विरासत स्वराज यात्रा 2022: पूरी दुनिया को एक बनाने का काम जल ही करता है
– डॉ राजेंद्र सिंह*
हमारी विरासत स्वराज यात्रा आज सुबह 5 बजे रैड सी पहुँची जहां सभी महाद्वीपों से आए लोगों के साथ मैंने जल प्रार्थना की और जल का आशीर्वाद लिया। सभी ने आशीर्वाद प्राप्त करके कहा कि जल को इस तरह से देखने और जल की प्रार्थना इस प्रकार करने से मन को बहुत समझ मिली और मन बहुत साफ हुआ है।
कल देवउठनी ग्यारस थी, इस अवसर पर सिनाई पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर जाकर हमने प्रार्थना किया था। सिनाई पर्वत पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आदि सभी धर्मों के स्थान है। यह एक तीर्थ है। इसलिए देवउठनी ग्यारस के दिन पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर जाकर बहुत आनंदित हुआ था। मुझे लगा कि मैं अपनी 64 साल की उम्र में भी इतना ऊंचा पर्वत चढ़ सकता हूं और यह ऊर्जा इसलिए थी क्योंकि देवउठनी ग्यारस की सूरज की पहली किरण निकलने से पहले उस पर्वत की चोटी पर जाकर, आध्यात्मिक आनंद प्राप्त कर सका।
एक तरफ सिनाई पर्वत पर विश्व जल प्रार्थना और दूसरी तरफ रैड सी के अंदर खड़े होकर प्रार्थना करने का आनंद एकात्मकता प्रतीक बना है। इस बात की अत्यंत खुशी है कि विरासत स्वराज यात्रा के लक्ष्य अनुकूल सब हो रहा है।
नेल्सन मंडेला के समय जनसंचार तकनीकी कैबिनेट मंत्री रहे जोयस नायडू कैलाश पर्वत से जल लेकर आए थे। उस जल को रेड सी में मिलाया और कैलाश के महत्व के बारे में बताया। कैलाश पर्वत मानसरोवर का जल रैड सी में लाकर देना, इस बात को सिद्ध करता है कि पूरी दुनिया एक है और पूरी दुनिया को एक बनाने का काम जल ही करता है।
मैंने कहा कि बाढ़-सुखाड़ का समाधान किए बिना दुनिया बचेगी नहीं।
कोप -27 से पहले का यह पांच दिनों का कार्यक्रम आज सम्पन्न हुआ था। इन 5 दिन में जिन मुद्दों पर सहमति हुई है, उन्हें हम कोप-27 में रखेंगे। यह सभी परंपरागत ज्ञान तंत्र और विद्या में विश्वास रखने वाले लोग थे। इन लोगों ने पांच बातों पर सर्वसम्मति देते हुए कहा कि, आधुनिक शिक्षा ने प्रकृति का बहुत बिगाड़ किया है। प्रकृति और मानवता को अलग-अलग करने का कार्य किया है। इसको फिर से सम्मान दिलाने हेतु ठोस कदम उठाने होंगे।
इस सम्मेलन में आए सब लोगों को मैंने कोप-27 में बाढ़-सुखाड़ विश्व जनआयोग के कार्यक्रम के बारे में बताया। जिन मुद्दों पर सहमती बनी है, उसे मैंने यात्रा की सफलता बताया। इस कार्यक्रम में सभी लोगों ने काफी उत्साह दिखाया और सभी ने बाढ़-सुखाड़ जनआयोग में मिलकर काम करने की अपनी सहमति दिखाई। यह सब लोग जिस शिक्षा और विद्या की बात हम अपने भारत में कर रहे थे, दुनिया में भी इसकी भयानक चिंता है। इसलिए ठीक वक्त पर शिक्षा प्रकृति और पर्यावरण का विनाश कैसे कर रही है ? और इससे बचने के लिए हमें किस तरह की विद्या, ज्ञान और मानवीय व्यवहार चाहिए? इन सभी मुद्दों पर बहुत विस्तार -गहराई से चर्चा हुई।
इसके बाद सभी लोगों ने तरुण भारत संघ की नदियों के पुनर्जन्म की दो किताबें ‘रिवर रिजुवनेशन भाग एक और भाग दो, दोनों का रैड सी के किनारे पर विमोचन किया। इस पुस्तक का विमोचन करते वक्त स्पेन, अफ्रीका, पश्चिम अमेरिका और यूरोप महाद्वीपों के लोगों ने अपने विचार रखे। स्वीडन से आयी बहिन हेलना और स्पेन से आयी बहन माया और घोटामाला के भाई कृष्णबोल आदि ने कहा कि, जितनी गहराई समुद्र में है, उतनी इस काम की गहराई है जिसने नदियों को 21वीं शताब्दी में पुनर्जीवित करने का काम किया है। आज दुनिया को बाढ़-सुखाड़ मुक्त करने के लिए जिस तरह से नदियां पुनर्जीवित होने से लोगों को रोजगार मिला, उजड़े हुए लोग काम करने लगे, डाकू लोग पानी का काम करने में जुट गए, यह अद्भुत सच्ची कहानी है। इससे दुनिया को सीख लेनी चाहिए।
सभी ने प्रशंसा की और कहा कि, इस दुनिया को यदि बाढ़-सुखाड़ से मुक्ति चाहिए तो फिर इसी तरह का काम करना होगा।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।