रविवारीय: सितंबर की बारिश
– मनीश वर्मा’मनु’
सितंबर की बारिश या यूं कहें भादो और अश्विन माह की बारिश! इसे मानसून की अंतिम बारिश भी कहते हैं। सितंबर भारत में मानसून का अंतिम महीना होता है। सितंबर की बारिश के खत्म होते ही ठंड का अहसास होने लगता है।
सितंबर की बारिश भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फसलों की सिंचाई के लिए बहुत ही उपयोगी है। साथ ही साथ सितंबर की बारिश से नदियों और झीलों में पानी भर जाता है, जिससे सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति होती है।
लगे हाथों एक बात और। अश्विन माह के अंत में हथिया नक्षत्र जो 27 नक्षत्रों में 13वां नक्षत्र होता है। इसे हस्त नक्षत्र भी कहा जाता है। इस नक्षत्र का किसानों के लिए विशेष महत्व है। इस नक्षत्र में होनेवाली बारिश फसलों के लिए बहुत ही लाभदायक होती है।
सितंबर की बारिश भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मौसमी घटना है। इसे वही समझ सकता है जिसने गांव में कुछ दिन गुजारा हो। खेती को करीब से देखा हो। मैं ठहरा शहरी व्यक्ति। शहर में पला बढ़ा, कभी गांव में रहा नहीं। खेत और खेती मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर की तरह है। मैं कहां से जानूं सितंबर की बारिश का महत्व? वैसे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है। बस, बारिश होनी चाहिए वर्षा ऋतु में। मेरे लिए यह एक अन्य मौसम की तरह ही है। मैं तो बस उतना ही समझता हूँ जितना सोशल मीडिया मुझे समझा देती है। वैसे मैं जिस समुदाय से ताल्लुक रखता हूं, वो ज्यादातर शहर में ही पाई जाती है। यह दुखद है।
आप कह सकते हैं। भारत की आत्मा गांवों में रहती है। अब तो खैर इच्छा बहुत होती है, पर वर्तमान समीकरण आपकी इच्छा पर हावी हो जाता है। यह भी दुखद है। खैर, हम लोग कहीं ना कहीं विषय से भटक रहे है। वाक़या कुछ ऐसा है कि मेरे कार्यालय में मेरे अधीनस्थ एक कर्मचारी ने मेरे घर से कुछ ही दूरी पर अपने लिए एक फ्लैट लिया है। चूंकि, एक ही जगह हम दोनों को जाना होता है, तो अक्सर वो मेरी ही गाड़ी में मेरे साथ ही कार्यालय आते-जाते हैं।साथ-साथ आते-जाते हुए, कुछ दीन-दुनिया की बातों में घर से कार्यालय तक का लगभग दस किलोमीटर का सफर आराम से कट जाता है।
बुधवार की बात थी। प्रखर धूप निकली हुई थी। उमस भी काफी थी। उसने कहा, सर ! बारिश नहीं हो रही है। इस समय होनी चाहिए। नहीं तो, धान के पकने का समय है, बुरा असर पड़ेगा क्योंकि धान के पकने के समय पानी उपर से पौधों पर पड़ना बहुत जरूरी है। मैंने आपसे पहले ही कहा कि मेरे लिए इन सारी बातों का कोई खास मतलब नहीं है। पर उसकी बातों को सुनकर मैने सिर्फ उसका मन रखने के लिए कह दिया। अभी वक्त है। एकाध दिन में बारिश होनी चाहिए।
खैर, गुरुवार को सुबह कार्यालय जाने समय वह काफी प्रफुल्लित था। कहा, सर देखिएगा आज सुबह से ही पुरवा हवा चल रही है। आज बारिश जरूर होगी। वाकई, दिन भर झमाझम बारिश हुई। बारिश होते देखकर उसका खुशियों भरा चेहरा देखने लायक था। मैंने तो घाघ एवं भडुरी के बारे में किताबों में पढ़ा था। यहां तो हर व्यक्ति जो गांव से जुड़ा है, खेती कर रहा है, अपने आप में घाघ से कम नहीं है।
उसका खुशियों से भरा हुआ चेहरा देखकर मुझे आभास हुआ कि हम शहरी लोगों ने कभी इस बारे में सोचा है कि किस मुसीबत, जतन से किसान अन्न उपजाता है? कितनी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं उसे? मौसम का कितना महत्व है। हम तो बस यही समीकरण बैठाने में मशगूल रहते है कि अगर उपज कम हुआ तो एक दो रुपए ही तो ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे।
यह कहना बिल्कुल सही है कि भारत की आत्मा गांव में रहती है। हम सभी जानते हैं पर प्रत्यक्ष रूप में इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। हमारी ताकत है यह जितनी जल्दी इसे समझ लें, व्यक्ति, समाज और देश हित में अच्छा होगा।
भारत की आत्मा इन दिनों भटक रही है । वह अब गांव में नहीं रहना चाहती है क्योंकि सब कुछ काफी कलुषित हो चुका है । शहरीकरण के घोर दवाब और प्रक्षण्ण प्रभाव में गांव भी अब घुट रहे हैं । हम एक भयंकर दोगली संस्कृति की चंगुल में जिए जा रहे हैं ।