जयपुर: राजस्थान को डबल इंजन की सरकार मिल गई है और बहु प्रतीक्षित राज्य मंत्रिमंडल का गठन एवं मंत्रियों को विभागों का आवंटन भी हो गया है। एक माह से छा रहा कोहरा अब छंटने वाला है ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। जिस प्रकार से राज्य मंत्रिमंडल का गठन हुआ उससे स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हर विभागों और पूरी सरकार पर नियंत्रण रहेगा। सरकार संचालन में एक नया प्रयोग भी होगा सफलता का आंकलन करना अभी जल्दबाजी होगा। एक साल बाद ही इसके परिणाम दृष्टिगोचर होंगे।
पर क्या सरपट दौड़ेगी राजस्थान की डबल इंजन की सरकार? मंत्रिमंडल को लेकर जो आशंकाऐं थी कि नए और अनुभवहीन लोग हैं, तो स्पष्ट है कि खुद भजन लाल शर्मा भी पहली बार ही मुख्यमंत्री बने। पहले कभी मंत्री भी नहीं रहे।
जिस प्रकार से मंत्रिमंडल का गठन और विभागों का आवंटन किया है उससे लगता है कि बहुत सोच समझकर संतुलन को साधा गया है। इसमें नए और बिना अनुभव के लोगों के साथ ही अनुभव वाले लोगों जैसे राजवर्धन सिंह राठौड़, मदन दिलावर और किरोड़ी लाल मीणा, सुरेंद्र पाल सिंह टीटी, गजेंद्र सिंह खींवसर जैसे धुरंधर राजनीतिज्ञों को मंत्रिमंडल में शामिल करना अनुभवी का सम्मान ही है। मुख्यमंत्री भजनलाल ने महत्वपूर्ण गृह विभाग को अपने पास रखा है। साथ ही कार्मिक योजना सामान्य प्रशासन और नीति निर्धारण एवं जनसंपर्क विभाग। गृह मंत्रालय बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सरकार के सामने आने वाला है। कानून और व्यवस्था जो पिछले कुछ सालों से पंगु हो चुकी थी उसमें सुधार करना मुख्यमंत्री के लिए बड़ी चुनौती होगा। कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खासा लोकप्रिय हुए।
मुख्यमंत्री भजन लाल ने वन विभाग और खान मंत्रालय को अलग-अलग रखकर कुशलता का परिचय दिया है। पूर्व में कई सरकारों में खान तथा वन मंत्रालय एक ही व्यक्ति के पास होता था। यहां उल्लेखनीय है कि वन और जलवायु परिवर्तन तथा पर्यावरण मंत्रालय कैबिनेट स्तर में ही होना चाहिए था। जलवायु परिवर्तन एवं वनों का संरक्षण बहुत महत्वपूर्ण विषय है। वनों के को बचाने के कई कानून होने के बावजूद भी वन संपदा को लूटने का सिलसिला जारी है। राज्य की नदियां प्रदूषित है। दुर्भाग्यवश नदियों को पानी के लिए कम रेत के लिए जाना जा रहा है। पर्वतमालाओं को विशेष तौर से अरावली और विंध्याचल को खनन के नाम से खोखला कर दिया गया है। भरतपुर के बृज क्षेत्र में ही संतो को आदि पर्वत बचाने के लिए आत्मदाह तक करना पड़ा। विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन साधना ही सनातन और सतत विकास होगा। एक तरफा विकास तो विनाशकारी ही होता है। मनुष्य को एसा विकास चाहिए जिसमें वह सांस ले सकें।
फिर भी संतोष जनक है कि वन मंत्री को स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। ग्रामीण विकास और पंचायती राज को अलग-अलग किया गया है। वैसे देखा जाए तो ग्रामीण विकास और पंचायती राज की प्रकृति लगभग एक जैसी है।आने वाले समय में पता चलेगा कि यह प्रयोग ठीक रहा या गलत। भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि विभाग रहा है। आजकल खेती और खेती की जमीनों पर बडा संकट व्याप्त है खेती को बचाना भी मुश्किल हो रहा है और इसी कारण कृषि क्षेत्र में बेरोजगारी का जोरदार आलम है। बेरोजगारी शहरों में भी काफी तादाद में व्याप्त है। खेती ही नहीं बचेगी तो कृषि विकास किस काम का?
