समूची दुनिया में पेड़ों के विनाश का दौर जारी है। इसमें मानवीय स्वार्थ की तो अहम भूमिका है ही, कीडे़-मकोडे़ भी पीछे नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट की माने तो 3.5 करोड़ हैक्टेयर जंगल हर साल दुनिया में कीडे़-मकोडे़ चट कर जाते हैं। इससे साबित होता है कि इंसान ही नहीं कीडे़-मकोडे़ भी पेड़ों के दुश्मन बने हुए हैं। यदि अपने देश के हालात पर दृष्टिपात करें तो पाते हैं कि एक ओर वह विकास यज्ञ में समिधा बन रहे हैं, कहीं औद्योगिक आस्थान की स्थापना के लिए उन्हें शिकार बनाया जा रहा है, कहीं वह बहुमंजिला आवासीय कालोनियों और भवन निर्माण के लिए तो कहीं पर्यटन के नाम पर बनाये जाने वाले आल वैदर रोड, तो कहीं सड़क चौडी़करण के नाम पर उनकी बलि दी जा रही है, तो कहीं अपने चहेतों के फार्म हाउस बचाने के लिए तो कहीं सोलर ऊर्जा के नाम पर राजस्थान के राज्य वृक्ष खेजडी़ के पेड़ों को निर्ममता से काटा जा रहा है और कहीं देश के औद्योगिक घरानों को हीरा खनन या खदानों की ख़ातिर हजारों-लाखों पेड़ों को कुर्बान किए जाने के लिए जंगल के जंगल पट्टे पर दिये जा रहे हैं।
हकीकत यह है कि बीते 5 सालों में देश में नीम, बरगद, जामुन, पाकड़, शीशम, महुआ आदि के करीब 5 लाख छायादार पेडो़ं का अस्तित्व ही खत्म कर दिया गया। पिछले 20 सालों में देशभर में 40 हजार हैक्टेयर जंगल कहां गायब हो गये, इसका जबाव किसी के पास नहीं है। विडम्बना यह है कि यह सब तब हो रहा है जबकि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार यह दावा करते नहीं थकते कि विकास के नाम पर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ नहीं किया जायेगा।
दुख इस बात का है कि यह सब तब हो रहा है जबकि इसके दूसरी ओर सरकार देश के हिमालयी क्षेत्र में पेड़-पौधों का डाटा बनाने की ख़ातिर अध्ययन हेतु केन्द्र बनाने की दिशा में प्रयास रत है। उसके अनुसार इसके बाद इसका विस्तार देश के दूसरे क्षेत्रों में किया जायेगा। केन्द्र सरकार की यह योजना जैव विविधता पर शोधों पर अध्ययन किये जाने की दृष्टि से शुरू की जानी है। इसकी घोषणा विगत दिनों जी बी पंत जैव विविधता व प्रबंधन केन्द्र राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के प्रमुख डा० आई डी भट्ट ने करते हुए कहा है कि इसके साथ जलवायु परिवर्तन, जंगलों में आग आदि संकटों से जूझ रही 456 संकटग्रस्त प्रजातियों के साथ ही इंटरनेशनल यूनियन आफ कंजरवेशन आफ नेचर यानी आईयूसीएन की रेड लिस्ट का भी अध्ययन किया जायेगा। इससे खतरे में पड़ी प्रजातियों और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए ठोस योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी।
यहां यह समझ से परे है कि देश में जब पेड़ ही नहीं रहेंगे, उस दशा में अध्ययन किसका होगा? जबकि यह हम भलीभांति जानते हैं कि पेड़ों का हमारे जीवन में कितना महत्व है। उनके बिना जीवन अधूरा है। वह न केवल हमें गर्मी से राहत देते हैं बल्कि जैवविविधता बनाये रखने की दृष्टि से कृषि की स्थिरता सुदृढ़ करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने और जलवायु को स्थिरता प्रदान करने में अहम योगदान देते हैं। फिर भी हम पेड़ों के दुश्मन क्यों बने हुए हैं, यह समझ से परे है।
हालिया मामला दिल्ली के रिज क्षेत्र में बिना मंजूरी के 1100 पेड़ काटने का है। इसमें दिल्ली की आप पार्टी की सरकार और दिल्ली के उप राज्यपाल आमने-सामने हैं। दरअसल अभी तक इस मामले में दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल दोनों की ओर से प्रशासनिक अधिकारी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने में लगे थे लेकिन बीते दिनों डी डी ए द्वारा पेड़ काटने वाली कंपनी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दिए गये हलफनामें से मामला और उलझ गया। उस हलफनामे से यह खुलासा हुआ है कि रिज क्षेत्र में जो पेड़ काटे गये हैं, उसकी पूरी जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को थी और उन्होंने दिल्ली के उप राज्यपाल के कहने पर दबाव में आकर बिना मंजूरी के पेड़ काटने की स्वीकृति दी। गौरतलब है कि अभी तक इस मामले में दिल्ली