिल-दिमाग को कुछ सूझता ही नहीं था। जब पेट को अन्न-पानी मिला तो हमारे दिल-दिमाग ने भी विचार करना शुरू किया, तो फिर तो हम हिसाब अपनी उंगलियों पर रखने लगे।
“आज-कल अच्छे-बुरे का हिसाब रखना हम सीख गए हैं। इस समझ ने मुझे मेरे गाँव को जोड़ने की समझ शक्ति दी। उन्होंने काम करने के लिए श्रम साधन जुटाने की शक्ति मुझे मिली। मेरा गाँव पानीदार, इज्जतदार और मालदार बना तो इसे देखकर भूड़खेड़ा, कोरीपुरा आदि गाँवों को भी इसी रास्ते पर चला दिया,” कुंवर पाल सिंह ने कहा।
रामवीर बराना ने बताया कि उनकी पोखर देखकर, सभी लोग पानी बचाने में जुट गए हैं – “मेरी पोखर ने मेरा घर अन्न-जल से भरा, फिर तो पूरा गाँव अब अन्न जल से भर गया है। सभी मालामाल बन गए हैं। अब लूट-पाट क्यों-कहाँ किसी की क्यों होगी? जब सब के पास जीने-खाने-पीने के लिए होता है, तब लूट-पाट रूक जाती है,तब तो कोई रावण बनकर, सब पर कब्जा करने के लिए डकैती करता है। यहाँ रावण नहीं, राम की औलाद है। जो हम पर है, उसमें हम सभी आनंदित है। श्रम से सराबोर होकर धरती, प्रकृति का प्रेम पाकर समृद्ध बन रहे हैं। अब हमारे क्षेत्र में भी चोरी-चकारी करने वाले भी नहीं है। खुले द्वार सोते-जागते है।”
कुंवरराज, रामसहाय, रामस्वरूप और शंभू चारों एक आवाज में बोले, “क्या बात है, गांव के कुएँ से हाथ से पानी निकालकर पीते है। गाँव के ताल से बिना डीजल, बिजली खर्च किए। साइफन विधि से पानी निकालकर खेतों की सिचाईं होती है। हरा-चारा ईधन पानी सभी कुछ हमारे गाँव में है।”
बीर-बनियों का श्रम कष्ट तो अब खत्म हो गया है। सभी मजे से रहती हैं। पहले तो दिन भर पानी लाने में ही बीत जाता था, अब तो घर में ही पानी आ गया है। बनियों की मौज हो गई है। बालक-बालिकाएँ सब ही लड़के-लड़कियों स्कूल में जा रहे हैं। पहले जब स्कूल में पानी नहीं था, तो कोई स्कूल भी नहीं जाता था। आजकल तो सभी स्कूल जाते हैं। बालको की भी मौज हो गई है।
सरूपी कहती है कि महाराजपुरा में दुलैया ने बहुत अच्छा काम करने के लिए लोगों को तैयार करने का काम किया था। यह सैरनी का काम किया था। “वह तो मारा गया और स्वर्ग सिधार गया लेकिन गाँव में पानी आने से मेरा जीवन सुधर गया।” यह महाराजपुरा के दुलैया की समदन है। यह सैरनी का काम रिश्तेदारियों के जाल से पूरा हुआ था, इसलिए यहाँ की आर्थिकी भी पारिस्थितिकी सेवा व सामुदायिक सेवा ही रही है।
श्रीबाई कहती है: “जब से गाँव में तरुण भारत से ताल बना है हमने तभी से जीवन जीना शुरू किया है। हमारा जीवन तो नरक समान था। अब यह स्वर्ग समान है। हमने तो स्वर्ग अपने जीते जी, अपने गाँव में ही देख लिया। जीवन की जरूरत घर में ही पूरा होने लगी। अब लड़ाई-झगड़ा नहीं है। प्रेम और प्यार हमें पूरे गाँव का मिल रहा है। सभी कहते है कि, चमन सिंह और रणवीर सिंह ने गाँव में अच्छा काम करा दिया है।”
मीरा देवी महाराजपुरा ने कहा, “साब अब तो म्हारे गाँव में सब कुछ होगा, अब कोई कमी कोनी। घर में पाणी तरुण भारत संघ ने करा दिया, खेत में ताल से महाराजपुरा गांव मालामाल बन गया।”
