रविवारीय: रामटेक के गड़ मंदिर की यात्रा
नागपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर, नागपुर – जबलपुर राष्ट्रीय उच्च मार्ग संख्या सात पर मानसर से एक रास्ता बाईं ओर जाता है, जहां से लगभग सात से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामटेक एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक तीर्थस्थान है। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर सिंधुरागिरि पहाड़ी और अपने हरे – भरे पेड़ – पौधे और प्रभू श्रीराम की मंदिर के वजह से मशहूर है। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर से रामटेक शहर को निहारते रहना एक बड़ा ही सुखद अहसास होता है।
रामटेक की पहाड़ी पर स्थित गड़ मंदिर प्रभु श्रीराम का मंदिर है । पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि प्रभु श्रीराम अपने वनवास के दौरान यहां पर रुके थे। इस बात का उल्लेख वाल्मीकि रामायण और पद्मपुराण में भी मिलता है। रामटेक की इसी पहाड़ी पर महर्षि अगस्त्य मुनि का आश्रम था। कहा जाता है कि महर्षि अगस्त्य मुनि द्वारा यही पर प्रभु श्रीराम को ब्रह्मास्त्र दिया गया था।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार प्रभु श्रीराम ने यही पर राक्षसों का संहार करने का की प्रतिज्ञा प्रभु श्रीराम ली थी। इसी वजह से वर्तमान में इस जगह को रामटेक नाम से जाना जाता है और शायद यह एक महत्वपूर्ण वजह रही होगी इस शहर का नाम रामटेक रखने में।
रामटेक मंदिर के पूर्व दिशा में एक नदी बहती थी जो आज खींडसी लेक के नाम से जानी जाती है। इस लेक और इसके आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठाने के लिए यहां दूर – दूर से आने वाले पर्यटकों का तांता लगा रहता है।
रामटेक स्थित पहाड़ी पर किलानुमा बना प्रभु श्रीराम का प्राचीन मंदिर है जिसे देखने और प्रभु श्रीराम का दर्शन करने देशभर से श्रद्धालु रामटेक आया करते हैं। कहा जाता है की किले के रूप में मंदिर का निर्माण उस समय के राजा रघुजी भोंसले द्वारा कराया गया था, जो १८वी शताब्दी में नागपुर के मराठा शासक थे। उन्होंने छिंदवाड़ा में देवगढ़ के दुर्ग पर विजय प्राप्ति के बाद यहां प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनवाया था। मंदिर के निर्माण में पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है जिन्हें बस एक के ऊपर एक रख दिया गया है। प्रभु श्रीराम के मंदिर की मजबूती पर शायद प्रभु की ही कृपा है।
प्रभु श्रीराम के मंदिर के अलावा यहां श्री लक्ष्मण स्वामी का भी एक अलग से मंदिर है। साथ ही साथ यहां पर प्रभु श्रीराम के दूत हनुमान जी का भी मंदिर है। भगवान श्री कृष्ण को समर्पित राधा-कृष्ण का भी एक मंदिर इस किले में स्थित है।
रामटेक में प्रभु श्रीराम के इस मंदिर के अहाते में कदम रखते हुए ऐसा मालूम पड़ता है कि आप मंदिर में नहीं किसी किले में प्रवेश कर रहे हैं। मंदिर के बाहर एक वराह मंदिर है। वराह को भगवान् विष्णु का अवतार भी माना जाता है। प्रभु श्रीराम की पूजा के लिए यहां पर कमल का फूल लोग खरीदते हैं। मंदिर के प्रांगण में आपके कदम जैसे ही पड़ते हैं आपका सामना काले मुंह और लंबी पूछों वाले लंगूरों से होता है। इनकी नजरों से कमल के फूल को बचा पाना बड़ा ही मुश्किल काम है, पर एक बात है ये लंगूर आपके हाथों से प्रसाद चढ़ाने के लिए ले जा रहे सामान को बिल्कुल नहीं छूते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि यहीं पर महाकवि कालीदास द्वारा मेघदूत नामक महाकाव्य की रचना की गई थी। कविकुलगुरू कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय रामटेक में ही स्थित है।
रामटेक स्थित इन्हीं पहाड़ियों के नीचे अंबाला नामक एक तालाब है। इस तालाब के बारे में कहा जाता है कि इस तालाब में स्नान करने से कुष्टरोग से ग्रसित राजा का कुष्टरोग ठीक हो गया था। इस कुंड का जल लोग आज भी गंगा जैसा पवित्र मानते हैं और इसे पीने के लिए साथ लेकर जाते है।
साल में एक बार रामनवमी पर यहां भव्य आयोजन किया जाता है। उस वक्त पुरे रामटेक शहर में एक उतसवी माहौल देखने को मिलता है। पुरा रामटेक शहर प्रभु श्रीराम के नाम से गुंजायमान रहता है। शनिवार और रविवार को यहां पर आने वाले भक्तों के लिए नि: शुल्क महाप्रसाद की व्यवस्था है। उस दिन लगभग डेढ़ से दो हज़ार लोग यहां नि: शुल्क भगवान् का महाप्रसाद ग्रहण करते हैं।
Tumhare Nagpur visit ka khoobsurat gift pathakon k liye waqai mujhe to Ramtek mandir k bare m jankari nhi thhi aaj phir tumhare Sunday column se ek important jankari mili bahut abhar tum issi tarah apni lekhni challte raho aur citizens ko important jankari available karate raho
Gajab….
Bahut sundar prastuti sir.