सरकार के मंत्री और प्रशासनिक अधिकारी ही बयानबाजी में लिप्त थे लेकिन दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (डीडीए) के सच उजागर करने से इसने राजनीतिक रूप ले लिया। अब राज्यसभा सदस्य और आम आदमी पार्टी (आप) नेता संजय सिंह व दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज यह कह रहे हैं कि दक्षिण दिल्ली के रिज क्षेत्र में सतबडी़ में जो 1100 पेड़ काटे गये हैं, उसके पीछे दिल्ली के उप राज्यपाल का मौखिक आदेश था जो उन्होंने फार्म हाउस बचाने की गरज से दिया था। जबकि यूटीपैक द्वारा दिये नक्शे में फार्महाउस की जमीन का अधिग्रहण कर सड़क बनाने की योजना थी। यह योजना छतरपुर के गौशाला रोड के पास सीबीआई और केन्द्रीय सुरक्षा बलों के लिए आवासीय कालोनी के लिए बनाया गयी थी जिसमें दोनों आवासीय योजनाओं को जोड़ने वाली छतरपुर रोड से सार्क विश्वविद्यालय वाली सड़क का चौडी़करण किया जाना था। लेकिन आप नेताओं की मानें तो उपराज्यपाल ने कारोबारियों के फार्महाउस बचाने के लिए 1100 पेड़ कटवा दिये। जबकि हकीकत यह है कि वहां वनक्षेत्र में 468 पेड़ और गैर वन क्षेत्र में 174 पेड़ ही काटे गये हैं। मामला यहां उलझा कि पेड़ काटने के बाद पेड़ काटने की मंजूरी लेने के लिए डीडीए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां उसे बिना मंजूरी पेड़ काटने पर खासी फटकार भी लगाई गयी।
पेड़ों की कटाई का यह अकेला मामला हो, ऐसी बात नहीं है। इसकी श्रृंखला काफी लम्बी है। बुंदेलखण्ड में बकस्वाहा में हीरा खदान के लिए हजारों एकड़ जंगल पट्टे पर देने का मामला हो जिसमें लाखों वेशकीमती विविधता से युक्त औषधि वाले पेड़ काटे जाने थे, जिसका जबरदस्त विरोध हुआ। उत्तराखंड में पर्यटन की ख़ातिर बीते दशक में आल वैदर रोड के नामपर देवदार के करीब ढाई लाख पेड़ काटे जाने का मामला हो, और फिर छत्तीसगढ़ के हंसदेव अरण्य में कोयला खनन के लिए पेड़ कटाई का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि राजस्थान में सोलर ऊर्जा कंपनियों द्वारा हजारों खेजडी़ के पेड़ काटे जाने का मामला आजकल सुर्खियों में है। वहां इसके विरोध में 16 जुलाई से आंदोलन जारी है। अभी तक वहां बीते तीन सालों में 30 हजार बीघा क्षेत्र में सोलर प्लांटों की ख़ातिर करीब 60 हजार से ज्यादा खेजडी़ के पेड़ों की बलि दी जा चुकी है। इस दौरान करीब 30 कंपनियां बीकानेर जिले में छत्तरगढ़ पूगल, खाजूवाला, लूणकरसर, जामसर, श्रीडूंगरगढ़, कोलायत, गजनेर, नौखा आदि में 5 मेगावाट से 3000 मेगावाट तक के 30 से ज्यादा सोलर प्लांट लगा चुकी हैं। यही नहीं अभी 10 हजार बीघा क्षेत्र में सरकारी सोलर प्लांट लगाये जाने बाकी हैं। इसका खामियाजा घटती हरियाली और बढ़ते तापमान के रूप में सामने आया है। वह बात दीगर है कि सौर ऊर्जा से बिजली भले मिल रही है लेकिन इससे पर्यावरण को जो नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई कौन करेगा। यह सवाल सबसे बड़ा है।
असलियत में ग्रीन एनर्जी के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। इस बारे में बिश्नोई महासभा के अध्यक्ष देवेन्द्र जी घूडि़या कहते हैं कि सोलर प्लांट लगाने वाली कंपनियों द्वारा लगाये गये ये सोलर प्लांट तो बानगी भर हैं जबकि इससे दोगुणी जमीन पर सोलर कंपनियां अपनी नजरें गडा़ये हुए हैं। अभी भी जयमलसर, नोखादेवा, नाल, किलनी, रणधीसर, हापासर, छतरगढ़ आदि इलाकों में ये कंपनियां खेजडी़ के पेड़ों की अवैध कटाई कर रही हैं। आने वाले दिनों में बीकानेर से छतरगढ़ तक के 90 हजार बीघा इलाके में लगने वाले सोलर प्लांटों की ख़ातिर खेजडी़ के लाखों पेड़ काट दिये जायेंगे। इस बारे में हमने मुख्यमंत्री और हाईकोर्ट को भी पत्र लिखा है। गौरतलब है कि हाईकोर्ट खेजडी़ के पेड़ों की कटाई रोकने के निर्देश दे चुका है लेकिन इसके बावजूद अधिकारियों और कंपनियों की मिलीभगत के चलते पेड़ों की कटाई निर्बाध गति से जारी है।
