पेरिस, फ्रांस में ‘इंटरनेशनल सस्टेनेबिलिटी कॉन्फ्रेंस’ का एक दृश्य
– डॉ राजेंद्र सिंह*
पेरिस: दिनांक 18 जुलाई 2024 को मैंने पेरिस, फ्रांस में ‘इंटरनेशनल सस्टेनेबिलिटी कॉन्फ्रेंस’ में भाग लिया। इस सम्मेलन में नदी, पानी और प्रकृति के प्रति सजगता थोड़ी दिखायी दे रही है। यहां के लोग अपने भविष्य औरवर्तमान दोनों को साथ-साथ जोड़कर देखना शुरू करना चाहते हैं। अभी फ्रांस 21वीं शताब्दी के सबसे बड़े संकट जलवायु परिर्वतन को समझ रहा है।हालाँकि मैंने अनुभव किया है कि अब फ्रांस की चिंताएं बदल रही हैं। इनकी चिंता व्यापार में ज्यादा और प्रकृति में कम हो रही है।
मैं वर्ष 1991 में पहली बार पेरिस के सम्मेलन में आया था। तब से अब तक फ्रांस प्रकृति के प्रति उतना सजग नहीं है, जितना सजग 1991 में था। 1991 में पूरी दुनिया के प्रकृति प्रेमियों को अपने देश में बुलाकर, साझे भविष्य को बेहतर बनाने की सपने दिखाए थे। प्रकृति और मानवता दोनों के बारे में राष्ट्र की चिंता थी।
फ्रांस में अब हिंसा का मुकाबला हिंसा से करने का चलन बढ़ा है जो बहुत चिंता जनक है। हिंसा का मुकाबला कभी हिंसा से नहीं होता। हिंसा का मुकाबला अहिंसा से होता है। जिस तरह से हमने चंबल की हिंसा को खत्म करने के लिए वहां ‘पानी की अहिंसा’ का काम शुरू किया। पानी की अहिंसा ने वहां के हिंसक लोगों को इज्जतदार, ईमानदार और पानीदार बना दिया है।
प्रकृति का व्यवहार सबसे ज्यादा सुखद होता है। वह कभी किसी के साथ हिंसा नहीं करता। जबकि व्यापार और बाजार हमेशा लाभ के लिए काम करते है। प्रकृति सबके शुभ की चिंता करती है। इसलिए हमें प्रकृति की प्रति प्रेम बढ़ाना होगा।
मैंने पेरिस में युवा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में तरुण भारत संघ के काम से हुए जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन व उन्मूलन कार्यों के अनुभवों को रखा। इस सम्मेलन में हजार से ज्यादा युवा लोग उपस्थित रहे। सम्मेलन को संबोधित करते हुए मैंने कहा कि, आज दुनिया में सबसे बड़ा संकट जलवायु परिवर्तन का है। इस संकट के समाधान हेतु जलवायु परिवर्तन का अनुकूलन और उन्मूलन करने की जरूरत है। इसकी ज्यादा से ज्यादा जिम्मेदारी युवाओं को लेनी पड़ेगी। इन्हें अपने साझे भविष्य को बेहतर बनाने के लिए सक्रिय होना पड़ेगा। यदि इस संकट का समाधान नहीं करेंगे तो जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती बाढ़ और सुखाड़ की मार लगातार झेलनी पड़ेगी। इसलिए समाधान की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे होगा।
राजस्थान और देश दुनिया में जहां भी समुदायों ने जागरूक होकर अपने जीवन को प्रकृति के अनुकूल जीवन जीने का व्यवहार अपनाया है , वहां के लोग निरोग, इज्जतदार और समझदार बने हैं । जहां के लोगों ने प्रकृति की अनदेखी की है वहां के जीवन में एक कठिनाइयां सतत रूप से बढ़ रही है। हमें अपने जीवन को सुखद और आनंद से रखने के लिए प्रकृति के साथ सदाचार का व्यवहार करना होगा।
दुनिया को पर्यावरणीय आर्थिकी की आवश्यकता है। पर्यावरणीय आर्थिकी वहीं होगी, जहां के लोग अहिंसक होंगे।
फ्रांस में आज भी पर्यावरणीय आर्थिकी को प्यार करने वाले लाखों लोग मौजूद हैं। इस प्यार में हमेशा अहिंसा ही प्रधान होती है। जब भी हिंसा होती है तो प्रकृति और मानवता दोनों के लिए खतरा पैदा हो जाता है। प्रकृति में प्यार बढ़ेगा तो जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और समाधान निकलेगा। यही हमारी प्रकृति के लिए सुख, शांति, समृद्धि और आनंद का संदेश देने वाला होगा। यदि शांति नहीं रहेगी तो समाज बिगड़ जाएगा।
शांतिपूर्ण समाज ही पर्यावरणीय आर्थिकी की ओर आगे बढ़ सकता है। अपने-अपने देश में लोग शान्ति का काम करेगें, तो यह आंदोलन पूरी दुनिया में फैल जाएगा।