रविवारीय: वेलू और राजमाता
एक दिन की बात है कि किसी प्रसंगवश कंपनी के मालिक के लड़के ने जिसकी उम्र लगभग छः या सात वर्ष की रही होगी, राजमाता की उपस्थिति में ड्राइवर वेलु को वेलु अंकल कह कर संबोधित कर दिया। शायद कुछ भी ग़लत नहीं हुआ। वेलु अंकल, उस बच्चे ने बिल्कुल सही संबोधन दिया कंपनी के ड्राइवर वेलु को। दोनों ही के उम्र के बीच के फासले को देखते हुए यह लाज़िमी भी था। वैसे ज्यादा उचित तो वेलु बाबा होता। आखिरकार वेलु उसके बाबा के समकालीन जो ठहरा। पर, यहां तो सभी कुछ औपचारिक था। अनौपचारिकता की जगह नहीं बनती थी।
कंपनी की राजमाता- जी हां उन्हें राजमाता संबोधित करना ही शायद ज्यादा उचित होगा। भाई, आज के कंपनी के मालिक की मां जो ठहरीं। खैर! अब आप राजमाता की त्वरित प्रतिक्रिया सुनें जो उन्होंने सार्वजनिक तौर पर, सबके सामने अपनी भौंहें तरेरते हुए दिया – ‘ वेलु अंकल नहीं! वेलु कहो!’
किसी शख्स ने कभी मुझे यह वाकया सुनाया था। वह व्यक्ति कारपोरेट में एक अच्छे ओहदे पर है। अच्छी तनख्वाह है। काम का दबाव है, पर एक अच्छी तनख्वाह आपके बहुत सारे दुखों को काफी हद तक दूर कर देती है। परिवार और बच्चों का सुकून आपके जीवन की प्राथमिकताएं बन जाती हैं। बदले में आप काफी कुछ छोड़ जाते हैं। यूं कहें छोड़ते जाते हैं।बहुत कुछ आपसे ले लिया जाता है। जिसका पता शायद आपको ताजिंदगी ना चले, क्योंकि आपने कभी अपने बारे में नहीं सोचा। कभी जगह नहीं दिया अपने आप को। आपके पास इन फालतू बातों के लिए शायद वक्त नहीं था। आपने तो अपने आप को एक मशीन मान लिया था। आपका दिल – दिमाग यहां तक कि पुरा शरीर चौबीसों घंटे एक मशीन की तरह अनवरत काम कर रहा था।
खैर, चलिए मुद्दे पर आते हैं।
जिस कंपनी में वो व्यक्ति काम किया करता था, यह ड्राइवर ‘ वेलु ‘ उसी कंपनी का एक पुराना मुलाजिम, एक हुआ करता था। उम्र यही कोई करीब पचपन साठ के आसपास की रही होगी। वेलु ने बतौर ड्राइवर अपनी सेवाएं कंपनी के तत्कालीन मालिक को तो दी ही, आज के मालिक की सेवा में भी वह व्यक्ति दिलों जान से लगा हुआ था। कंपनी के तमाम कर्मचारी उसकी उम्र और व्यवहार कुशलता को देखते हुए उसकी बड़ी इज्जत किया करते थे।
पर उसके साथ उस दिन राजमाता का बर्ताव! आखिर क्या बताना चाहतीं थीं वो? यही ना कि वे या फिर उनका परिवार एक विशेष वर्ग का है…” वी आर बॉर्न टू रूल”…
बेचारा कर्मचारी तो इसे अपनी नियति ही मानता है। उसे शायद कोई फ़र्क भी नहीं पड़ता है। ऐसे व्यवहार की उसे आदत सी पड़ चुकी होती है। स्पंदन ख़त्म हो चुकी होती है उसकी। बस चेहरे पर एक हल्की सी खिसियानी हंसी के साथ सब कुछ भूल जाता है वो, गोया ऐसा की कुछ हुआ ही न हो।
कभी-कभी लोगों की मानसिकता पर तरस आता है। कैसी सोच है उनकी। क्या कहेंगे ऐसी मानसिकता को आप। ऐसा नहीं लगता है कि ऐसी सोच रखने वाले लोग कहीं न कहीं मानसिक विकृती के शिकार हैं।
आप जो भी करते हैं, जैसा भी व्यवहार करते हैं, कहीं न कहीं यह आपकी विरासत है।अगर थोड़ा बढ़कर बोलें, तो कह सकते हैं कि बड़ा ही ‘इनहयूमन अप्रोच’ है। एक अलग ही नजरिया है लोगों को देखने का। आपको ऐसा लगता है कि आप इस सोच, इस नजरिए के साथ आगे बढ़ सकते हैं। जीवन में तरक्की के साथ ही साथ बहुत कुछ पा सकते हैं।
पर, यह भूल है आपकी। आप भ्रम में जी रहे हैं। इस तरह की मानसिकता और सोच कभी भी आपको एक तय मुकाम से आगे बढ़ने ही नहीं देगी। जहां पूर्ण विराम लगना चाहिए था, उससे बहुत पहले ही लग गया। आपको लगेगा कि आपने जीवन में बहुत कुछ हासिल कर लिया है, पर शायद आप दृष्टि दोष के शिकार हैं। आपने क्या खोया या कहें खो दिया, आप नहीं देख पा रहे हैं।
सार्वजनिक तौर पर आपका रहन सहन, आपके काम करने का तरीका, आपके बात करने का तरीका, यह आपका अपना मनोविज्ञान है। हर व्यक्ति अपने मनोविज्ञान से ही बंधा होता है। और मनोविज्ञान का एक चरित्र के रूप में विकसित होना, कोई एक दिन की बात नहीं। इतिहास गवाह है जीवन में आगे बढ़ने के लिए, बहुत आगे बढ़ने के लिए आपको अपनी सोच और मानसिकता में परिवर्तन लाना ही होगा। अपनी मानसिकता और सोच को एक नया आयाम देने की जरूरत है।
यथार्थ का पूरी संजीदगी और संवेदना के साथ शिक्षापूर्ण संदेश भरा चित्रण 🙏
सर आज रिश्ते का मोल ओहदा का है, सगे रिश्ते भी दूर हो रहें हैं……. पर उस अबोध बालक के मन में न जाने क्या क्या विचार आया होगा……. 🙏🙏
Some people who think themselves great,we can not change that person’s mindset.