गौरतलब है कि 2019 के बाद से ही सोलर कंपनियों द्वारा खेजडी़ के पेड़ों की कटाई जारी है। कई बार इस बाबत क्षेत्र के ग्रामीणों और कंपनियों के नुमाइंदों के बीच नोंक-झोंक हुयी। सरकारी कर्मचारियों द्वारा इनके खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवा गयी लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। थकहारकर ग्रामीणों ने सत्याग्रह का फैसला लिया और 18 जुलाई से धरना देना शुरू किया जो नोखादह्या और जयमलसर के बीच सींव के पास पिछले डेढ़ महीने से जारी है। विडम्बना देखिए कि डेढ़ माह के धरने के बावजूद अभी तक प्रशासन ने कोई सुध नहीं ली है। केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी यहां आकर आश्वासन दिया कि खेजडी़ के पेड़ों की कटाई नहीं होगी लेकिन वह आश्वासन आश्वासन ही रहा और खेजडी़ के पेड़ों की कटाई पर कोई अंकुश नहीं लगा। बीती रात सोलर कंपनियों के खेजडी़ काटने वालों को रामगोपाल सहित ग्रामीणों ने पकड़ा जो अपने साथ पेडो़ं को ले जाने के लिए ट्रैक्टर-टाली आदि लेकर आये थे। ये लोग ग्रामीणों को देखकर माफी मांगकर कि अब फिर नहीं आयेंगे, अपनी जान बचाकर भाग खडे़ हुए। यहां यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि सोलर प्लांट बंजर भूमि में लगाये जाने थे जिन्हें सिंचित भूमि में लगाया जा रहा है। नियमानुसार प्लांट लगाने से पहले उस जमीन पर पेड़-पौधे लगाने चाहिए थे लेकिन ऐसा न करके सिंचित भूमि पर लगा कर लोगों की जीविका पर ही कुठाराघात किया जा रहा है। इस बाबत रामगोपाल, रिछपाल फौजी, सहीराम पूनिया आदि इलाके के प्रमुख लोगों ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन भी दिया और कहा कि ऐसी स्थिति में कभी भी कोई बड़ी घटना हो सकती है जिसकी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी। लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही न होना सरकार, प्रशासन और सोलर कंपनियों की सांठगांठ को ही दर्शाता है।
इस बारे में यदि विशेषज्ञों की मानें तो इसे ग्रीन एनर्जी टाइटल देना ही गलत है। इसी का लाभ सोलर कंपनियां उठा रही हैं। दरअसल इसके लिए पर्यावरण दुष्प्रभाव का अध्ययन ही नहीं किया गया। पेड़ काटने के बाद सोलर प्लांट लगने के बाद तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। इससे मधुमक्खी, तितलियां, ततैय्या आदि परागमन की क्रिया करने वाले कीट पतंगों की आबादी समाप्ति प्रायः है। साथ ही वन्य जीवों के लिए पानी की किल्लत हुयी है सो अलग। नहर पर सोलर प्लांट लगाने के विशेषज्ञों के सुझाव को भी दरगुज़र कर दिया गया। इस सम्बन्ध में महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभागाध्यक्ष प्रो० अनिल छंगाणी का कहना है कि-” आज थार मरुस्थल में सोलर प्लांट और विंड मील से होने वाले दुष्प्रभावों पर चिंतन करने की बेहद जरूरत है। ग्रीन एनर्जी के नाम पर थार मरुस्थल में सोलर प्लांट द्वारा खेजडी़, रोहिडा़, केर, बेर, जाल आदि स्थानीय प्रजातियों के पेड़ों का कटान, स्थानीय जलस्रोतों का दोहन, परिग्रहण करने वाले कीट-पतंगों, मधुमक्खियों, तितलियों, पक्षियों, सरीसृपों के आवास मिटाना तथा रोजाना पवन चक्कियों के पंखों से गोडावण, गिद्धों जैसी बहुतेरी संकटग्रस्त प्रजातियों के कटने से थार की समृद्ध जैवविविधता के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुके हैं।
असलियत में आज हमें इस बात पर गंभीर चिंतन करने की जरूरत है कि क्या यह इस मरुस्थली प्रदेश के लिए कहां तक उचित और न्यायसंगत है। इसके साथ ही इन सोलर प्लांट, विंड एनर्जी के इनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट और इनवायरमेंट आडिट भी बेहद जरूरी है।’
मौजूदा हालात में इस सब पर सरकार की चुप्पी इसका ज्वलंत प्रमाण हैं कि पेड़ और पर्यावरण के मुद्दे पर सरकार की कथनी और करनी में जमीन- आसमान का फर्क है और कॉरोना काल से भी उसने कोई सबक नहीं सीखा है। उसे न देश की चिंता है और न देश की जनता की। वृहद वृक्षारोपण अभियान तो एक दिखावा है। वह कितना सफल हुआ है और इससे कितनी हरित संपदा में बढ़ोतरी हुयी है, वह तो जगजाहिर है। हकीकत यह है कि वह आज भी सवालों के घेरे में है। हां पर्यावरण रक्षा के नाम पर बयानबाजी जनता को धोखे में रखने की केवल एक सोची-समझी साजिश है, इसके सिवाय कुछ नहीं।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
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