पेरिस: पानी लूटने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर कैसे लगे लगाम? पानी लूटने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां पर रोक लगाकर, सामुदायिक प्रबंधन के काम को बढ़ावा देना चाहिए। आज पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन का संकट बढ़ रहा है और धरती के पानी को बड़ी कंपनियां लूट रही है। यदि यह लूट नहीं रुकी तो फ्रांस बेपानी हो जाएगा।
21 जुलाई 2024 को फ्रांस में आयोजित ‘‘इंटरनेशनल सस्टेनेबिलिटी कॉन्फ्रेंस’’ का समापन हुआ। इस सम्मेलन में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को देखकर आश्चर्य चकित हूँ कि फ्रांस के युवा अब अपने भविष्य को साझा देखने की राह पकड़ रहे हैं। यहां पर सभी युवाओं में अद्भुत उत्साह है। इन्होंने रात-दिन जागकर मेहनत से करीब दस हजार लोगों के लिए एक रसोई में खाना बनाया, खिलाया और रहने की व्यवस्था की। इन्होंने पूरी दुनिया से आए लोगों के साथ मिलकर शांतिमय प्रदर्शन किया।
समापन अवसर पर मैंने भाषण देते हुए कहा कि हमें सरकार से आग्रह करना है कि वह जल का निजीकरण – व्यापारीकरण ना करे। जल जीवन है, उसका व्यापार नहीं हो सकता। इस आग्रह पर हम अडिग होकर लगेंगे तो सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लेकर अपना कानून भी बदलेगी। सरकारें रास्ते बदलती है क्योंकि उन्हें जनता के पास जाना ही होता है।यदि वो ऐसा नहीं करेंगी तो लोग उनको बदल देंगे। हमे अन्न, जल, धरती, हवा और पानी की सुरक्षा की बात को मनवाना ही होगा। यह सरकार के हित में भी है कि वह इस बात को मानकर जनता की हमदर्द बने।
यूरोप के देशों को महात्मा गांधी से सीख लेनी चाहिए। महात्मा गांधी ने आजादी का आंदोलन अहिंसामय होकर लड़ा और जीता। बापू ने कहा था कि, सत्याग्रह करने वाले की कभी हार नहीं और हिंसा से लड़ने वाला कभी जीतता नहीं है। क्षणिक घमंड की जीत में पराजय उनके पास खड़ी होती है।भारत में पिछले 50 वर्षो में हमने लोगों के साथ मिलकर जल के निजीकरण के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। लेकिन 50 वर्षो के सामाजिक कार्य में कभी हिंसा नहीं की। शांति, सद्भावना, श्रमनिष्टा से किए हुए काम ही हमें आगे बढ़ाते हैं। हम पंचमहाभूत से निर्मित पूरे ब्रह्मांड को एक मानते हैं इसलिए पूरी दुनिया मेरे लिए एक परिवार है। भारतीय वेदों में इस बात को “वसुधैव कुटुंबकम” कहा है। हम सुबह धरती पर पैर रखने से पहले धरती मां से क्षमा मांगते हुए कहते हैं कि “समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले । विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ।।” यह प्रकृति के साथ जीवन जीने की विद्या थी। लेकिन आधुनिक समय की शिक्षा ने प्रकृति के साथ हमारे रिश्तों को तोड़ दिया है। इसके कारण आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन संकट से जूझ रही है। इस संकट का समाधान भारत के पुराने ज्ञानतंत्र में विद्यमान है। इसलिए भारत ने प्रकृति का 200 वर्ष पहले तक शोषण नहीं किया था। प्रकृति के साथ प्यार से रहने का रिश्ता बनाया था।