रविवारीय: एक था मफ़िन
– मनीश वर्मा ‘मनु’
मफ़िन नहीं रहा। कोई संबंध नहीं था उन सभी का उससे। पर बड़ा ही क़रीब का रिश्ता था। एक दूसरे की भाषा समझते थे वो। किसी भी प्रकार की कोई दीवार उनके बीच नहीं थी। ना ही भाषा की और ना ही मज़हब की।
उनके परिवार का वो एक अहम हिस्सा था। जब वो बीमार पड़ा तो रात और दिन का फ़र्क मिटा कर, उन्होंने उसकी सेवा की। अपनी खाने पीने की सुध नहीं थी उन्हें। बस फ़िक्र थी तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मफ़िन की। कैसे करके भी ठीक हो जाए। बातें करने लगे दोबारा उनसे जैसा वो पहले करता था।
पर, मफ़िन था कि बिल्कुल ही गहरी नींद में सोया हुआ था। कभी कभी चौंक उठता था पर शरीर कुछ भी करने को विवश था। सभी लोग भगवान् से उसकी खैर मना रहे थे। पर मफ़िन इन सब बातों से बेखबर हस्पताल के अपने बेड पर तमाम तरह की मशीनों के बीच, अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था।
एक वक्त ऐसा भी आता है। हम समझ कर भी अंजान बन जाते हैं। चुनौती देने की कोशिश करते हैं उस सर्वशक्तिमान को जिसने इस सृष्टि की रचना की है। सब कुछ तय है।
मुझे याद है वो वाक्या जब मफ़िन कुछ दिन के लिए घर छोड़कर चला गया था। पागलों की तरह हो गए थे वो। उसे ढूंढने में दिन रात एक कर दिया था। एक आहट पर पुरा परिवार चौकन्ना हो जाता था।मफ़िन की याद रह रह कर उन्हें सता रही थी। शब्दों में शायद नहीं कह पा रहे थे। क्या पता समाज उसे किस रूप में लेगा। पर दिख रही थी उन सबों की परेशानी। वो दो चार दिन बड़े ही कष्ट में बीते थे उनके। तभी अचानक से एक दिन मफ़िन लौट आया। उसकी आवाज़ सुनते ही मानों उन सभी में जान वापस आ गई थी। सड़क पर बारिश में भीगते हुए मफ़िन भी मानों इन्हें ही ढूंढ रहा था। मफ़िन में जान बसता था उनका। मफ़िन से हालांकि कोई जन्म जन्मांतर का रिश्ता नहीं था उनका। ना ही कोई ऐसा रिश्ता था जो रज्जू नाल से जुड़ा हुआ था। पर इस रिश्ते की बात ही कुछ और थी। नहीं रह सकते थे वो मफ़िन के बिना।
पर, अब तो मफ़िन उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर चला गया। एक ऐसे सफ़र पर निकल पड़ा वो जहां से उसका लौट कर आना नामुमकिन है ।
यहां तो बस सामने मफ़िन और उसकी यादें पड़ीं हैं। मफ़िन भी अब बस कुछ देर का ही मेहमान है क्योंकि अब मफ़िन वो मफ़िन नहीं रहा। मफ़िन से उसकी आत्मा जो निकल चुकी है।
आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर यह मफ़िन कौन है। किसके लिए आखिर हमने इतनी बातें की। मफ़िन के नहीं रहने से किसे और कितना फर्क पड़ता है।
दरअसल, मफ़िन एक छोटे से प्यारे से बिल्ले का नाम है जो अब इस दुनिया में नहीं रहा। वो उनके लिए एक पारिवारिक सदस्य की तरह था। सप्ताह भर का था वो जब उसे उन्होंने सड़क पर से उठा कर लाए थे। बहुत मुश्किल से बर्दाश्त कर पाए वो उसका जाना। सदमे से उबरने में वक्त लगेगा उन्हें।
खैर! वक्त बड़े से बड़े घाव को भर देता है। कुछ नहीं रूकता है किसी के बिना। सभी कुछ पहले की तरह ही यंत्रवत चलता रहेगा गोया कुछ हुआ ही न हो। रह जाएंगी तो सिर्फ और सिर्फ यादें। मफ़िन की यादें।