रविवारीय: अलविदा उस्ताद!
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब, आप जहां भी हों, हमें यकीन है कि आप अपनी ताल और सुरों से उस दुनिया को भी रोशन कर रहे होंगे। आप हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे। आपकी उंगलियों से तबले पर निकलने वाली ताल और स्वर जैसे सीधे दिल तक पहुंचते थे। कभी किसी गायक या वादक के साथ संगत करते हुए, तो कभी अकेले अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए, आपने हर बार दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। आपकी उंगलियां जैसे तबले पर नृत्य करती थीं और हर ताल एक नई कहानी कहती थी।
ज़ाकिर हुसैन साहब की शख्सियत में एक ऐसा आकर्षण था, जिसने मुझे हमेशा उनकी ओर खींचा। जब भी उनका कोई कार्यक्रम टीवी पर आता, मैं उसे देखने से खुद को रोक नहीं पाता। चाहे मैं उनके तबले की बारीकियों को समझूं या नहीं, उनके वादन का आनंद लेना मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव होता। इसके बावजूद कि क्लासिकल संगीत से मुझे कोई विशेष लगाव नहीं रहा।
15 दिसंबर 2024 को उनके निधन की खबर सुनकर दिल एकदम से सुन्न हो गया। ऐसा लगा जैसे संगीत के आसमान से एक चमकता हुआ सितारा टूटकर बिखर गया हो। अचानक उनका यूं चले जाना, यह सोचने पर मजबूर करता है कि शायद ईश्वर भी अच्छे इंसानों को अपने पास ही रखना चाहते हैं।
उनका जादू कुछ इस तरह सर चढ़ कर बोलता था कि जब भी घर के लिए चाय ख़रीदने की बारी आई, मेरा हाथ हमेशा ताजमहल चाय के डिब्बे पर ही गया। यह असर था “वाह ताज” कहने वाले ज़ाकिर साहब का, जिनकी आवाज़ और शख्सियत ने ताजमहल चाय को एक अलग पहचान दी। वाह उस्ताद! “अरे हुज़ूर, वाह ताज बोलिए!” – ताजमहल चाय के इस ऐतिहासिक विज्ञापन का जादू आज भी मेरे दिलो-दिमाग़ पर ताज़ा है। ईमानदारी से कहूँ तो इस विज्ञापन से पहले ना मैंने ताजमहल चाय के बारे में सुना था, ना ही ज़ाकिर हुसैन साहब के बारे में। मैं चाय का शौकीन नहीं, फिर भी लेकिन इस अद्भुत और प्रभावशाली विज्ञापन ने मुझ जैसे अनगिनत लोगों को न केवल ताजमहल चाय बल्कि ज़ाकिर हुसैन साहब की शख्सियत से रूबरू कराया।
ज़ाकिर हुसैन साहब जैसे लोग बार-बार जन्म नहीं लेते। उनकी कला, उनका व्यक्तित्व, और उनकी मुस्कान सब कुछ अद्वितीय था। पता नहीं उन्हें ऐसी कौन सी बीमारी हो गई थी जिसकी दवा हम आज़ तक ढूंढ नहीं पाए हैं।
ख़ैर! ये सब दिल को बहलाने वाली बातें हैं। जिंदगी एक सफ़र है और मौत मुकाम है , प्रारब्ध है ! हम सभी निमित्त मात्र हैं।
बस यह सोचकर दिल को तसल्ली मिलती है कि उन्होंने सिर्फ शरीर छोड़ा है, उनकी आत्मा, उनकी कला, उनकी खुशबू आज भी हमारे बीच ज़िंदा है। पर यह तो हमारा दिल कह रहा है जो शायद दिमाग़ को मंजूर नहीं।
अलविदा उस्ताद!
We miss Jakir Hussain sahab alias “Table ka Jadugar”.