क्या मुख्यमंत्री कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार की आवश्यकता है पर बल देंगे? खेती और किसानी को शहरों के विस्तारीकरण से बचना भी मुख्यमंत्री के लिए बड़ी चुनौती होगा। पिछली सरकार ने विकास प्राधिकरण के नाम से गांव को बर्बाद करने का बिल विधानसभा में पास कर दिया था। अब देखना है कि नई सरकार इस बिल को वापस लेती है या गांवों को समाप्त करने का रास्ता तय तैयार करती है। राज्य के उपमुख्यमंत्री डॉक्टर प्रेमचंद बैरवा तकनीकी शिक्षा मंत्री भी हैं उनके सामने महत्वपूर्ण सवाल होगा कि उच्च शिक्षा को किस प्रकार से समाज उपयोगी बनाया जाए। मदन दिलावर जैसे वरिष्ठ मंत्री को शिक्षा के साथ संस्कृत शिक्षा एवं पंचायती राज विभाग भी दिया गया है। कन्हैया लाल चौधरी को भूजल एवं जल संसाधन मंत्रालय दिया गया है। पानी राज्य का महत्वपूर्ण विषय रहा है और राज्य पानी की कमी से हमेशा जूझता रहा है। पानी का प्रबंध जल संसाधनों को बचाना इस विभाग के लिए प्रमुख काम होना चाहिए जबकि यह विभाग केवल जल आपूर्ति पर ही ध्यान देता आया है। जल संसाधन एवं भूजल प्रबंधन को अलग-अलग किया गया है इसमें केंद्र की बहुत चर्चित ईआरसीपी परियोजना को लागू करने का चुनौती पूर्ण काम सुरेश सिंह रावत के जिम्मे है। उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी के पास भी महत्वपूर्ण विभाग वित्त विभाग है और साथ में पर्यटन, कला, साहित्य, संस्कृति ,पुरातत्व के अलावा सार्वजनिक निर्माण विभाग एवं महिला व बाल विकास अधिकारिता के विभाग भी।
नई सरकार के सामने सबका साथ सबका विकास का मूल मंत्र है जो कि केंद्र सरकार का भी नारा है। सबसे महत्वपूर्ण गृह मंत्रालय है जिसका सीधा संबंध आम व्यक्ति की सुरक्षा से है। नई सरकार क्या आबकारी नीति में परिवर्तन करते हुए आम जनता को नशे की प्रवृत्ति से दूर रखने की पहल करेगी क्योंकि इसका संबंध सीधा अपराधों से है। नशे की प्रवृत्ति बढ़ने से सीधे अपराधों में वृद्धि होती है यह सरकार को समझना होगा। केवल राजस्व प्राप्ति के लिए शराब को बढ़ावा देने वाला कदम आत्मघाती सिद्ध हो सकता है। जिससे कि पिछली सरकारें भी जूझती रही।
नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग के मंत्री झाबर सिंह खर्रा के समक्ष यह चुनौती रहेगी की राज्य में नगर निगम और नगर पालिकाओं की हालत कैसे सुधारी जाए। नगरीय प्रशासन चलाने वाली स्वायत्त शासन संस्थाओं के पास कुशल कर्मचारियों का बड़ा अभाव है एवं कई महत्वपूर्ण पद लंबे समय से खाली चले रहते हैं। शहरों में विकास को उच्छृंखल बनने से रोकना होगा। विकास के साथ सतत या सनातनी संतुलन बनाना होगा।
स्वच्छता के लक्ष्य हासिल करना भी कम चुनौती पूर्ण नहीं है। सरकारें सफाई व्यवस्था पर काफी धन खर्च करती है उसके बावजूद भी सफाई नहीं होती। इसके लिए आवश्यक है कि स्वच्छता का नया एवं तकनीकी मॉडल अपनाया जाए जैसा कि मध्य प्रदेश के इंदौर, उज्जैन एवं छत्तीसगढ़ के कुछ नगरों में हुआ है। स्वायत्त शासन और नगरीय विकास विभाग को मजबूत के बिना स्वच्छता के लक्ष्य हासिल नहीं हो सकते। स्वच्छता का सीधा संबंध लोगों के स्वास्थ्य से है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी गजेंद्र सिंह खींवसर को दी गई है जो काफी अनुभवी है।
*स्वतंत्र पत्रकार