महाराजी बोली कि पहले तो बस पानी के इंतजाम करने में ही लगे रहते थे। अब तो कहीं-कभी जाने की जरूरत कोनी। सभी कुछ सब्जी, पूरी,दूध, दही का खाना महाराजपुरा में होगा। पहले तो इस गाँव में कुछ नहीं मिलता था। मीनेश देवी ने कहा कि, अब तो घर का कोठी-कुढ़ला सब नाज से भरोडो है। अब कोई कमी कोनी, दूध-दही सभी कुछ है।
संता देवी केघर में अब पाणी की कमी नहीं। ईधन,चारा भरपूर गर्मी में भी हरी-भरी शिम-रिजका सभी कुछ है। भैंस खूब दूध देती है। इधर घी का पैसा तो हमारे पल्लू का पैसा है। पाणी से अब हमारे पल्लू में भी पैसा रहता है। पहले तो हमें पैसा देखने को मिलता भी नहीं था। अब तो हम अपनी बेटी को भी कुछ दे सकते है। “महाराजपुरा तो अब महाराज बन गया है। पहले गाँव का नाम तो महाराजपुरा था। कंगाल था, गर्मी में तो गाँव में कोई रहता ही नहीं था। सभी गाँव खाली करके, चले जाते थे। अब तो हमारा गाँव बारह महिनें हरा-भरा है। गाँव का पानी गाँव के खुशहाल रखता है,”संता देवी बोली। लक्ष्मी बोली कि, अब म्हारे गाँव में सब तरह लक्ष्मी ही लक्ष्मी दिखती है। पाणी आया तो गाँव में लक्ष्मीबास हुआ। पाणी नहीं था तो लक्ष्मी नाम नहीं था। गाँव में पाणी आया तो लक्ष्मी आ गई। पहले इस गाँव के ज्यादातर छोटे (लड़के) बिना विवाह के कुंवारे रहते थे, अब तो एक भी कुंवारा दिखाई नहीं देता। अब सभी महाराज बने घूमते है और हम भी महाराणी बन रही है। महाराजपुरा का एक ताल ही महाराज बना दिया है, अब तो सब नये-नये खेत बनाने में जुटे है। पत्थरों पर मिट्टी, डालकर नए खेत बना रहे है, जितने में खेत बना, उतना एक-दो साल में ही फ्री का पाणी मिलने से पैदा हो जाती है।
रामनरेश महाराजपुरा ने बोलते हुए कहा कि, हम दिन-रात डरते रहते थे, अब हम अपने गांव के शेर बन गए है। हम अब न ही किसी से डरते है और न ही डराते है। अभी तो दिन-रात अपने खेत घर के खेत के काम इतने ज्यादा हो गए है अपने कामों से सांस ही नहीं मिलता है। हमारे पास खाने के लिए खूब है, दूसरों को भी 10-20 लोगों को खिलाने की ताकत आ गई है। जब पाणी नहीं था, तो काम नहीं था, इसलिए मरते क्या नहीं करते। हम लोगों में सबको भला करने का विचार पानी लेकर ही आया है। पानी बिना यह विचार तक नहीं था। पानी से पहले तो लूट-पाट ही सूझती थी। मरना-मारना ही लगा रहता था। अब सभी कुछ छूट गया है, अब हम मुक्त है।
गांव को हिंसा मुक्त पारिस्थितिकी सेवा तालाब निर्माण, जंगल और जंगली जानवर बचाकर, धरती की हरियाली बढ़ाने का काम हुआ। इस काम ने न केवल महाराजपुरा को समृद्ध बनाया बल्कि पूरी नदी पुनर्जीवित हो उठी। जब यह सैरनी सरिता सूखी थी, तभी इस गाँव की सभ्यता भी मर सी गई थी। महाराजपुर गाँव के काम से सैरनी शुद्ध-सदानीरा बनकर, बहने लगी तो हिंसा खत्म और अहिंसा, सत्य सदाचार पनपने लगा। जल से खेती व खेती से हरियाली ने धरती का बुखार उतार दिया। जलवायु परिवर्तन अनुकूलन व उन्मूलन आरंभ हो गया।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।