विज्ञान और तकनीक ने हमारे जीवन को सरल और आसान बना दिया है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बहुत बड़ी भूमिका है। हम सभी इसके ऊपर निर्भर होते जा रहे हैं। इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे का अंबार बढ़ता जा रहा है। दुनिया भर में हर साल करीब 50 मिलियन टन ई कचरा पैदा हो रहा है। जरूरत से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट से नुकसान होता जा रहा है। ई कचरे का निपटाना एक उभरता हुआ वैश्विक पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ मुद्दा है क्योंकि यह कचरा दुनिया में औपचारिक नगरपालिका अपशिष्ट प्रवाह का सबसे तेजी से बढ़ने वाला भाग है। इस अपशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक सामग्री को विशेष रुप से सावधानी पूर्वक नष्ट करना बहुत आवश्यक है।
हर घरों में पुराने पड़े टेलीविजन, मोबाइल फोन, लैपटॉप, म्यूजिक प्लेयर, चार्जर, प्रिंटर, एडॉप्टर, मॉडेम या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के लिए लोगों को पता ही नहीं है कि इन्हें कैसे त्यागना है। लोग अपने पुराने और अनुपयोगी इलेक्ट्रोनिक सामाग्री को बिना सोचे समझे ही फेंक देते हैं, जिससे नुकसान केवल उन्हें ही नही बल्कि पूरे पर्यावरण को होता है।
एक और बात जो ई-वेस्ट से जुड़ी है वह है इसमें मौजूद धातु, प्लास्टिक और सामग्रियों का असुरक्षित निकास। इसमें विषाणु, लीड, कैल्शियम और अन्य कीटाणुओं का संग्रह हो सकता है जो पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा है। इस असुरक्षित निकास के कारण ये कीटाणु भूमि, जल और हवा में पहुंच कर जीवों को प्रवाहित कर सकते हैं जिससे पर्यावरण को हानि हो सकती है। ई वेस्ट की एक और समस्या है इसमें पाए जाने वाले प्लास्टिक सामग्रियां जिसमें रसायनिक योगिक और मिट्टी के मिलने से उत्पन्न होने वाले असुरक्षित निकास का सामना करना पड़ता है। इन प्लास्टिकों को सही ढंग से निष्क्रिय करना बहुत ही कठिन है और इसका निष्क्रिय करने का तरीका अधिकांश जगह पर उपलब्ध नहीं है जिससे ये समुद्रों और नदियों में प्लास्टिक प्रदुषण का श्रोत बनाते है।
जब ई कचरा लैंडफिल में समाप्त हो जाता है तो आसपास की मिट्टी पारा, कैडमियम और सीसा जैसे जहरीले पदार्थों से दूषित हो सकती है। ये रसायन मिट्टी, जलमार्गों और हवा में प्रवेश करते हैं जिससे प्रदुषित वातावरण बनता है और मानव एवं समुद्री जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आज हमारी तकनीकी उत्पादों की जिंदगी संकटमय है, लेकिन ई वेस्ट का सही प्रबंधन न होने से इस संकट का समाधान भी संभावनाओं से बाहर है।
एनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स पत्रिका ने बताया कि शोधकर्ताओं ने चीज में एक बड़े ई कचरा निपटान स्थल से हवा के नमूने लिए और पाया कि इन लैंडफिल में उत्पाद मानव फेफड़ों की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। विश्व स्वास्थ संगठन ( डबल्यू एच ओ ) के अनुसार, ई कचरे के संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जैसे गर्भवती महिलाओं के लिए नकारात्मक जन्म परिणाम छोटे बच्चों में एच ए डी की दर में वृद्धि, फेफड़ों की कार्य प्रणाली में परिर्वतन, डीएनए की क्षति, श्वसन संबंधी समस्याएं, थायराइड, कैंसर और हृदय रोग जैसी पुरानी बीमारियां इत्यादि।
ई कचरा की समस्या से निपटने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स के पुनर्चक्रण के महत्त्व पर जोर दिया जाना चाहिए। पुनर्चक्रण के लाभ हानियों से कहीं अधिक है। सरकारी उपभोक्ताओं और निर्माताओं को इस प्रचलित का व्यवहार्य समाधान ढूंढने की ज़रूरत है। ई वेस्ट का सही प्रबंधन हमारे पर्यावरण की सुरक्षा में महत्तवपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इससे हम अपने भविष्य को स्वस्थ और सुरक्षित बनाए रख सकते हैं और आने वाले पीढ़ियों को एक स्वच्छ और हरित पर्यावरण में विकसित करने का प्रशस्त कर सकते हैं। इस लिए हम सभी को ई वेस्ट के प्रबंधन में अपना योगदान देने का संकल्प लेना चाहिए ताकि हम एक स्वस्थ, सुरक्षित और हरित भविष्य की दिशा में कदम से कदम मिलाकर चल सकें।